हिन्दू धर्म के अंतर्गत वेदों को जो स्थान मिला है, वैसा ही स्थान बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों में ‘पिटकों’ का है। अपने आध्यात्मिक जीवन काल में भगवान बुद्ध ने कुछ भी नहीं लिखा था।
यद्यपि उनके प्रमुख शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं एवं उपदेशों को सुनकर याद किया और कालांतर में लिखवाया। चूँकि लेखन के बाद इन लिपियों को पेटियों में रखा जाता था और यह “पिटक” कहलाने लगे।
बुद्ध ने अपने समय में सभी उपदेशों को मौखिक रूप से दिया था, उनके निर्वाण हो जाने के 100 वर्षों बाद शिष्य आनंद ने उनके उपदेशों को संगृहीत करने के लिए ‘सुत्त पिटक’ एवं उपालि की सहायता से ‘विनय पिटक’ को संकलित किया।
इस लेख में बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रन्थ त्रिपिटक, इसके प्रकार, इसकी विशेषताएँ एवं इससे जुडी अन्य महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है।
त्रिपिटक क्या है?
त्रिपिटक का अर्थ होता है, तीन पिटारी, जिसके अंदर बुद्ध भगवान बुद्ध के उपदेश पाली भाषा में संगृहीत है। वर्तमान समय में यह ग्रन्थ पाली के अतिरिक्त अन्य भाषाओ में भी अनुवादित हुआ है।
भगवान बुद्ध के नाम एवं जीवन से लगभग सभी लोग परिचित है, परन्तु त्रिपिटक क्या है, इसका सही उत्तर बहुत कम लोगों को मालूम है।
इन ग्रंथों में बुद्ध के ज्ञान पाने से लेकर महापरिनिर्वाण तक के आवश्यक उपदेश मिलते है, इन ग्रंथों की रचना वर्तमान समय में 2100 से 2500 वर्ष पहले के समय में मानी जाती है। सभी त्रिपिटक ग्रंथों के लिखने का स्थान सिंहल (श्रीलंका) है, और इसे उन्ही की भाषा में भी लिखा गया है।
त्रिपिटक बौद्धों के लिए बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का संग्रह ग्रन्थ है, जिसमें “सुतो एवं रचना” देखने को मिलती है। त्रिपिटक को अंग्रेजी में ‘पाली कैनन’ और ‘टिपीटका’ नामों से जाना जाता है।
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त्रिपिटक किया है?
लेख का नाम | त्रिपिटक क्या है? |
श्रेणी | शैक्षिक लेख |
वर्णन | त्रिपिटक की हिंदी में जानकारी (tripitaka in hindi) |
आधिकारिक वेबसाइट | https://www.ibcworld.org/ |
त्रिपिटक
त्रिपिटिक नामक पुस्तक को बौद्ध धर्म का आधारशिला ग्रन्थ कहते है, इसके अंतर्गत बुद्ध के जीवन घटनाक्रम का वर्णन, उस समय के समाज एवं उनकी शिक्षा व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
यह कोई एक ग्रन्थ नहीं है, यद्यपि इसके अंतर्गत तीन ग्रन्थ – विनय पिटक, सुत्तपिटक एवं अभिधम्म पिटक आते है। त्रिपिटक की शिक्षाएँ थेरवार बौद्ध दर्शन का आधार है, और बौद्ध शिक्षाओं का सबसे प्राचीन संग्रह है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार त्रिपिटक को ‘त्रि’ एवं ‘टोकरी’ यानी तीन टोकरी के नाम से भी जानते है, यह एक ऐसा साहित्य है। जिसके माध्यम से विश्व के सभी मानवों के हित एवं सुख की दिशा दी जाती है। इससे इस लोक के साथ परलोक में सुखी होने के उपदेश एवं शिक्षा प्राप्त होते है।
त्रिपिटक के प्रकार
त्रिपिटक के तीन भाग है –
- विनय पिटक
- सुत्त पिटक
- अभिधम्म पिटक
त्रिपिटक के प्रकार और इसकी विशेषताएं
विनय पिटक (Vinaya Pitaka)
विनय पिटक में भगवान बुद्ध द्वारा भिक्षुओं को आचरण के नियमन करने के नियमों का वर्णन मिलता है, इनको “प्रतिमोक्ष” अथवा पाली मोक्ख कहते है।
भगवान बुद्ध ने कहाँ था, कि उनके ना रहने पर प्रतिमोक्ष की सहायता से भिक्षुओं को अपने कर्तव्यों का ज्ञान मिलता रहेगा। ऐसे संघ को स्थायित्व मिल सकेगा।
इस ग्रन्थ के तीन भाग होते है –
- सुत्तविभंग – यह विनय पिटक का पहला भाग है, जिसके अंतर्गत प्राश्चित नियमों की जानकारी मिलती है। इन नियमों की संख्या 227 है। इसके भी दो भाग किये गए है – भिक्षु विभंग एवं भिक्षुणी विभंग।
- खन्धक – यह विनय पिटक का दूसरा भाग है, इसके दो भाग है – महावग्ग एवं चुल्लुवग्ग। महावग्ग के अंतर्गत जाग्रत बुद्ध और उनके महान शिष्यों के विषय में जानने को मिलता है। इस ग्रन्थ से संघीय जीवन के नियम एवं निषेधों का विस्तृत वर्णन किया गया है। महावग्ग के अंतर्गत भगवान बुद्ध की साधना की रोचक कहानी मिलती है।
इसके साथ एक साधक की दृष्टि के महत्वपूर्ण प्रवज्या, उपोसथ, पसवीस एवं प्रवारन के नियमों की जानकारी मिलती है। दूसरे ग्रन्थ चुलवग्ग में भिक्षु एवं भिक्षुणियों के मौलिक व्यवहार एवं विशेष आचरण की जानकारी है और संघाराम के सम्बन्ध में नियम भी है।
- परिवार – यह विनय पिटक का अंतिम भाग है, इसमें वैदिक अनुक्रमणिकाओं के तरह विभिन्न प्रकार की सूचियों को सम्मिलित किया है। ग्रन्थ में 7,920 श्लोकों के माध्यम से सारी जानकारी दी जाती है।
सुत्त पिटक (Sutta Piṭaka)
त्रिपिटकों में दूसरा भाग “सुत्त पिटक” है, इसके अंतर्गत 10 हज़ार से अधिक सूत्र मिलते है। जो बुद्ध एवं उनके नजदीकी मित्रों से सम्बन्ध रखते है, इसमें पहली बौद्ध संगती का वर्णन मिलता है।
जो बुद्ध के देहान्त के तुरंत बाद हुई थी, अधिकतर विद्वानों के अनुसार इस ग्रन्थ को 2400 वर्ष पहले महाकश्यप की अध्यक्षता में लिखा गया था।
इस पिटक को “वोहार” यानी व्यवहार एवं “देसना” के नाम से भी जानते है। इसका संगायन भी प्रथम संगति में विनय-पिटक के साथ हो गया था। इस ग्रन्थ के जानकार को “सुत्तधर” कहते है। इसके जानकार साहित्य एवं इतिहास के लिए नामांकित करते है।
सुत्त पिटक में बुद्ध के जीवन काल में अपने द्वारा अलग-अलग लोगों को दिए गए उपदेशों का संग्रह है, जिसको स्वयं बुद्ध भी प्रमाणित करते है। सुत्तपिटक को पाँच निकायों में विभक्त किया गया है –
- दीर्घ निकाय – इसमें बुद्ध के लम्बे उपदेशों को पढ़ने का अवसर मिलता है, इसमें गद्य एवं पद्य से रचना की गयी है। इसके साथ ही इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धानों का मंडन एवं दूसरे धर्मों के सिद्धांतों का खंडन मिलता है।
“महापारिनिब्बानसुत्त” सूक्त को निकाय का सबसे महत्वपूर्ण सूक्त माना गया है। इसमें बुद्ध के जीवन के अंतिम समय की जानकारी भी है। - मज्झिम निकाय – इसमें बुद्ध के छोटे उपदेश संगृहीत है, और बुद्ध को कही पर साधारण एवं कही दैवीय पुरुष दिखाया गया है।
- संयुक्त निकाय – यह निकाय बुद्ध की संक्षिप्त घोषणाओं को संगृहीत करता है। यहाँ मध्यम प्रतिपदा और अष्टांग मार्ग की जानकारी मिलती है, इसमें “धर्मचक्र प्रवर्तन सुत्त” को महत्वपूर्ण बताया है।
- अंगुत्तर निकाय – इसमें बुद्ध के भिक्षुओं को दिए कथन मिलते है। इस निकाय में 16 महाजनपद उल्लेखित है।
- खुद्दक निकाय – यह कई लघु ग्रंथों का संग्रह करने वाला निकाय है। इन लघु ग्रंथों में बुद्ध के पिछले जन्म की कहानियाँ मिलती है। इसके साथ ही कुछ जातक ग्रन्थ तत्कालीन राजनीति की जानकारी देते है।
अभिधम्म पिटक (Abhidhamma Pitaka)
त्रिपिटक में तीसरा एवं अंतिम भाग अधिधम्म पिटक है, इसमें भगवान बुद्ध की धम्म को लेकर शिक्षाओं का संग्रह है। इस पिटक में बुद्ध की शिक्षा एवं दर्शन का पूरा सार मिल जाता है जो कि सात ग्रंथों में समाविष्ट है।
- धर्मसंगणि – इसमें धर्मो के प्रकार एवं जानकारी दी गई है।
- विभंग – यहाँ धर्म के प्रकार को ही आगे बढ़ाते हुए बताते है।
- धातुकथा – इसमें धातुओं की जानकारी प्रश्न-उत्तर के माध्यम से मिलती है।
- पुग्गलि पुंजति – यहाँ मनुष्य के विभिन्न अंगों की जानकारी मिलती है।
- कथावत्थु – इसमें बौद्ध धर्म के इतिहास की जानकारी प्रश्न-उत्तर के रूप में मिलती है।
- यमन – कथावत्थु में बचे रह गए समाधानों को ‘यमन’ में बताते है।
- पट्टान – यहाँ पर नाम एवं रूप के 24 प्रकार, कार्य – कारण एवं भाव – सम्बन्ध की व्याख्या है।
त्रिपिटक से सम्बंधित प्रश्न
“त्रिपिटक” शब्द से आप क्या समझते है?
त्रिपिटक का मतलब है, त्रि – तीन, पिटक – पेटी यानी तीन पेटी। यहाँ तीन पेटी का तात्पर्य उन पेटियों से है, जिनमे पहले त्रिपिटक के तीन ग्रन्थ रखे जाते थे। पिटक को कुछ विद्वान ‘टोकरी’ भी कहते है।
त्रिपिटक क्या है ?
आसान भाषा में कहे तो यह एक प्रकार का धर्म ग्रन्थ है जिसके अंतर्गत बौद्ध धर्म का इतिहास, नियम, उपदेश एवं जातक कथा के साथ पूजा पद्धति के विवरण है।
त्रिपिटकों की रचना कहाँ हुई है?
इनकी रचना भारत के बिहार राज्य के राजगीर में हुई थी, और इसी क्षेत्र में भगवान बुद्ध के अधिकतर उपदेश हुए थे।
त्रिपिटक क्यों महत्वपूर्ण है?
ये बौद्ध धर्म के सभी नियम एवं अनुशासन-पद्धति को बताते है, जो सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें भगवान बुद्ध के वर्तमान एवं पिछले जन्म के साथ साधक जीवन की जानकारी मिलती है।