कारगिल विजय दिवस की कहानी हमारे भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। भारत में हुई कई आजादी की लड़ाइयों के पश्चात 1947 में भारत-पाकिस्तान बँटवारे के बाद भी पाकिस्तान ने भारत पर चार बार कब्ज़ा करने की नाकाम कोशिशें की हैं। भारतीय सेना से उसे अपनी वीरता का परिचय दिया है।
इन लड़ाइयों में भारत और पाकिस्तान का अंतिम युद्ध 1999 में कारगिल में हुआ जिसमे पाकिस्तान के सैनिको और कश्मीरी आतंकियों ने कारगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। भारत और पकिस्तान के बीच हुआ यह कारगिल युद्ध लगभग दो महीने तक चला जिसके बाद 26 जुलाई 1999 में भारत ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ा और पकिस्तान सेना को हराकर घाटी पर फिर से जीत का तिरंगा फहराया।
इस लेख में कारगिल दिवस पर निबंध लिखने, कारगिल विजय दिवस क्या है, इस दिन का पूरा इतिहास क्या है इत्यादि के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
कारगिल विजय दिवस के इतिहास की कहानी
देश में कारगिल विजय दिवस हर वर्ष 26 जुलाई 1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद से उन सभी शहीदों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने देश की सुरक्षा से लिए अपना पराक्रम दिखाते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इस दिन देश के प्रधानमंत्री जी द्वारा हर वर्ष इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर देश के लिए शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में मई और जुलाई में चला यह युद्ध दो महीने से अधिक समय तक चला। जो भारतीय सेना द्वारा बड़ी ही वीरता से माइनस 10 डिग्री सेल्सियस में लड़ा गया। जिसके परिणामस्वरुप इस युद्ध की समाप्ति में 26 जुलाई 1999 के दिन हुई।
कारगिल युद्ध के पीछे का मुख्य कारण 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भी कश्मीर बॉर्डर पर लगातार कब्जा करने की कोशिश और तनावपूर्ण माहौल बनाना रही है। जिसके बाद से फरवरी 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए शांति समझौते के बाद भी मई 1999 में कश्मीर के कारगिल द्रास सेक्टर में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए कब्जे वाले क्षेत्रों को फिर से नियंत्रण में करने के लिए भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन विजय चलाया गया।
इस ऑपरेशन में दो महीने से अधिक समय तक भारतीय सेना ने अपना पराक्रम दिखाते हुए जुलाई 1999 में पाकिस्तानी सेना को हराकर विजय हासिल की। जिसके बाद से ऑपरेशन विजय की सफलता को कारगिल विजय दिवस के रूप में जाना जाने लगा।
कारगिल युद्ध होने के पीछे कारण
भारत-पाकिस्तान बँटवारे के बाद से ही पाकिस्तान 1971 से कश्मीर के क्षेत्रों में कब्जे के लिए कई बार कोशिशें करता आया है। जिसे लेकर कई बार कश्मीर का मुद्दा अंतराष्ट्रीय स्तर पर लेकर जाने के प्रयास करता आ रहा है। ऐसे में 1971 अपनी सेनाओं को मजबूत बनाने के लिए दोनों ही देशों में परमाणु परीक्षण देखने को मिले जिनसे तनाव और युद्ध की स्थिति और अधिक बढ़ती नजर आती हुई दिखी।
जिसके चलते भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर गलत साबित करने और कश्मीर के मुद्दे का फैसला अपने पक्ष में करने के लिए पाकिस्तान ने 1999 में अपने सैनिकों को कश्मीर में कारगिल और द्रास के इलाकों में भेजा। घुसपैठ कर उन क्षेत्रों में अपना कब्जा करने की नीति के जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों का कड़ा मुकाबला किया। सेना ने ऑपरेशन विजय के रूप में कारगिल युद्ध में जीत हासिल की।
देश में कारगिल युद्ध की स्थिति से पहले भारत में हुए 1971 के युद्ध से एक वर्ष पहले पाकिस्तान में चुनाव करवाए गए। इनमे पूर्व पाकिस्तान की आवामी लीग ने बहुमत से सीटें जीतकर सरकार बनाने का दावा किया। पीपीपी के जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसका कड़ा विरोध किया जिसके बाद पाकिस्तान में हालात बेहद ही खराब हो गए और सेना को बीच में आना पड़ा।
इसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अवामी लीग के शेख मुजीबुर रेहमान की गिरफ्तारी हो गई जिसके चलते पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में काफी तनाव बढ़ गया। पूर्वी पाकिस्तान से लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान में पलायन शुरू कर दिया। यह पलायन धीरे-धीरे पाकिस्तान से भारत की तरफ होना शुरू हो गया जिसमे 10 लाख से अधिक शरणार्थी भारत आए।
पडोसी देश होने के नाते भारत में इन्हे खाने व रहने की सुविधाएँ दी जिसे देखते हुए पाकिस्तान ने भारत को हमले की धमकियाँ देना शुरू कर दिया। इसको रोकने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध रोकने व शरणार्थियों को उनके घरों तक वापस सुरक्षित लौटाने के कई प्रयास किए।
प्रधानमंत्री द्वारा की गई कई कोशिशों के बाद भी युद्ध को नहीं रोका जा सका। इन शरणार्थियों द्वारा भारतीय सेना के उन राज्यों में पलायन किया गया जो पाकिस्तानी सीमा से जुड़े हुए थे। जिसे देखते हुए प्रधानमंत्री ने भारतीय सेना को युद्ध की तैयारी के आदेश दे दिए गए और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की नाकाम हरकतों को रोकने के लिए उस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
इस युद्ध के कारण भारत के कई राज्यों में शान्ति बहाल हुई। पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति को चिंता का विषय बताते हुए इंदिरा गाँधी जी ने इसे पाकिस्तान का अंधरुनि मामला नहीं बताया। उनके अनुसार ये बेहद ही चिंताजनक स्थिति है जिससे भारत के कई राज्यों में अशांति बनी हुई थी।
इस दौरान अमेरिका की पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं देखते हुए भारत ने 1971 में सोवियत संघ के साथ समझौता करते हुए दूसरे को सुरक्षा का भरोसा दिया। यहाँ पाकिस्तान की ओर से भारत में हुई तीसरे युद्ध के बाद अगला युद्ध कारगिल में लड़ा गया और 1999 में हुए इस युद्ध में भी 1971 की तरह ही पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा।
कारगिल युद्ध के मुख्य तथ्य
- कारगिल युद्ध भारत के जम्मू-कश्मीर जिले की नियंत्रण रेखा के पास हुआ था जिसकी शुरुआत पाकिस्तानी सेना द्वारा इस इलाके में घसपैठ कर कब्जा करने से हुई।
- इस युद्ध की शुरुआत पाकिस्तानी सेना द्वारा 6 मई 1999 में तब की गई थी जब उनके द्वारा 5,000 सैनिकों के साथ कारगिल की ऊँचाई पहाड़ी में घुसपैठ की गई। जिसके जवाब में भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन विजय के माध्यम से पाकिस्तानी सेना को मुहतोड़ जवाब दिया।
- पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ इस इलाके के सबसे ऊपरी क्षेत्र में की गई थी। यहाँ से वे कश्मीर और लद्दाख के बीच संबंध तोड़ने की मंशा में थे।
- इस युद्ध में भारतीय सेना ढलान पर थी जिससे उनके लिए हमला करना और भी आसान हो गया था।
भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों का ऐसे पता लगाया
कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ का पता भारतीय सेना द्वारा तब लगाया गया जब 8 से 15 मई 1999 में भारतीय सेना कारगिल पर्वतमाला के ऊपर गश्ती दल को पाकिस्तानी घुसपैठियों की जानकारी मिली। इनको खदेड़ने के लिए भारतीय सेना द्वारा कुछ ऑपरेशन शुरू किए गए। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइट इंफेंटरी की तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छटवीं और बारहवीं बटालियन के साथ विशेष सेवा समूह के सदस्य और कई मुजाहिद्दीन भी शामिल थे।
जिसमे पाकिस्तान के सैनिकों ने सीमा पार से गोलियों और तोपों की गोलाबारी का सहारा लेते हुए युद्ध करना शुरू किया। कारगिल की यह लड़ाई 18 हजार फ़ीट की ऊँचाई पर लड़ी गई जिसमे देश के लगभग 527 से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। 1300 से अधिक घायल हुए और पाकिस्तान के 2,700 से अधिक लड़ाके मारे गए।
250 पाकिस्तानी सैनिक जंग छोड़कर भाग गए जिस दौरान युद्ध में भारतीय सेना दुश्मनों को द्रास सेक्टर से निकालने और बाल्टिक सेक्टर से घुसपैठियों को भगाने में सफल रही। भारतीय सेना की सफलता उनके पद एवं रैंक की विशिष्ट प्रणाली के कारण भी है।
कारगिल युद्ध क्षेत्र
हिंदुस्तान के बटवारें से पहले कारगिल लदाख जिले के बल्तिस्तान का हिस्सा हुआ करता था। 1947 में इस क्षेत्र में बँटवारा देखने को मिला। 1947 से 1948 में हुए पहले कश्मीर युद्ध के दौरान बल्तिस्तान जिले को दो भागों में बाँटा गया। जिसके बाद से कारगिल इसका भाग नहीं रहा और एक अलग जिला बन गया। पाकिस्तान के बल्तिस्तान से अलग कागल जिला भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के लद्दाख सब डिवीज़न में आ गया।
यह क्षेत्र श्रीनगर की 205 किमी की दूरी पर स्थित है। यह एलओसी (लाइन ऑफ़ कंट्रोल) से उत्तर दिशा की और है जो पाकिस्तान की स्कार्दू टाउन से मात्र 173 की दूरी पर है। कारगिल के क्षेत्र में अक्सर सर्दियों में मौसम 48 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। इस क्षेत्र को लेकर भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों सीमाओं के संबंध में टकराव करने से इंकार को लेकर पाकिस्तान की हार के बाद शिमला समझौते पर भी हस्ताक्षर किया गया था।
कारगिल युद्ध के दौरान की परिस्थितियाँ
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना द्वारा बटालिक सेक्टर के इलाके में घुसपैठ की गई थी। जिसके कारण भारतीय सेना के लिए बटालिक सेक्टर के इलाके को नियंत्रण में करना कठिन हो गया था। इस क्षेत्र से दुश्मन को बाहर खदेड़ने के लिए सेना को लगभग एक महीने का समय लग गया। कारगिल में युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में दिन-रात तोपों और गोलियाँ गिराई गई। 21 जून 1999 में पॉइंट 5203 और 6 जुलाई 1999 को खालूबार को भी भारतीय सेना द्वारा पुनः प्राप्त कर लिया गया।
1999 में हुए इस युद्ध के समय दुश्मनों से लोहा लेते समय भारतीय थल सेना के साथ वायु एवं नौसेना ने खतरे को नियंत्रित कर सेना को हर संभव मदद दी। 11 मई से 25 मई तक वायुसेना द्वारा जमीनी सैनिकों को रिपोर्ट किया गया जिसमे दुश्मन के स्वभाव की स्थिति पता करने व युद्ध में प्रारम्भिक कार्यवाही को अंजाम दिया गया। इस दौरान पश्चिमी वायु कमान ने तीन सप्ताह तक चलने वाले त्रिशूल अभ्यास किया था।
इस दौरान भारतीय वायु सेना ने लगभग 300 विमानों का उपयोग करते हुए लगभग 35,000 कर्मियों के साथ ऑपरेशन सफ़ेद सागर में, वायुसेना में 50 हजार उड़ाने लगभग 50 दिनों के संचालन में भरी। युद्ध में ऑपरेशन के दौरान दूसरे या तीसरे दिन आईएएफ ने एक मिग-21 लड़ाकू और एके एमआई-17 हेलीकाप्टर खो दिए।
IAF द्वारा कारगिल के सबसे नजदीक ठिकानों श्रीनगर, अवन्तिपुर और जालंधर के पास आदमपुर में स्थिति भारतीय हवाई क्षेत्र से इन तीन ठिकानों का संचालन किया। इस युद्ध में ऑपरेशन विजय से अनुमान है कि अकेले हवाई कार्यवाही से लगभग 700 घुशपैठिये मारे गए। जबकि जमीनी कार्यवाही के लिए युद्ध में मिग-2, मिराज-2000 जैसे विमानों का इस्तेमाल किया गया।
नौसेना की सहभागिता
भारतीय वायुसेना और थल सेना की तरह कारगिल युद्ध में नौसेना ने भी मोर्चा संभालते रखा। जिसके लिए युद्ध में जवाबी हमले शुरू होने से पहले 20 मई को अलर्ट पर रखा गया। इसके लिए पाकिस्तानी नौसेना की इकाइयों को आगे बढ़ने से रोकने व उन पर निगरानी के लिए नौसेना और तटरक्षक को पहले ही तैयार रखा गया था।
जिसमे ईस्टर्न फ्लीट ने वेस्टर्न नेवल फ्लीट को ऑपरेशन तलवार के तहत शामिल होकर पाकिस्तान के अरब सागर के रास्ते बंद कर दिए। जिससे बचने के लिए पाकिस्तान ने रक्षात्मक रूप से अपनी नौसेना इकाइयों को भारतीय नौसेना से दूर रहने के निर्देश दिए।पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जानकारी दी यदि यह युद्ध पूरी छिड़ जाता है तो पाकिस्तान सेना के पास उन्हें बचाने के लिए छह दिन से अधिक ईंधन नहीं बचेगा।
जिसके चलते भारतीय नौसेना के पराक्रम और सहयोग से भारतीय सेना और वायुसेना को पाकिस्तानी सेना को हराने में काफी मदद मिल पाई।
कारगिल टकराव की स्थिति
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को कई विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। जिसमे सबसे पहले पाकिस्तान ने भारत के कश्मीरी क्षेत्र में घुसपैठ शुरू करके अपनी रेंज में आने वाले राष्ट्रीय राजपथ और स्थानों में रणनीतिपूर्वक कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने इस घुसपैठ का पता लगाकर सेना को जवाब देने के लिए इन स्थानों पर भेजा।
आखिर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू होने के बाद भारतीय सेना ने उन सभी स्थानों में पाकिस्तानी सेना को हराकर जीत प्राप्त की। जिसके अंतराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तानी फौज को लाइन ऑफ़ कंट्रोल से पीछे हटना पड़ा और भारतीय सेना ने एक बार फिर से स्थिति को अपने नियंत्रण में कर जीत हासिल की।
कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर
कारगिल विजय दिवस पर देश के वीरों को श्रंद्धाजलि अर्पित करके देश के लिए उनकी कुरबानी को याद किया जाता है। कारगिल युद्ध के दौरान भारत के 527 से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और 1300 से अधिक घायल हुए। इन सभी रणबाकुरों के इस बलिदान ने देश को आजादी दिलाने में बेहद ही बड़ा योगदान दिया। जिसे आज भी हमारा देश कारगिल दिवस के दिन इनकी याद में मानता है। जिनके नाम निम्न अनुसार है –
- कैप्टन विक्रम बत्रा
- कैप्टन मनोज कुमार पांडेय
- कैप्टन सौरव कालिया
- रणवीर सिंह
- विनोद कुमार
- शीश राम गिल
- गणपत सिंह ढाका
- वीरेंद्र सिंह
- वेद प्रकाश
- भगवान सिंह
कारगिल विजय दिवस से जुडी कविता
होगा अपना कश्मीर
जिसने से ख्वाब सजाया था,
माँग रहा था माफ़ी उस दिन
वो घुटनों पर आया था
शायद उसने सोचा होगा
हिन्दुस्तानी डर जाएँगे,
लड़ने की खातिर न कभी वो
अपने कदम बढ़ाएँगे।
मगर हमारे योद्धाओं ने
उन्हें ऐसी धूल चटाई,
कुछ ही दिनों में उनकी
थी अकाल ठिकाने आई।
लड़ते-लड़ते शहीद हुए
भारत माँ के कुछ लाल,
अंत समय तक बने रहे
भारत माता की ढाल।
एक बार फिर से हमने
दुश्मन को मार भगाया था,
कारगिल की चोटी पर
तिरंगा धान से लहराया था।
विजय दिवस पर वीरों की
हम कुर्बानी को याद करें,
रहें सलामत वीर हमारे
मिलकर ये फरियाद करें।
कारगिल विजय दिवस पर निबंध से जुड़े प्रश्न
कारगिल विजय दिवस कब मनाया जाता है ?
कारगिल विजय दिवस हर वर्ष 26 जुलाई 1999 को मनाया जाता है।
कारगिल विजय दिवस मनाने के क्या कारण है ?
कारगिल विजय दिवस 1999 में हुए पाकिस्तान और भारतीय सेना के बीच हुए युद्ध की याद में मनाया जाता है। भारतीय सेना ने अपनी पूरी वीरता एवं पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तानी सेना को हराकर फिर से कारगिल पर अपना नियंत्रण स्थापित करते हुए एक बड़ी जीत प्राप्त की थी।
कारगिल क्षेत्र कहाँ स्थित है ?
कारगिल क्षेत्र भारत के जम्मू कश्मीर राज्य के लद्दाख सब डिवीज़न में आता है।
भारतीय सेना द्वारा कारगिल युद्ध के दौरान कौन सा ऑपरेशन चलाया गया ?
भारतीय सेना द्वारा कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय चलाया गया।