पंचायती राज व्यवस्था क्या है – पंचायती राज के कार्य, महत्व, स्तर (Panchayati Raj System in Hindi)

जिस प्रकर से शहरों में नगर एवं उपनगर पालिकाओं को स्वशासन करते देखा जाता है उसी प्रकार से ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj vyavastha) की क्षेत्रीय शासन प्रणाली होती है। हमारे देश में हर साल 24 अप्रैल के दिन पंचायती राज दिवस होता है। साल 1993 में 24 अप्रैल के दिन ही संविधान के 73वें संसोधन अधिनियम, 1992 के अंतर्गत मान्य हुआ था।

हमारा देश दुनिया के बड़े से बड़े लोकतंत्र में से एक है और है स्तर पर लोकतंत्र को सुनिश्चित करने के लिए शक्तियों का विकेन्द्रीकरण करना जरुरी हो जाता है। साल 2004 में Panchayati Raj Vyavastha के विकास प्रवाह को नीचे से ऊपर की तरफ प्रवाहित करने के लिए ‘पंचायती राज’ को अलग मंत्रालय घोषित किया गया।

Panchayati Raj System in Hindi - पंचायती राज व्यवस्था क्या है
Panchayati Raj System in Hindi

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पंचायती राज व्यवस्था क्या है – Panchayati Raj Vyavastha Kya Hai

Panchayati Raj Vyavastha Kya Hai – यह वह व्यवस्था प्रणाली होती है जिसमे ग्रामीण स्तर में विभिन्न काम किये जाते है जैसे शहरों में नगर पालिका करती है। पंचायत राज को गाँव की स्थानीय सरकार की तरह जाना जाता है। ये देश की सरकार की वह शाखा होती है जिसमे सभी गाँव अपनी गतिविधि एवं उन्नति में अपनी जिम्मेदारी रखते है। यह गाँव के इलाको में कल्याणकारी कार्यों के लिए तैयार क्षेत्रीय निकाय है। देश में सबसे पहले साल 1959 में 2 अक्टूबर के दिन पंचायती राज व्यवस्था को शुरू किया था। इसका नेतृत्व तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने किया था। इसके बाद साल 1992 के 73वें संविधानिक संशोधन के बाद अगले वर्ष यानी 1993 में यह देश में मान्य हो गया।

Panchayati Raj Vyavastha – पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास

  • वैदिक युग पुराने शास्त्रों में ‘पंचायतन’ शब्द का प्रयोग होता है जिसका मतलब एक धार्मिक व्यक्ति के साथ पाँच लोगों का समूह है। किन्तु समय बीतने के साथ इन समूहों से धार्मिक व्यक्ति की अवधारण समाप्त हो गई।
  • ऋग्वेद में क्षेत्रीय स्व-इकाइयों की तरह सभा, समिति एवं विदथ का वर्णन मिलता है। ये क्षेत्रीय स्तरपर लोकतन्त्र के अवयव थे। राजा की ओर से कुछ सीमा तक कामों एवं फैसलों को लेकर अनुमति रहती थी।
  • रामायण युग में एक जाति पंचायत थी एवं यहाँ से चुना व्यक्ति राजा की मंत्री परिषद में सदस्य रहता है।
  • महाभारत के शांति पर्व, कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं मनु स्मृति में गाँवों के क्षेत्रीय स्वशासन जैसे प्रमाण मिलते है।
  • महाभारत में गाँव के ऊपर 10, 20, 100, 1000 ग्राम समूह इकाईयाँ के होने की बात है।
  • ब्रिटिश काल में लार्ड रिपन को भारत में क्षेत्रीय स्वशासन का पितामह कहते है चूँकि उन्होंने साल 1882 में क्षेत्रीय स्वशासन से जुड़ा प्रस्ताव दिया था।
  • साल 1919 में ‘भारत शासन अधिनियम’ के अंतर्गत प्रदेशों में दोहरी शासन व्यवस्था बनाई गयी और क्षेत्रीय स्वशासन को ट्रांसफर होने वाले विषयों की सूची में स्थान दिया।
  • साल 1957 में योजना आयोग (वर्तमान में नीति आयोग) के माध्यम से सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अध्ययन के लिए ‘बलवंत राय मेहता समिति’ का गठन हुआ।
  • इसी वर्ष समिति ने अपनी रिपोर्ट को सौप दिया जिसके अंतर्गत तीन स्तर (ग्राम, मध्यवर्ती एवं जिला स्तर) के पंचायती राज की सिफारिश की गयी।
  • साल 1958 में बलवंत राय समिति की सिफारिशों को स्वीकृति मिल गयी।
  • 2 अक्टूबर 1959 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले में पहली तीन-स्तरीय पंचायत का शुभारभ किया।

संविधान 73वां संसोधन अधिनियम, 1992

यह पुराने तंत्र के खिलाफ था कि संघीय सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj Vyavastha) को एक संविधानिक आधार देने के उद्देश्य से सलाहों एवं तरीको को पाने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी। संसद में संविधानिक संशोधन विधेयक के जारी करने की कोशिशों के बाद यह अधिनियम पारित हो पाया। इस अधिनियम के उपबंधों को मुख्यतया आदेशत्मक एवं स्वविवेकशील प्रकृति में वर्णित किया है।

73वां संसोधन अधिनियम की विशेषताएँ

ग्राम सभा की स्थापना

साल 1963 के पंचायत राज आंदोलन के दौरान ग्राम सभा के हालात का मुआइना करने के बाद तैयार रिपोर्ट में सलाह दी गयी थी कि ग्राम सभ को प्रत्येक प्रदेश में संवैधानिक मान्यता मिलती चाहिए। किन्तु सभी प्रदेशों ने अपने पंचायती विधानों में इन उपबंधों को सम्मिलित नहीं किया था। 73वें संशोधन अधिनियम के उपरांत यह कानून बन गया कि सभी प्रदेश अपने पंचायती राज में ग्राम सभा को बनाएंगे। इस प्रकार से सभी वोटर्स गाँव के लोगों की उन्नति में भागीदारी कर सकें।

सही समय एवं समयांतराल पर चुनाव

संशोधित अधिनियम के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं को सही समय पर पंचायत के चुनाव करवाना जरुरी है। किसी स्थिति में पंचायत के भंग होने पर 6 महीने के समय में चुनाव करवाने की जरुरत होगी। किन्तु पश्चिम बंगाल जैसे अपवाद स्वरूप प्रदेशो को छोड़ दे तो देश के अधिकतर प्रदेशों में सही समयांतराल पर चुनाव नहीं हो रहे है। साल 1996 में करीब 10 वर्षो के बाद ही चुनाव सम्भव हो सके है।

कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण

सर्वे के अनुसार इन पंचायतो पर ग्रामीण समाज के शक्ति संम्पन्न वर्गों (जमीदार एवं साहूकार) का अधिपत्य था। इस प्रकार की क्षेत्रीय लोकतंत्रीय एवं स्वशासी संस्थाओं पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के नागरिको की भागीदारी नहीं हो पा रही थी। साल 1978 में दंतवाला समिति का कहना था कि ये पंचायती संस्थाएँ एक ‘दरबान’ की भांति काम कर रही है। और गाँव के विपन्न नागरिको के लाभों को रोकने का कार्य कर रही है। 73वें संशोधन में SC एवं ST वर्गों के लिए आरक्षण को सुनिश्चित किया।

महिला आरक्षण

समाज के कुछ कमजोर वर्गों की भांति ही महिलाओं को भी क्षेत्रीय शासन में बात रखने की स्वतंत्रता कम ही थी। 73वें संशोधन में उम्मीद होती है कि पंचायत में सदस्य एवं अध्यक्षों के दोनों जगहों में महिला उम्मीदवारों (SC एवं ST सहित) को 1/3 हिस्सा आरक्षित होगा।

समुचित आर्थिक संसाधन

देश के पंचायतो में पर्याप्त वित्तीय संशाधनों का अभाव है। सिर्फ विकास के कामों में ही देखें तो समुदाय की परिसम्पत्तियों की देखभाल सही प्रकार से नहीं हो रहा है। चूँकि उनको प्रदेश सरकार से सही मात्रा में निधि नहीं मिल पा रही है। गांव के विकास की प्रशासनिक प्रबंध समिति के अनुसार – “पंचायत राज संस्था की ओर से लिया जाने वाला टैक्स एवं अन्य टैक्स (अनुदान के साथ) सभी प्रदेशों के टैक्स एवं राजस्व का 4% है। इसलिए अधिनियम में प्रदेश वित्त आयोग को निर्मित करने की व्यवस्था दी हुई है।

राज्य चुनाव आयोग

संशोधन के अंतर्गत पंचायत के पर्यवेक्षण, डायरेक्शन एवं स्वतंत्र-भेदभावमुक्त चुनाव करने के लिए ‘राज्य चुनाव आयोग’ के निर्माण की व्यवस्था दी गयी है।

जिला योजना सम्मिलित का निर्माण

संविधान के आर्टिकल 243 ZD में यह प्रावधान है कि पंचायत एवं नगरपालिका क्षेत्रों में बनने वाली योजनाओं के लागू होने के लिए जिले के स्तर पर ‘जिला योजना समिति’ की स्थापना होगी। प्रारूप योजना को बनाते समय, ये क्षेत्रीय योजना, भौतिक और प्राकृतिक संसाधन, स्थिति और पर्यावरण के संरक्षण का भी ख्याल रखेगी। इस तरह से समूचे जिले के विकास योजना को बनाने के लिए जिला स्तर पर संवैधानिक निकाय को बनाया गया है।

पंचायत कार्यकाल की अवधि

पंचायत राज व्यवस्था में एक पंचायत का कार्यकाल 5 सालों का रहता है। और पंचायत को इस कार्यकाल की अवधि से पहले भी भंग कर सकते है। पंचायत के भंग होने की दशा में अथवा कार्यकाल पूर्ण हो जाने पर 6 माह के भीतर ही पंचायत का गठन करना होता है।

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पंचायत राज से जुडी समितियाँ

  • बलवंत राय मेहता समिति (1957)
  • अशोक मेहता समिति (1977-78)
  • जी वी के राय समिति (1985)
  • एल एम सिंधवी समिति (1986)
  • पी के थुंगन समिति (1988)

बलवंत राय मेहता समिति

देश के लोकतंत्र को सशक्त करने के उद्देश्य से सर्कार ने ‘बलवंत राय मेहता समिति‘ को अध्यक्ष बनाते हुए एक समिति को नियुक्त किया। इस समिति ने देश में प्रजा तंत्र के विकेन्द्रीकरण के सिद्धांतों को लागू करवाने की सिफारिशे की। समिति ने देश में तीन स्तर – ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद वाले पंचायती राज व्यवस्था लाने की बात कही।

अशोक मेहता समिति रिपोर्ट

पंचायती राज की व्यवस्था के सन्दर्भ में इस रिपोर्ट को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। बलवंत समिति रिपोर्ट में तीन स्तर की व्यवस्था का वर्णन था तो अशोक मेहता सिमिति की रिपोर्ट में द्रस्त्रीय व्यवस्था का वर्णन है। इस समिति की रिपोर्ट को इस कारण से महत्व दिया जाता है चूँकि इनके रिपोर्ट की सिफारिशों को बहुत ज्यादा स्वीकार किया गया है। ये समिति जिला स्तर और मण्डल पंचायत (सभी ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिनिधियों सहित) का समर्थन करती थी। किन्तु समिति ने जिले स्तर की पंचायत को ज्यादा महत्व देकर बहुत सी जिम्मेदारी सौपी है।

पंचायती राज संस्था के स्तर

  • ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत
  • ब्लॉक स्तर पर पंचायती समिति
  • जिले स्तर पर जिला परिषद

पंचायती राज व्यवस्था में संगठनात्मक संरचना

इस व्यवस्था में गाँव के स्तर पर ‘ग्राम पंचायत’ को स्थापित करते है, इसके ऊपर ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद रहती है –

  • ग्राम पंचायत – इस पंचायत को गाँव के स्तर पर होता है, जिसका उद्देश्य एक खास इलाके का विकास करने में भूमिका अदा करना होता है। इसको ग्राम सभ के माध्यम से चुना जाता है।
  • पंचायत समिति – ग्राम पंचायत क्षेत्र में मौजूद समिति ‘पंचायत समिति’ होती है। विभिन्न संविधानिक पद के जुड़े लोग इस समिति के सदस्य होते है। इस समिति का कार्यक्षेत्र तहसील एवं ब्लॉक लेवल पर रहता है। गठन के 5 वर्षों बाद समिति का चुनवा अनिवार्य है। समिति का सचिव पंचायत समिति का विकास अधिकारी होता है। समिति में लोकसभा एवं विधानसभा के सदस्य, नगरपालिका, सभी प्रधान, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्य इत्यादि रहते है।
  • जिला परिषद – ये श्रेष्ट एवं उच्च परिषद के रूप में काम करती है। ये ग्राम पंचायत एवं समिति के कामों को देखती और जरुरत होने पर मार्गदर्शन देती है। पुरे जिला इस परिषद का कार्य क्षेत्र रहता है। जरुरत पड़ने पर ये नीचे की समितियों को अनुदान देने का काम भी करता है। परिषद में जिलाधिकारी (डीएम) की खास भूमिका रहती है। सभी पंचायत समिति के प्रधान इस परिषद में शामिल रहते है। पंचायत राज में यह परिषद उच्च इकाई की भूमिका में काम करती है और इसके मुख्य काम निम्न समितियों के कार्यों एवं योजनाओं में समन्वय की स्थापना करना है।

ग्राम पंचायत

सरपंच

सरपंच ग्राम पंचायत का प्रधान है जिसको प्रत्यक्ष रूप से ‘मुखिया’ के रूप में निर्वाचित करते है। इसका कार्यकाल पुरे 5 सालों का रहता है। अगर सरपंच को अयोग्यता, कर्तव्यहीनता एवं कदाचार के मामले 2/3 भाग बहुमत के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मिल जाता तो वह पदच्युत हो सकता है।

मुखिया

पंचायत की हर प्रकार से देखरेख मुखिया ही करता है और इसकी कार्यावधि पुरे 5 सालों की रहती है।

पंचायत सेवक

प्रदेश सरकार पंचायत सेवक को नियुक्त करती है और अपने द्वारा तय किये वेतन को भी प्रदान करती है। सभी ग्राम पंचायत का एक ऑफिस रहता है और ये पंचायत सेवक के अंतर्गत आता है। ग्राम पंचायत का विकास पंचायत सेवक पर निर्भर रहता है।

ग्राम रक्षा दल

ग्राम पंचायत के द्वारा ‘ग्रामरक्षा दल’ की स्थापना होती है। इसमें गांव के 18 से 30 साल के स्वस्थ लड़के शामिल रहते है जोकि चोरी, डकैती, बाढ़, महामारी बहुत आकस्मिक घटना के दौरान गाँव की रक्षा करते है। इस रेल के नेता को ‘दलपति’ कहते है।

पंचायत समिति

ब्लॉक स्तर की पंचायत ‘पंचायत समिति’ कहलाती है। बलवंत राय समिति ने प्रचण्ड स्तर पर स्थापित निकाय को ‘पंचायत समिति’ कहते है। उनके अनुसार सभी प्रखंड में एक पंचायत समिति का गठन होगा जिसको उसी प्रचण्ड का नाम देते है। बलवंत समिति ने प्रखण्ड स्तर पर ग्राम स्वशासन की प्रणाली दी है। सभी पंचायत का मुखिया पंचायत समिति में सदस्य होता है। पंचायत समिति के मुख्य विभाग वित्त, जनता के काम, मेडिकल, शिक्षा, खेती सामाजिक सुधार एवं सूचना तकनीकी इत्यादि है।

पंचायत समिति की सदस्य योग्यताएँ
  • वह व्यक्ति भारत देश का नागरिक होगा
  • उसकी आयु कम से कम 25 साल हो
  • समिति के सदस्य सरकार के किसी लाभ पद पर नहीं होंगे।

जिला परिषद

जिले के स्तर पर कार्य करने वाली पंचायत राज प्रणाली को ‘जिला परिषद’ कहते है। इसका काम जिला ग्रामीण क्षेत्र में प्रशासन की निगरानी करना है। परिषद प्रदेश सरकार एवं पंचायत समिति के बीच में कड़ी का कार्य करता है। सभी 50 हजार नागरिको पर एक जिला परिषद का चुनाव सीधे तौर पर करना है। ये परिषद जिले में मौजूद सभी पंचायत समितियों का प्रमुख होता है और इसकी कार्यवधि 5 वर्षों की रहती है।

परिषद के लिए सदस्यों की संख्या को ‘जिला परिषद अधिनियम, 1961’ के अंतर्गत तय किया गया है। इन सदस्यों द्वारा एक-एक अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को चुना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के सभी विकास काम जिला परिषद द्वारा करवाए जाते है। परिषद के मुख्य कार्य निम्न प्रकार से है –

  • पब्लिक मार्गों, पुल एवं निरिक्षण भवनों का निर्माण एवं मेंटिनेंस करना
  • प्रबंधन के लिए जिले की सडको का ग्राम सड़को, अंतग्राम सड़क और जिला सड़क में वर्गीकरण करना।
  • जिन मेलों का प्रबंधन प्रदेश सरकार नहीं करती, उनको ग्राम पंचायत क्षेत्र समिति और जिला परिषद के मेले की तरह वर्गीकृत होता है।
  • लोगों की सेहत के लिए महामारियों को रोकने के उपाय।
  • पेय जल की व्यवस्था करना।
  • अकाल होने पर इसे दूर करने के कार्य करना।
  • ग्राम पंचायत एवं क्षेत्र समिति के कामों में समन्वय कायम करना।

पंचायत राज व्यवस्था के कार्य

चिकित्सा

अपने ग्रामीण क्षेत्र के नागरिको के लिए विभिन्न स्वास्थ्य से जुडी योजनाओं को सही प्रकार से कार्यान्वित करना और सरकार की ओर से चलाई जा रही योजना को गांवों में लागू करना।

शिक्षा

गांवों में बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था देना। साथ ही आर्थिक दृष्टि के कमजोर विद्यार्थियों को वित्तीय मदद देना एयर उनकी छात्रवृति की सही व्यवस्था देना। स्कूल की मरम्मत एवं विद्यार्थियों की पढ़ाई एवं अध्ययन प्रक्रिया को अच्छे से बनाने के काम करना।

खेती एवं पशुपालन

गाँव में लोगों के जीवन यापन का सबसे बड़ा स्त्रोत खेती एवं पशुपालन है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए पंचायत समिति का काम है कि वह खेती एवं पशुपालन की सही व्यवस्था रखें। इसके लिए किसानों को उचित सुविधा भी प्रदान करें। इस प्रकार से किसानों को अपने वित्तीय उन्नति करने एवं इससे जुडी समस्यााओं से निपटने में मदद मिलेगी।

पंचायत राज महत्व

पंचायत राज व्यवस्था के महत्व को संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में अच्छे से वर्णित किया गया है। देश 25 साल पहले पंचायती राज व्यवस्था को शुरू किया गया था। यह (Panchayati Raj Vyavastha) एक आम भारतीय नागरिक को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सत्ता में आने का मौका देता है। इस प्रकार से वह व्यक्ति सत्ता में अपनी भागीदारी कर सके और शासन चलाने में अपना सही योगदान भी दे सके। इस प्रकार से सरकार की ओर से जारी होने वाली सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीण इलाको के नागरिको को सीधे तौर पर मिल जाए।

हमारे देश में ग्राम पंचायत को बहुत खास भूमिका में देखा जाता है जोकि देश में एक संस्था की तरह काम करती है। इसका मुख्य प्रयोजन अलग-अलग प्रोग्रामो की योजना तैयार करना, तालमेल करना एवं सरकारों द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं की देखरेख करना। पंचायती राज देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई अभियान, लघु सिचाई, पब्लिक शौचालय, पीने के पानी की आपूर्ति, टीकाकरण, बिजली आपूर्ति, पब्लिक नल व्यवस्था, पढ़ाई इत्यादि से जुड़े कामों की देखभाल करता है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहे विकास एवं कल्याणकारी कामों की रिपोर्ट भी सरकार को पहुंचाने का काम ग्राम पंचायत करती है।

पंचायत राज में टैक्स एवं शुल्क के प्रावधान

  • भू-राजस्व के पैसो पर प्रत्येक रुपए पर न्यूनतम 25 पैसे एवं अधिकतम 50 पैसे।
  • थिएटर्स, सिनेमाघरों एवं दूसरे मनोरंजन इत्यादि पर 5 रुपए हरदिन फीस।
  • सभी जानवरों पर प्रति वर्ष 3 रुपए शुल्क।
  • हर एक वाहन पर 6 रुपए वार्षिक शुल्क।
  • दुकानों, हाटों, मेलों पर बेचे जाने के लिए रखे सामान को प्रदर्शित करने के लिए 5 रुपए हर दिन शुल्क।
  • ग्राम पंचायत क्षेत्र में पशु के पंजीकरण पर शुल्क।
  • वधशाला एवं पड़ाव की जमीन पर शुल्क।

Panchayati Raj Vyavastha – बजट का क्रियान्वयन

  • अलग-अलग योजनाओं के संचालन हेतु आये बजट की धनराशि के विषय में सूचना को पंचायत ऑफिस के नोटिस बोर्ड में और पंचायत के मुख्य मार्ग में पड़ने वाले भवनों की दीवारों पर लिखना जरुरी होगा।
  • कोई निर्माण काम में कार्यदायी विभाग का काम की साइट पर काम से जुड़े विवरण को नोटिस बोर्ड पर अंकित करना जरुरी होगा।
  • विभिन्न योजनाओं के लाभार्थी व्यक्तियों की लिस्ट को पंचायत भवन के नोटिस बोर्ड पर लगाना होगा। जिला सूचना अधिकारी को भी इन सभी सूचनाओं के प्रकाशन को उपलब्ध करना है।
  • पंचायत के सभी सदस्यों को एकत्रित करके मीटिंग के माध्यम से योजना एवं कार्यक्रमों की जानकारी देनी होगी।
  • किसी सिफारिश को लागू करने से पहले उससे जुडी समिति से स्वीकृति लेनी होगी। सभी ग्राम पंचायत इस उद्देश्य के लिए दीवार लेखन का उपयोग करेगी।
  • सभी विकास खण्ड ग्राम पंचायतवार हर एक कार्यक्रम हेतु तय धन राशि की लिस्ट को विकास खण्ड ऑफिस के बरामदे, सभा कमरा और दूसरे कमरों में प्रदर्शित करेगा।

पंचायत के व्यय के प्रमुख सिद्धांत

पंचायत की उपयोगिता को सुनिश्चित करने के लिए यह नितांत जरुरी हो जाता है कि वह अपने धन का सही प्रकार से व्यय करें। इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रमुख सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक किया गया है –

कार्य के लिए धनराशि की उपलब्धता

किसी भी वस्तु की खरीद एवं कार्य को करवाने से पहले यह तय कर लेना जरुरी है कि इनके लिए बजट में पर्याप्त धनराशि है। किसी एक कार्य के लिए निर्धारित धनराशि को किसी अन्य पर खर्च नहीं करना है।

निर्माण खर्चे की सीमा

पंचायत के किसी जायज काम हेतु, जिसके लिए जानकारी आय-व्यय के अंदाजे से पूर्व में ही दिया हो, अधिकतम उस सीमा तक खर्चे की अनुमति दी जाएगी। जो धनराशि पंचायत में सही अर्थों में मौजूद हो।

खर्च की स्वीकृति

खर्च करने से पहले सक्षम अधिकारी से इसकी स्वीकृति लेनी है। जिन कामों के लिए समितियों की स्थापना हुई है उनके लिए खर्चे की अनुमति पंचायत से सम्बंधित समिति की सिफारिश के बाद मिलेगी।

बिल का भुगतान

पंचायत सचिव द्वारा बिल के पेमेंट का आदेश समिति के द्वारा बिल मिलने पर लिखा जायेगा और पंचायत अध्यक्ष इसको पारित करेगा। इसके बाद पंचायत के अध्यक्ष एवं सचिव के हस्ताक्षर होने के बाद ही धनराशि दी जाएगी। सभी पेमेंट की रसीदे पाने वाले व्यक्ति से ली जाएगी।

पंचायती राज व्यवस्था में विभिन्न समस्या एवं चुनौतियाँ

  • ग्राम पंचायत के लिए कोई सशक्त अर्थ प्राप्ति का आधार नहीं है और प्रदेश सरकारे ही उनकी वित्त प्राप्त के स्त्रोत है। और प्रदेश सरकार से प्राप्त वित्त किसी खास मद में ही खर्चना होता है।
  • बहुत से पंचायतों का चुनाव सही समय पर नहीं हो पाता है।
  • बहुत से पंचायतों में महिला प्रमुख के होने पर विभिन्न काम पुरुष सम्बन्धी के कहने पर होते देखे जाते है। वो महिला सिर्फ नाम के लिए ही प्रमुख रह जाती है। इस प्रकार से पंचायत के लिए महिला आरक्षण का महत्त्व नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है।
  • पंचायत के काम में स्थानीय राजनैतिक दल हस्तक्षेप करते देखे जाते है जिससे उनका काम एवं फैसले प्रभावित हो जाते है।
  • बहुत बार पंचायत के चुने गए सदस्यों एवं प्रदेश सरकार के पदाधिकारियों के मध्य तालमेल रखना कठिन हो जाता है। इससे पंचायत की उन्नति में बाधा आती है।
  • राजनैतिक रूप से कम जागरूकता के कारण पंचायत राज को कमजोरी मिलती है।
  • छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों में पंचायत स्तर पर सदस्यों के भ्रष्टाचार और गबन की बाते हुई है।

पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के उपाय

  • इससे जुडी संस्थाओं को टैक्स वसूलने के कुछ विस्तृत अधिकार मिलने चाहिए। वे स्वयं अपने स्तर पर कुछ आर्थिक साधनों में बढ़ोतरी करे।
  • यद्यपि 14वें वित्त आयोग की ओर से पंचायत के वित्त आवण्टन में वृद्धि कर दी किन्तु अभी भी इस दिशा में व्यापक प्रयास की जरुरत है।
  • पंचायती संस्था को और भी अधिक कार्यपालिका अधिकार देने होंगे एवं बजट के आवण्टन के साथ ही समयान्तराल में प्रमाणित ऑडिट टेस्ट की भी जरुरत है। इस काम के लिए सरकार ने ‘ई-ग्राम स्वराज’ पोर्टल भी शुरू किया है।
  • ग्रामीण क्षेत्र की स्त्रियों को मानसिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक रूप से ज्यादा मजबूत करना चाहिए इससे वे अपने निर्णय स्वविवेक से ले सकेंगी।
  • महिला उम्मीदवारों के लिए 33 प्रतिशत पंचायत शीटें आरक्षित रहनी चाहिए।
  • पंचायत का चुनाव निर्धारित समय पर प्रदेश निर्वाचन आयोग के मानदण्डों के अंतर्गत स्थानीय दलों के हस्तक्षेप के बिना हो जाना चाहिए।
  • पंचायत के प्रदर्शन के आधार पर रैंकिंग प्रदान करने की व्यवस्था होनी चाहिए और शीर्ष रैंक पर रहने वाली पंचायत को पुरस्कार भी मिलना चाहिए।

पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े प्रश्न

पंचायती राज व्यवस्था क्या है (Panchayati Raj Vyavastha Kya Hai)?

हमारे देश की कुल आबादी का 80 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। यहाँ पर क्षेत्रीय शासन को महत्त्व देने के लिए ‘पंचायती राज’ प्रणाली को बनाया गया है। ये देश की पुरानी राजनैतिक संख्याओं में से एक है जोकि 2 अक्टूबर 1952 से समयदायिक विकास कार्यक्रम के अवसर पर शुरू हुई थी।

पंचायती राज व्यवस्था के स्तर कौन से है?

73वें संशोधन के बाद से देश में तीन स्तर वाली Panchayati Raj Vyavastha को क़ानूनी मान्यता मिली। इसके तीन स्तर इस प्रकार से है – ग्राम पंचायत (ग्रामीण स्तर के लिए), पंचायत समिति (मध्य स्तर के लिए) एवं जिला परिषद (जिले स्तर के लिए)।

पंचायती राज व्यवस्था का पितामाह कौन है?

बलवंत राय मेहता को Panchayati Raj Vyavastha का जनक कहते है। बलवंत राय मेहता समिति (1957) के अंतर्गत सामुदायिक विकास कार्यक्रम के कार्य को देखरेख हेतु गठित की गयी थी।

राष्ट्रीय पंचायत दिवस कब होता है?

देश में पंचायती राज मंत्रालय ने 24 अप्रैल के दिन को ‘राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस’ घोषित किया है। इस दिन 73वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग 9 में जोड़ा गया था। इसमें पंचायती राज से जुडी बातें हुई है।

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