दोस्तों आज के डिजिटल जमाने में पैसों के लेन-देन करने के बहुत से ऑनलाइन साधन मौजूद है, लेकिन आज भी चेक के माध्यम से पेमेंट करना बेहद ही सुरक्षित माना जाता है। लेकिन कई बार चेक पेमेंट करने पर चेक बाउंस हो जाता हैं।
चेक बाउंस को बैंकिंग में एक नकारात्मक स्थिति मानी जाती है और यदि किसी कारण से आपका चेक बाउंस होता है तो आपको पेनल्टी देनी पड़ सकती है। इसलिए चेक में आपको सावधानीपूर्वक जानकारी भरनी चाहिए।
ऐसे में चेक बाउंस क्या है ? इसके क्या कारण है और इससे कैसे बचा जा सकता है या क्या करना चाहिए? इससे संबंधित जानकारी आपको इस लेख में मिलेगी।

चेक बाउंस का मतलब जाने
पैसों की लेन-देन में यदि कोई व्यक्ति किसी को भी बैंक में पेमेंट के लिए चेक देता है और पैसे वाले देनदार (Drawer) व्यक्ति के खाते में उतना पैसा जमा न हो या किसी अन्य गलती के चलते उसका चेक रद्द हो जाए तो उसे चेक बाउंस या चेक डिस-ऑनर कहते हैं, सरल भाषा में कहें तो जब किसी कारण से बैंक चेक को रिजेक्ट कर देता है तो इसे चेक बाउंस कहते हैं। चेक बाउन्स होने के कई कारण हो सकते है, लेकिन अधिकतर चेक बाउन्स होने का कारण अकाउंट में उचित बैलेंस ना होना या व्यक्ति के सिग्नेचर के मिलान करने पर अंतर होना होता है।
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चेक रिटर्न मेमो
चेक बाउन्स होने पर बैंक द्वारा उसका कारण बताते हुए एक पर्ची दी जाती है जिसे चेक रिटर्न मेमो कहते है। यह पर्ची उस व्यक्ति के नाम पर दर्ज होती है जिसने चेक जारी किया हो। रिटर्न मेमो में चेक बाउन्स का कारण बताते हुए चेक जारी करने वाले व्यक्ति को 3 महीने की मोहलत दी जाती है। इन तीन महीनों में उस व्यक्ति को चेक की राशि जमा करनी है। यदि दूसरी बार भी चेक बाउन्स हो जाता है तो ऐसे में पाने वाला व्यक्ति चेक जारी करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकता है।
चेक बाउन्स होने का कारण
चेक बाउन्स होने के बहुत से कारण है जिससे कई समस्याएँ होती है तो चेक बाउन्स से बचाव के लिए इसका कारण जानना जरुरी है। चेक बाउन्स के कारण निम्नानुसार है –
- खाताधारक के बैंक में पर्याप्त राशि न होना
- चेक में किए गए हस्ताक्षर न मिलना
- चेक में किसी तरह की गलती या ओवरराइटिंग करना
- बैंक खाता नंबर गलत पाया जाना
- चेक जारी करने वाले का खाता बंद होना
- चेक की समय सीमा समाप्त होना
- ओवरड्राफ्ट की लिमिट को पार कर देना
- चेक का फटा हुआ होना
- नकली होने का शक होना
- चेक जारी करता की मौत या मानसिक स्थिति खराब होना
- चेक जारी करने वाले के द्वारा चेक को रोक देना
- शब्दों और राशि का एक जैसा न होना या गलती होना
- संगठन द्वारा जारी चेक पर कंपनी की मोहर ना होना
चेक बाउन्स होने पर यह करें
चेक बाउन्स होने पर बैंक आपको एक रसीद देगा जिसमे चेक बाउन्स होने की वजह होगी। चेक बाउन्स की रसीद प्राप्त करने के 30 दिन के भीतर चेक जारी करने वाले व्यक्ति को एक नोटिस भेजा जाता है। इस चेक में चेक जारी करने की तारीख और चेक बाउन्स होने के बारे में जानकारी दी गई होती है। इसके 1 महीने में ड्रावर (देनदार) को लेनदार को पेमेंट करनी होती है। यदि वह ऐसा नहीं करते तो लेनदार व्यक्ति चेक जारी करने वाले के खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकता हैं।
लेनदार व्यक्ति को 30 दिन में ही अपनी शिकायत दर्ज करनी होती है। यदि वह 30 दिन के भीतर अपनी शिकायत दर्ज नहीं करवा पाते तो इसके लिए कारण बताना होता है। अगर लेनदार बताया गया कारण उचित नहीं पाया जाता है तो कोर्ट द्वारा सुनवाई को इंकार भी किया जा सकता है, लेकिन यदि सुनवाई के बाद देनदार को दोषी पाया जाता है तो उसे जारी हुए चेक का दोगुना जुर्माना और साल की सजा भी हो सकती है
धारा 138 क्या है?
अगर कोई व्यक्ति खाते में पर्याप्त बैलेंस नहीं होने पर किसी लेनदार व्यक्ति को पेमेंट का चेक जारी करता है तो उसके अकाउंट में चेक में निर्धारित राशि जितना बैलेंस ना होने पर उसका चेक बाउन्स हो जाएगा। जिसकी रकम को चेक जारी करने वाले को 1 महीने में लेनदार को देनी होती है और यदि वह ऐसा नहीं करते तो उसे एक महीने के भीतर लीगल नोटिस जारी किया जा सकता है। इसके बाद भी अगर आप नोटिस का जवाब 15 दिन के अंदर नहीं देते तो इसके बाद आपके खिलाफ “नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138” के तहत केस दायर किया जा सकता है।
चेक बाउन्स होने के प्रभाव
यदि आपका चेक किसी कारणवश बाउन्स होता है तो इससे आप पर क्या प्रभाव पड़ सकता हैं, इसकी जानकारी निम्नानुसार है।
- सिविल स्कोर प्रभावित – चेक बाउन्स होने से आपकी वित्तीय क्रेडिट हिस्ट्री का पता लगाया जा सकता है। इसमे यदि आपके द्वारा ओवरड्राफ्ट की लिमिट पार या बैंक का बकाया नहीं चुकाया है तो एक भी उछाल आपके सिविल स्कोर को इतना खराब कर सकती है कि आप भविष्य में दोबारा लोन के लिए अप्लाई नहीं कर सकेंगे।
- सजा का प्रावधान – यदि चेक बाउन्स होने के बाद भुगतानकर्ता जमा राशि का पैसा प्राप्तकर्ता को निर्धारित समय पर नहीं देते हैं तो ऐसे में भुगतानकर्ता को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के अनुसार 2 साल की सजा या चेक राशि का दोगुना जुर्माना देना होगा।
- बैंक द्वारा जुर्माना लगाना – यदि आपका चेक हस्ताक्षर के मिलान न होने या अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस न होने कारण बाउन्स हो जाता है तो चेक जारी करने वाले ड्रावर और पेयी दोनों से ही बैंक द्वारा शुल्क वसूला जाता है। यह शुल्क आमतौर पर 200 रूपये से 700 रूपये के मध्य हो सकता है। वहीं कुछ बैंकों में यह चेक इनवर्ड शुल्क 100 रूपये और आउटवर्ड रीटर्न के लिए यह शुल्क 300 रूपये तक हो सकता है।
चेक बाउन्स का मतलब जानिये से जुड़े प्रश्न/उत्तर
चेक बाउन्स का मतलब होता है ?
यदि कोई व्यक्ति किसी को भी बैंक में पेमेंट के लिए चेक देता है और पैसे वाले देनदार व्यक्ति के खाते में उतना पैसा जमा न हो या किसी अन्य गलती के चलते उसका चेक रद्द हो जाए तो उसे ‘चेक बाउन्स या चेक डिस-ऑनर’ कहते हैं।
चेक बाउन्स पर कहाँ और कौन मुकबदमा दर्ज करवा सकते हैं ?
चेक बाउन्स होने पर इसका मुकबदमा वही दर्ज किया जा सकता है जिस क्षेत्र में भुगतान के लिए आपके द्वारा इसे प्रस्तुत किया गया हो। चेक बाउन्स का केस प्राप्तकर्ता द्वारा किया जाता है लेकिन इसे पावर ऑफ़ अटॉर्नी द्वारा भी दाखिल किया जा सकता है।
चेक बाउन्स का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए कौन-सा कानून बनाया गया है ?
चेक बाउन्स का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए दोषी के खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत केस दायर किया जा सकता है।
डिस ऑनर या चेक बाउन्स होने से कैसे बचा जा सकता है?
डिस ऑनर या चेक बाउन्स से बचने के लिए यह आवश्यक है की यदि आप किसी को पेमेंट चेक दे रहे हैं तो आपके अकाउंट में उतना पर्याप्त बैलेंस होने चाहिए। साथ ही आपके चेक में किए गए सिग्नेचर सही होने चाहिए।
देनदार को चेक बाउन्स होने के कितने दिन के भीतर लेनदार को भुगतान करना होता है ?
देनदार को चेक बाउन्स होने के 1 महीने के भीतर ही प्राप्तकर्ता को चेक राशि का भुगतान करना होता है।
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर क्या सजा दी जाती है ?
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत चेक जारी करने वाले को दोषी पाए जाने पर 2 साल की सजा या चेक राशि का दोगुना जुर्माना देना पड़ सकता है।