उत्तर प्रदेश के राजकीय प्रतीक – देश के अन्य राज्यों की तरह ही उत्तर प्रदेश के भी कुछ राजकीय प्रतीक और चिन्ह है। उत्तर प्रदेश में पढ़ाई करने वाले एवं किसी राज्य स्तरीय परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए प्रदेश के राजकीय प्रतीकों का विषय काफी महत्वपूर्ण है।
प्रदेश के नागरिको के लिए भी यह जानना जरुरी है, कि उनके राज्य के प्रतीक एवं चिन्ह कौन से है। कोई विशेष गुण अथवा इतिहास से सम्बंधित वस्तु, जीव एवं पेड़-पौधे को राजकीय प्रतीक के रुप में चुना जाता है।
उत्तर प्रदेश के राजकीय प्रतीक पशु, पक्षी, वृक्ष
उत्तर प्रदेश के राजकीय चिन्ह को देश की आजादी से पहले बना लिया गया है, और बाद में बहुत से विशेष गुणों वाली वस्तुओं को प्रदेश की राजकीयता का भी सम्मान मिला है।
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उत्तर प्रदेश के राजकीय प्रतीक
प्रतीक | नाम (वर्णन) |
राजकीय चिन्ह | मछली एवं तीर कमान |
राज्य पशु | बारहसिंघा |
राज्य मछली | मोय या चीतल |
राज्य पक्षी | सारस |
राज्य वृक्ष | अशोक |
राज्य पुष्प | पलाश या ढाक या टेसू |
उत्तर प्रदेश का राजकीय प्रतीक
वैसे भारत के प्रत्येक राज्य का अपना वैधानिक प्रतीक चिन्ह है, इसी प्रकार से उत्तर प्रदेश राज्य का भी एक राज्य चिन्ह है। उत्तर प्रदेश का राजकीय प्रतीक मछली एवं तीर-धनुष है, जोकि एक गोले के भीतर है। साथ में दो छोर से बहती हुई गंगा नदी भी है।
ये सभी चीजे एक गोले के भीतर है, और इसके बाहर एक अन्य गोले में नीचे की ओर दो सितारे है। जबकि ऊपर की ओर उत्तर प्रदेश सरकार लिखा हुआ है। आधिकारिक रूप से इस प्रतीक को 1938 में स्वीकार किया गया था।
उत्तर प्रदेश का राजकीय पशु
बारहसिंघा को उत्तर प्रदेश का राजकीय पशु माना गया है, जिसको अंग्रेजी में स्वैम्प डियर कहते है। बारहसिंघा का वैज्ञानिक नाम रूसरवस डुवाओसेली होता है।
यह पशु 130 से 135 सेमी लम्बा एवं 180 किग्रा वजन का होता है, इस जानवर के सिंघों की औसतन लम्बाई 75 सेमी होती है। बारहसिंहा के सींग बहुत बड़े एवं कई शाखाओ वाले होते है।
इनकी संख्या आमतौर पर 12 तक हो जाती है, ये दलदली स्थानों में अधिकतर निवास करते है। और इसी कारण से इनको ‘स्वैम्प डियर’ नाम दिया गया है।
ये पशु भारत के सिर्फ तीन राज्यों उत्तर प्रदेश के जंगलो, उत्तर पूर्वी असम और मध्य प्रदेश के जगलों में देखा जाता है। यह मूल रूप से शाहकारी जानवर है, किन्तु इसको दुनिया की संकटग्रस्त प्रजाति की सूची में शामिल किया गया है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय मछली
मोय, चीतल को उत्तर प्रदेश का राजकीय मछली चुना गया है। जिसको अंग्रेजी में चीतल कहते है, चीतल का वैज्ञानिक नाम चिताला है। ये मछली देश की गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, कोसी, गोमती, गेरुआ, सतलुज, केन, बेतवा और महानदी इत्यादि नदियों में पायी जाती है।
इस मछली की अधिकतम लम्बाई 150 सेमी और अधिकतम वजन 14 किग्रा है। मछली की पीठ में चमकदार खूबसूरत चित्ती पाए जाने की वजह से ही इसको ‘चीतल’ कहते है।
इसके शल्क छोटे और छोटी-बड़ी मछली में सुनहरे रुपहले धारियाँ (करीबन 15 तक) होती है। किन्तु यह एक संकटग्रस्त मछली प्रजाति है।
देश के अलग राज्यों में चीतल को मोय, कोसी पारी सीतुल वाला, काण्डल्ला एवं फैदरबैक इत्यादि नाम से पुकारते है। यह मछली बड़ी नदी, झील, तालाब एवं रुके जलाशय में अपना निवास करती है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी
सारस उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है, जिसका नाम क्रेन (Crane) है। सारस का वैज्ञानिक नाम ग्रूस एंटीगोन होता है। ये पक्षी करीबन 6 फ़ीट ऊंचाई एवं अपने पंखों के फैलाव के बाद इसकी ऊँचाई 8 फ़ीट तक हो जाती है।
हिंदी के शब्द सरोवर का निवासी होने के कारण इसको ‘सर’ से सारस नाम प्रदान किया गया है। ये पक्षी साफ़ और स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र के तालाब के समीप ही मिलता है।
क्रेन सभी उड़ने वाले पक्षियों में सबसे ऊँचा पक्षी होता है, यह पक्षी उत्तर और केंद्रीय भारत सहित नेपाल एवं पाकिस्तान में भी पाया जाता है। सारस के पंखो का रंग हल्के काले यानी कि सलेटी रंग होता है
और इसके मुँह एवं गर्दन के आस पास चिकने हरे रंग के पंख होते है। ये पक्षी कठिन हालातों जैसे ज्यादा ठण्ड में भी कुशलता से जीवित रह सकता है।
दलदल वाले स्थानों के संकुचन के कारण सारस एक संकटग्रस्त पक्षी हो चुका है, अपने खूबसूरत रंग रूप आकार के कारण ही इसे उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी के रूप में चुना गया है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय पेड़
अशोक का पेड़ उत्तर प्रदेश का राजकीय वृक्ष है, जिसको अंग्रेजी भाषा में अशोक कहते है। अशोक का वैज्ञानिक नाम असोका (Saraca asoca) है। प्रदेश की क्षेत्रीय भाषा में इस पेड़ को सीता अशोक भी कहते है।
पुराने समय की मान्यता के अनुसार शोक (दुःख) का नाश करने वाले पेड़ होने की वजह से इसको ‘अशोक’ नाम दिया गया था। हिन्दू नए साल के पहले दिन में इसके फूल की कली को साल भर शोक से मुक्त रहने के लिए खाते है।
पेड़ की पतियाँ जुडी हुई होती है, और इसमें फरवरी से अप्रैल महीने तक फूल एवं फल आते है। आमतौर पर इस पेड़ को सघन फैलाव होने की वजह से संस्थानों, उद्यानों, रास्तो के किनारे, आवासों के परिसरों और मंदिरों में लगाते है। किन्तु अब ये पेड़ कम संख्या में ही पाए जाते है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय फूल
पलाश, ढाक, टेसू का फूल उत्तर प्रदेश का राजकीय फूल है, इस फूल को अंग्रेजी में फ्लेम ऑफ द फॉरेस्ट कहाँ जाता है। और इसका वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea monosperma) है।
इस फूल में डेढ़ से दो इंच के आकार के नारंगी-लाल रंग के फूल फरवरी एवं मार्च के महीने में देखा जाता है। अपने उत्तम (श्रेष्ठ) गुणों को रखने के कारण ही इसको पलाश नाम दिया गया है।
इस फूल के बीज पेट के कीड़ों से मुक्ति देते है, आज भी इसके फूलो से रंगो को बनाकर होली खेली जाती है। साथ ही आयुर्वेदिक क्षार को बनाने में ये सर्वोत्तम पेड़ रहता है, ये धीमी गति से वृद्धि करने वाला टेढ़ा-मेढ़ा औसत ऊँचाई वाला पर्णपाती पेड़ है।
इसको पलाश, ढांक एवं जंगल की आग के नामो से जानते है, ये पेड़ बहुत से लाभ देता है। जैसे इसके पत्तो से पत्तल एवं दोने बनते है। यह पशुचारा, रेजिन, रंग, दवाई एवं चारकोल तक को बनाने में इस्तेमाल होता है।
पलाश के फूल की इन्ही विशेषताओं एवं उपयोग को देखकर ही इसको उत्तर प्रदेश का राजकीय फूल के रूप में मान्यता मिली है।
उत्तर प्रदेश के राजकीय प्रतीक से जुड़े प्रश्न
उत्तर प्रदेश का राजकीय चिन्ह क्या है?
एक गोले के भीतर मछली एवं तीर-धनुष को राजकीय चिन्ह बनाया गया है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय पशु कौन है?
बारहसिंघा जानवर को उत्तर प्रदेश का राजकीय पशु चुना गया है।
उत्तर प्रदेश का राजकीय वृक्ष क्या है?
बड़े आकार और लम्बे जीवन काल के लिए ‘अशोक के वृक्ष’ को राज्य का राजकीय पेड़ चुना गया है।
उत्तर प्रदेश की राजकीय नदी कौन सी है?
उत्तर प्रदेश के राजकीय चिन्ह में एक वृत्त के दोनों तरफ गंगा और यमुना नदी अंकित है। इस प्रकार से ये दोनों ही उत्तर प्रदेश की राजकीय नदी कहलाती है।