बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay in Hindi)

बेरोज़गारी किसी भी देश के लिए बहुत गम्भीर समस्या होती है, बेरोजगारी समाज को ख़राब करने एवं लोगो में असंतोष की भावना पैदा करती है। हमारे देश के साथ अन्य महाद्वीप एवं देश भी बेरोज़गारी का दंश झेलने को मजबूर है।

यह ऐसी सामाजिक समस्या है, जोकि नए प्रकार की समस्या को जन्म देने का कारण भी है। जैसे – चोरी, अवैध कार्य, नशाखोरी एवं हत्या इत्यादि बेरोज़गार व्यक्ति समाज एवं परिवार में प्रताड़ना झेलकर गलत व्यक्तियों के लिए काम करने लगता है।

इस लेख में बेरोज़गारी की समस्या पर निबंध लिखने के विभिन्न तथ्यों को बताने के साथ ही कुछ निबंधों के नमूने भी बताए जायेंगे।

बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay in Hindi)
berojgari ki samasya nibandh

बेरोजगारी पर निबंध – 1

प्रस्तावना

किसी भी समाज में बेरोजगारी वह दशा होती है, जिसमे व्यक्ति पूर्ण कार्य क्षमता एवं इच्छा होने पर भी अपनी आजीविका भी चलाने के लिए कार्य नहीं प्राप्त कर पाता है।

ऐसे हालत में वह व्यक्ति कार्य की खोज में जगह-जगह भटकता है, फिर भी उसे कार्य नहीं मिलता है। बेरोजगारी हमारे देश में एक व्यापक परेशानी का रूप ले चुकी है।

देश में बेरोजगारी के प्रकार

खुली बेरोजगारी

यह ऐसी बेरोजगारी होती है, जहाँ कोई व्यक्ति कार्य तो करने की इच्छा रखता है। किन्तु वह कोई काम प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाता है। ऐसी बेरोजगारी की समस्या की वजह से ग्रामीण लोग शहरों में पलायन करते है।

शिक्षित बेरोजगारी

वर्तमान समय में इस प्रकार की बेरोज़गारी का प्रभाव भारत में सबसे अधिक दिख रहा है, ये एक प्रकार की खुली बेरोज़गारी होती है।

जिसमे कार्य करने वाले व्यक्ति के पढ़े-लिखे होने की बावजूद भी कार्य नहीं मिलता है, ऐसे व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करना तो चाहते है, किन्तु उनको ऐसा कार्य नहीं मिल पता है।

घर्षणात्मक बेरोजगारी

इस प्रकार की बेरोजगारी स्वरूप के लिए बाजार की जिम्मदारी बताई जाती है। चूँकि बाजारों के समय के साथ आने वाले उतार-चढ़ाव के कारण ही व्यक्ति की माँग में बदलाव आ जाते है, ये कारक ही इस बेरोजगारी को पैदा करते है।

मौसमी बेरोज़गारी

आज भी देश की बहुतायत जनसंख्या का व्यवसाय कृषि ही है, खेती में पांच से छः महीनो का काम होता है। और इस समय के बाद इनसे जुड़े कामगारों के पास कोई कार्य करने के लिए नहीं होता है। ऐसे में कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को मौसमी बेरोजगारी झेलनी पड़ती है।

शहरी बेरोज़गारी

वर्तमान समय में नगरों एवं कस्बो को रोजगार के केंद्र के रूप में जाना जाता है, इसी वजह से बहुत से लोग अपने गाँव से पलायन करके शहर में कार्य की तलाश करते है।

किन्तु शहर में भी लोगो को कोई कार्य नहीं मिलता है, ऐसे लोगो को शहरी बेरोज़गार कहा जाता है।

ग्रामीण बेरोज़गारी

पुराने समय में विभिन्न ग्रामीण जाति के लोग खास कार्य को पीढ़ी दर पीढ़ी करके अपना जीवन यापन कर लेते थे। जैसे – किसान लोग खेती-पशुपालन, सुनहार लोग सुनहारी, लोहार लोग लोहे का काम करते थे।

किन्तु समाज में बदलाव के साथ लोगो ने अपनी जाति के कार्य को छोड़कर अन्य कार्य भी करने शुरू कर दिया है। ऐसे लोगो को काम के अभाव में बेरोज़गारी से जूझना पड़ता है। देश में गाँवो की स्थिति को गाँव के निबंधों से अच्छे से जान सकते है।

संरचनात्मक बेरोज़गारी

देश के औद्योगिक जगत में किसी प्रकार के मूलभूत परिवर्तन होने पर इनमे कार्य करने वाले स्टाफ एवं श्रमिक में कमी करनी पड़ती है।

ऐसे परिवर्तन से बहुत से लोगो को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है, ऐसी बेरोज़गारी को संरचनात्मक बेरोज़गारी कहते है।

अल्प रोज़गार

विभिन्न कार्यस्थलों में रोज़ के पैसो पर कार्य करने वाले श्रमिकों को आम भाषा में ‘दिहाड़ी मजदूर’ कहते है, ऐसे लोगो को प्रतिदिन कार्य नहीं मिलता है।

यद्यपि कुछ ही दिन काम करके पैसे मिलते है, ऐसे लोगो को बहुत समय बेरोज़गारी में भी बिताने पड़ते है। ऐसी स्थिति का सामना करने वाले लोगो को ‘अल्प रोजगार’ की श्रेणी में डालते है।

छिपी हुई अथवा अदृश्य बेरोज़गारी

देश के कृषि क्षेत्र में ऐसी बेरोज़गारी का स्वरूप देखने को मिलता है, एक समय जरुरत से ज्यादा लोग कार्य कर रहे होते है। और कुछ अवसर पर बड़ी संख्या में कामगार को वहाँ से निकाल भी देते है।

किन्तु उनकी उत्पादकता में कोई फर्क नहीं पड़ता है, ये स्थिति एक प्रकार की अदृश्य बेरोज़गारी को पैदा कर देती है।

बेरोजगारी के कारण एवं समाधान

  • देश की बेरोजगार का सबसे अहम कारण आबादी में बढ़ोत्तरी है।
  • देश के आम नागरिको की जरूरतों की पूर्ति के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। अगर सरकार समाज में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं दे पाई तो निश्चित ही बेरोज़गारी की दर में और अधिक बढ़ोत्तरी होगी।
  • विद्यालयों में विद्यार्थियों को सिद्धांतिक ज्ञान तो पढ़ाया जा रहा है, किन्तु व्यवहारिक ज्ञान नहीं दिया जा रहा है। नौजवानो में अपना कार्य करके जीवन अर्जन करने के कौशल विकसित करने होंगे।
  • देश में ब्रिटिश सरकार के समय से ही कुटीर उद्योगों को समाप्त करने का कार्य जोरो पर किया गया था। ऐसे में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी जीविका प्राप्त करने वाले लोग बेकार हो गए।
  • देश में एक बार फिर से व्यवस्था विकसित करने की जरुरत है, किन्तु वास्तविकता देखे तो स्वतंत्रता के बाद से ही देश के कुटीर उद्योगों के ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
  • बड़े उद्योगों को अधिक विकास मिलने के कारण यह कुटीर उद्योग जर्जर स्थिति में आ गए।
  • वैसे हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और अधिकतर आबादी कृषि कार्यो पर ही निर्भर करती है। किन्तु खेती में सही प्रकार से विकास के काम न होने के कारण थोड़ा ही रोजगार मिल पाता है।

निष्कर्ष

इन परिस्थितियों में हमारे देश के नागरिको को बेरोज़गारी के घातक परिणाम झेलने पड़ रहे है। समाज में बेरोजगारी की दर बढ़ने से गरीब लोगो की संख्या भी बढ़ती जा रही है, कुछ स्थानों पर तो भुखमरी के हालात भी देखने को मिलते है।

एक बेरोज़गार व्यक्ति की हालत काफी ख़राब कर देती है, और वो पैसे की तलाश में चोरी, डकैती एवं हिंसा जैसे अपराध भी करने को विवश हो जाता है।

बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay in Hindi)
बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay in Hindi)

बेरोजगारी पर निबंध – 2

परिचय

समाज में जो व्यक्ति रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते है, उनको बेरोज़गार कहते है। इसके साथ ही किसी भी देश के लिए बेरोज़गारी की समस्या तरक्की के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।

अगर किसी कार्य करने की क्षमता और इच्छा रखने वाले व्यक्ति को कार्य नहीं मिल पाए रहा है, तो इस स्थिति को ही बेरोज़गारी कहते है।

हमारे देश में तो बेरोज़गारी की समस्या काफी गंभीर है, इसी परेशानी के कारण ही बहुत से परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते है।

जनसंख्या-बेरोजगारी का सम्बन्ध

देश में बेरोज़गारो की तादात प्रतिदिन बढ़ रही है, एक ओर देश में आबादी के बढ़ने से कुछ लोगो को कार्य जरूर मिल जाता है। किन्तु इससे दुगने लोग बेरोज़गारी की मार भी झेलते है।

सरकार देश की आबादी में कमी लाने के विभिन्न अप्राकृतिक मार्ग खोजती है, किन्तु इसके बाद भी आबादी निरंतर बढ़ती ही जा रही है।

शिक्षा की कमी

हमारे देश में शिक्षा का उचित गुणवत्तापूर्ण तंत्र न होने की वजह से बेरोज़गारी की दर में बढ़ोत्तरी देखी जाती है। सही शिक्षा में कमी, काम के मौके में कमी, कौशल में कमी, प्रदर्शन से जुड़े मुद्दे एवं जनसंख्या वृद्धि जैसे तत्व देश में परेशानियों में वृद्धि करती है। इस समय की शिक्षा में रोजगार उन्मुख शिक्षण का अभाव है।

शिक्षण के बाद व्यक्ति के पास नौकरी खोजने के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं रह जाता है, भारत सरकार को शिक्षा प्रणाली में समुचित बदलाव करने की जरूरत है।

छात्रों को तकनीक एवं कौशल के विषय में शिक्षा की जरुरत है, जिससे वे अपना काम कर सके। स्कूल एवं कॉलेज स्तर पर शिक्षा में व्यापार का शिक्षण मिलना चाहिए।

व्यापार में कमी

देश के उद्योग एवं व्यापार में गिरावट आने से भी बेरोज़गारी में वृद्धि हो जाती है, आंकड़ों के अनुसार इस वजह से देश में बड़ी संख्या में व्यक्ति बेरोज़गार होते है।

अब इनकी संख्या करोड़ में भी होने लगी है, बढ़ती महँगाई ने भी देश के उद्योग को संकट में डाला है। जिससे इनके माध्यम से मिलने वाले रोज़गार कम हो जाते है।

सरकार की नीतियाँ

देश के लोग शहर एवं गाँव बेरोज़गारी की परेशानी से प्रभावित हो रहे है, ग्रामीण क्षेत्रो में काम न होने के कारण लोगो को शहर में आकर बसना पड़ रहा है, जिससे शहरों में बेरोज़गारी समस्या बढ़ जाती है।

प्राचीन समय के गाँवो में वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत अपने पुस्तैनी काम को करने की प्रथा थी, इससे लोगो में बेरोजगारी की स्थिति नहीं आती है।

सरकार को औद्योगिक शिक्षा पर अधिक जोर देने की जरुरत है, शिक्षा से लोगो में हस्तकला के कार्य पैदा नही हो पा रहें है। ये लोग शिक्षित होने के बाद रोज़गार की तलाश में भटकते रहते है।

सरकारी नौकरी और आध्यात्मिक नजरिया

शिक्षा विभाग में सामाजिक एवं आध्यात्मिक नजरिये के कारण भी बेरोज़गारी की परेशानी में वृद्धि आ रही है, वर्तमान में भी बाबाओं एवं सन्यासियों को दान देना पुण्य का काम माना जाता है।

कुछ सामान्य लोग भी ऐसे लोगो के प्रभाव में आकर भिक्षावृति के कार्यो में लग जाते है। इस वजह से भी बेरोज़गारों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है।

हमारे समाज में सामाजिक नियमो, जाति-व्यवस्था के हिसाब से अलग-अलग समुदायों के लिए खास काम रखे गए है। सरकारी विभागों में भी वर्ण-व्यवस्था के हिसाब से कार्य देने की प्रणाली होती है।

और कार्य के अभाव में वे लोग खाली ही बैठे रहते है। इस प्रकार से विभाग में कर्मियों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पाती है।

ऐसे बेरोज़गारी आने से नौजवानो में असंतोष एवं रोष की भावना पैदा होती है। लोगों में सरकारी नौकरी को पाने की इच्छा को छोड़कर परिश्रम के काम करने की जरूरत है।

बेरोज़गारी के निदान

देश की आबादी को कम करने से देश में बेरोजगारी कम हो जाएगी, शादी की आयु के नियम को भी कठोर बनाने की जरुरत है। शिक्षा तंत्र में भी काफी परिवर्तन करने होंगे।

शिक्षा के पाठ्यक्रम को अधिक प्रयोगात्मक बनाकर स्वाभलम्बन के कौशल में विकास करना होगा। देश की पंचवर्षीय योजना में रोजगार अवसर में वृद्धि के समुचित उपाय करने की भी जरुरत है।

निष्कर्ष

किसी भी देश के लिए बेरोज़गारी एक सामाजिक बीमारी जैसी है, वैसे सरकार भी बेरोज़गारी को खत्म करने के लिए उचित कदम उठा रही है।

ये एक ऐसी बीमारी है, जो अन्य सामाजिक बीमारियों को भी पैदा करती है। यह किसी भी सच्चे, मेहनती एवं समझदार व्यक्ति का धैर्य एवं साहस तोड़ देती है, इससे पीड़ित लोग बहुत से अत्याचार सहते है।

बेरोजगारी पर निबंध – 3

परिचय

देश में बेरोज़गारी की समस्या काफी घातक है, जोकि किसी भी व्यक्ति को अपना शिकार बना सकती है। करोडो की आबादी वाले देश में लाखों की संख्या में लोग उच्च शिक्षा लेने के बाद भी अच्छा रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते है, ऐसे लोगो को बेरोज़गार कहते है।

आज के समय में स्थिति स्थिति हो गयी है, देश के युवाओं के पास उच्च शिक्षा होने के बाद भी रोजगार नहीं है।

बेरोजगारी के कारण

  • समुचित शिक्षा में कमी होने से कौशल विकसित न होना।
  • नौकरी प्राप्त करने की अंधी होड़ और श्रम न करने की प्रवृति।
  • देश की धीमी औद्योगिक विकास की गति जिससे कम लोगो को कार्य मिल पाता है।
  • आबादी के तेज़ी से बढ़ने एवं रोजगार के साधन कम होने से बेरोज़गारी बढ़ती है।
  • छात्रों में सरकारी नौकरी पाने की चाह होती है जिससे वे निजी क्षेत्र में कार्य करने से परहेज़ करते है। किन्तु सरकारी क्षेत्र में सीमित संख्या में रिक्तियाँ होती है।

बेरोज़गारी के प्रकार

स्वैच्छिक बेरोज़गारी

यदि कोई व्यक्ति कार्य के अवसर मिलने पर भी काम नहीं करता है। इस प्रकार के लोगो किसी का कार्य करने के अधीन नहीं होते है और किसी से भी काम करने का समझौता नहीं करते है।

अनैच्छिक बेरोज़गारी

यह बेकारी विभिन्न प्रकार की होती है जैसे कि मौसमी बेरोज़गारी, तकनीकी बेरोज़गारी, शिक्षित बेरोज़गारी, पुरानी बेरोज़गारी, संरचनात्मक बेरोज़गारी एवं अचानक बेरोज़गारी।

बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay in Hindi)
बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay in Hindi)

बेरोजगारी से जुड़े प्रश्न / उत्तर

बेरोज़गारी क्या होती है?

यदि कोई कार्य करने की क्षमता एवं इच्छा रखने वाला व्यक्ति को रोज़गार नहीं मिलता है, तो यह बेरोज़गारी कहलाती है।

बेरोज़गारी के कितने प्रकार है?

यह दो प्रकार की होती है – आंशिक एवं पूर्णकालीन बेरोज़गारी।

बेरोज़गारी के क्या परिणाम है?

टैक्स की हानि, निराशा, अपराधीकरण एवं सामाजिक द्वेष इत्यादि समस्याएँ आ जाती है।

Leave a Comment

Join Telegram