भारत ने मलयालम भाषा में कविताएं लिख कर प्रसिद्धि पाने वाले महिला है – बालमणि अम्मा। Balamani Amma अपने लेखन कार्य एवं मातृत्व से जुडी कविताएं लिखने के लिए जानी जाती है। साल 1930 में अपने सबसे यादगार गीत “कुप्पुकाई” से उनकी काफी प्रशंसा हुई और वे लोगों के बीच जानी जाने लगी।
उनके अविस्मरणीय साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें “मलयालम साहित्य की दादी” की उपाधि दी गयी है। देश के ज्यादातर लोग हिंदी की प्रसिद्ध कवियित्रीयो के नाम से परिचित है। जैसे – सरोजनी नायडू, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान इत्यादि, परन्तु बालामणि का नाम शायद कम लोग ही जानते होंगे। बालामणि का जीवन काफी रोचक एवं प्रेरणादाई है, जिसको इस लेख के अंतर्गत बताते का प्रयास किया गया है।
बालमणि को अपने विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिए पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं सरस्वती जैसे विभिन्न सम्मान मिल चुके है। केरल में जन्म लेने वाली कवियित्री बालमणि को सम्मान पूर्वक लोग “मातृभूमि की कवियित्री” कहकर संबोधित करते है।
नालापत बालमणि अम्मा जीवनी
पूरा नाम | बालमणि अम्मा |
जन्म-तिथि | 19 जुलाई 1909 |
जन्मस्थान | पुन्नायुर्कुलम, थ्रीस्सूर, जिला – मालाबार, केरल (भारत) |
धर्म | हिन्दू |
कार्य | कविता लेखन, लेखन एवं उत्कृष्ट अनुवादन |
क्षेत्र | मलयालम साहित्य |
आयु | 95 वर्ष 2 माह 10 दिन |
मृत्यु की तिथि एवं स्थान | 29 सितम्बर 2004 में कोच्चि (केरल) |
बालमणि अम्मा कौन थी?
नालापत बालमणि अम्मा एक महान मलयाली कवियित्री है। इनका कार्यकाल हिंदी साहित्य के छायावादी काल के समान ही पड़ता है। इनके द्वारा अपने जीवन में 500 से भी ज्यादा मलयाली कविताएँ लिखी गयी है जिन्होंने इनको मलयाली भाषा की प्रसिद्ध कवयित्री बना दिया। इनकी मलयाली भाषा पर अच्छी पकड़ रही है जिससे इनको लोगों के बीच मलयाली साहित्य की दादी का स्थान मिला हुआ है।
बालमणि का का जन्म एक परंपरावादी परिवार में हुआ था जिस कारण से इनको विद्यालय जाकर शिक्षा ग्रहण नहीं करने दिया गया। किन्तु बालयकाल से ही इनमें पढ़ाई को लेकर विशेष रूचि रही है, जिस कारण से घरवालों ने घर पर ही शिक्षक की व्यवस्था कर दी। इस प्रकार से घर पर ही शिक्षा ग्रहण करते हुए इनको संस्कृत एवं मलयाली भाषा का अच्छा ज्ञान हो गया।
बालमणि अपने व्यक्तिगत जीवन में आडम्बर रहित मानसिकता वाली आस्तिक महिला थी और नियमित रूप से मंदिर नहीं जाती थी। किन्तु वे नालापत में प्रवास के समय वे कभी-कभी गोविन्दपुरम में अपने इष्ट देवता श्रीकृष्ण के मंदिर ज़रूर चली जाती थी। इनके मामा एन नारायण मेनन ने इनके नालापत वाले घर के साथ में एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया था जहाँ ये जाया करती थी।
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जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
बालमणि का जन्म 19 जुलाई 1909 में भारत के दक्षिणी राज्य के मालाबार जिले के पुन्नायुर्कुलम में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम चित्तंजूर कुंज्जण्णि राजा एवं नालापत कूचुकुट्टी अम्मा (माँ) था। उनका परिवार नालापत नाम से जाना जाने वाला एक परम्परावादी परिवार था।
इनके जीवन की पहली समस्या यह थी कि इनके परिवार में लड़कियों का विद्यालय जाना वर्जित था। इस प्रकार से बालमणि ने अपने जीवन में कोई भी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की यद्यपि बालमणि को पढ़ने में काफी रूचि थी, शायद ये गुण वे जन्म से ही अपने साथ लेकर आयी थी।
उनके इसी शौक को देखते हुए घर पर ही शिक्षण की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार से वे घर पर ही संस्कृत एवं मलयाली भाषा का अध्ययन करने लगी। उन्होंने अपने दार्शनिक मामा एन. नारायण मेनन के मार्गदर्शन में लेखन कार्य शुरू किया। साथ ही अपने पुस्तकालय में मौजूद पुस्तकों से पढ़कर एक कामयाब कवियित्री का सफर तय किया।
उनके घर नालापत की अलमारी में बहुत संख्या में किताबों का संग्रह देखने को मिलता है। खास बात यह है कि उनकी किताबों में कागज की किताबों के साथ ताड़पत्र हस्तलिपि वाली पुस्तकें भी है। इनके संग्रह में ‘बाराहसंहिता’ से टैगोर तक की पुस्तकें मिलती है।
इनके घर पर अक्सर कवि एवं विद्वान आकर कई दिनों रुका करते थे। इन लोगों की उपस्थिति में घर का वातावरण साहित्यिक चर्चाओं से परिपूर्ण रहता है। इस प्रकार के परिवेश ने बालमणि के बाल्यमन को काफी प्रभावित किया गया और वे चिंतन-मनन एवं अध्ययन करने लगी। वे काफी कम आयु में ही कविता का सृजन करने लगी थी और मलयालम के प्रसिद्ध कवि ‘वल्लथोल नारायण मेनन’ से वे काफी प्रभावित हुई थी। बालमणि ने साल 1930 में अपनी पहली कविता ‘कुप्पूकाई’ प्रकाशित कर दी थी।
बालमणि का विवाह एवं परिवार
साल 1928 जीवन के 19 वर्ष के पड़ाव में ही बालमणि का विवाह वी. एम. नायर से हो गया। इनके पति मलयालम के व्यापक रूप से पढ़ें जाने वाले समाचार पत्र मातृभूमि के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं मैनेजिंग एडिटर बने। वे एक ऑटोमोबाइल कंपनी ‘वेलफोर्ट ट्रांसपोर्ट कंपनी’ में भी सीनियर ऑफिसर रहे।
अपनी शादी के 4 वर्षों के बाद ही वे कोलकाता में बसने के लिए चले गए। इन्होंने 24 साल की आयु में पहली संतान कमला सुरय्या को जन्म दिया। इनके परिवार में चार संताने है – कमला सुरय्या, सुलोचना, मोहनदास एवं श्यामसुंदर।
इनके पति ने कंपनी से नौकरी छोड़कर वापिस केरल आकर मातृभूमि समाचार पत्र में काम शुरू किया। इस प्रकार से इनका परिवार थोड़े समय के लिए कोलकाता रहकर वापस आ गया। साल 1977 में इनके पति का निधन हो गया। अपने 50 सालों के दाम्पत्य जीवन का प्रभाव इनकी कुछ कविताओं जैसे – अमृत गमया, स्वप्न, पराजय में भी देखा जा सकता है।
इनकी पुत्री कमला दास अंग्रेजी एवं मलयालम भाषा की प्रसिद्ध लेखिका है, जिन्हे अपनी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ से काफी लोकप्रियता मिल चुकी है। उन्हें अच्छे साहित्य के लिए साहित्य में नोबल पुरस्कार के लिए नामाँकित किया गया था। कमला के साहित्यिक लेखन में अम्मा का काफी प्रभाव रहा है।
बालमणि अम्मा का साहित्यिक कार्य
बालमणि अम्माजी को केरल की एक राष्ट्रवादी कवियित्री एवं साहित्यकार के रूप में ख्याति मिली हुई है। उन्होंने अपनी कविताओं में राष्ट्रीयता को काफी स्थान दिया है। इसके अतिरिक्त वो वात्सल्य, ममता, मानव प्रेम इत्यादि के कोमल भाव को अपनी कविताओं के माध्यम से उकेरने का काम करती रही है। उनका साहित्य स्वतंत्रता के दीपक की रौशनी से भी अछूता नहीं रह सका है। साल 1929-39 में अपने किशोर से जवानी के समय में उन्होंने देश भक्ति, गाँधीवादी एवं आज़ादी के विचारों से भरपूर कविताओं का सृजन किया।
भारत की स्वतंत्रता में उन्होंने अपनी लेखनी से कविताएं निकालकर अपने चिंतन एवं भाव को शब्दों का रूप अच्छे से दिया था। देश में स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही उन पर गाँधीजी का प्रभाव था, इस कारण से वे खादी के कपड़े पहनती थी और चरखा चलाकर अपना समर्थन प्रकट करती थी। इस समय में उनकी कविता ‘गौरैया’ काफी प्रसिद्ध हुई थी। इस कविता को केरल की पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ाया जाता है।
उनके किशोर जीवन में लिखी गयी कविताएं उनके विवाह एक पश्चात पुस्तकों के माध्यम से लोगों के बीच पहुँची। उनके पति में भी साहित्य के सृजन कार्य में पर्याप्त समय एवं मौका देने का कार्य किया। उनके घर पर दिन -रात कार्य एवं बच्चों की देखरेख के लिए पर्याप्त नौकर लगे हुए थे।
इस प्रकार की व्यवस्था में उनको अपना अधिकतर समय लेखन कार्य के लिए समर्पित करने के लिए प्रोत्साहन दिया गया था। बालमणि अपने विवाह के बाद पति के काम के कारण कोलकाता आ गयी थी। यह के घर में रहने के अनुभवों को उन्होंने अपने काव्य में अच्छे से जगह दी। इस प्रकार से यहाँ की पहली कविता ‘कलकत्ते का काला कुटिया’ नांम से सामने आयी, इस कविता के लिए उनके पति ने ही अनुरोध किया था।
यद्यपि उनके द्वारा अपने आत्मचिंतन से रची गयी पहली कविता ‘मातृचुंबन’ है। इसके बाद के समय में उन्होंने अपनी कविता में गर्भ धारण, प्रसव एवं शिशु-पोषण इत्यादि स्त्रैण अनुभवों को स्थान दिया है। इस दौर से एक दशक बाद बालमणि ने अपने काव्य चिंतन को घर एवं सामान जीवन की परिधी से निकालकर आध्यात्म के भावो तक पहुँचाया। तब तक यह आयाम उनके काव्य में अछूता था।
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बीमारी एवं मृत्यु का विवरण
बालमणि अम्मा अपने जीवन के अंतिम दिनों में 5 वर्षों तक अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित रही और 29 सितम्बर 2004 के दिन कोच्चि, केरल में इनका निधन हो गया।
बालमणि अम्मा की कुछ प्रमुख कविता-संग्रह
नागरथिल | मजूविंते कथा | निवेद्दम |
कुलक्कड़विली | अंबालाथिलेक्कू | मुतासी |
वेयिलागमका | अमृतंगयम | धर्ममार्गथिल |
मय्यत | सोपानम | प्रभाकुरम |
कुदुम्बिनी | श्रीह्रदयम् | भवनायिल |
संध्या | कलिककोट्टा | उँजालिनमेल |
लोकतरंगलील | वेलीचथिल | मुथास्सी |
प्रणमम | अवार पादन्नू |
बालमणि अम्मा को मिले पुरस्कार एवं सम्मान
बालमणि अम्मा को सरकार की ओर से देश का तीसरा सबसे बड़ा गैर-सैन्य सम्मान ‘पद्म भूषण’ दिया गया है। इसी प्रकार से बच्चों के लिए उनके प्रेम एवं कविता के लिए उन्हें ‘अम्मा’ एवं ‘मुथास्सी’ की उपाधि दी गयी है। उनके साहित्यिक जीवन में मिले बहुत से प्रसिद्ध पुरस्कारों की सूची इस प्रकार से है –
क्रमांक | पुरस्कार का नाम | वर्ष |
1 | सरस्वती सम्मान | – |
2 | मुतासी के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार | 1963 |
3 | मुतासी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार | 1965 |
4 | आसन पुरस्कार | 1989 |
5 | वैलेटोल पुरस्कार | 1993 |
6 | ललिताम्बिका अंधर्जन पुरस्कार | 1993 |
7 | शिक्षा पुरस्कार | 1995 |
8 | एन.वी. कृष्णा वारियर अवार्ड | 1997 |
9 | पद्म भूषण पुरस्कार | 1987 |
नालापत बालमणि अम्मा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- बालमणि अम्मा को उनकी कविताओं के कारण ‘मातृत्व की कवियित्री’ भी कहते है।
- उनके द्वारा साल 1959 से 1986 के दौरान लिखी गयी कविताओं को ‘निवेधम’ शीर्षक के अंतर्गत संगृहीत किया गया है।
- बालमणि का विवाह मात्र 19 वर्ष की आयु में वी. एम. नायर से हो गया था।
- इनकी पुत्री भी इन्ही जैसी प्रसिद्ध कवयित्री बनी जिनका साल 2009 में 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
- देश के प्रथम भू-राजनीति के प्रोफेसर माधवदास नलपत इनके पौत्र है।
- साल 1987 में बालमणि को देश का तीसरा सर्वोच्च सम्मान ‘पद्मभूषण’ दिया गया था।
- साल 1984 में बालमणि का नामांकन साहित्य के नोबल पुरस्कार के लिए हुआ।
- केरल में इनके नाम पर लेखकों के लिए प्रसिद्ध पुरस्कार ‘बालमणि अम्मा पुरस्कार’ को कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय बुक फेस्टिवल समिति ने बनाया है।
- विश्व प्रसिद्ध सर्च इंजन गूगल ने भी अम्मा के 113वीं जयंती पर उनके सम्मान में गूगल डूडल प्रसारित किया था।
- इन्होंने किसी भी स्कूल से औपचारिक शिक्षा नहीं ली है यद्यपि अपने घर पर ही संस्कृत एवं मलयालम का शिक्षण प्राप्त किया है।
- इनके घर नालापत में पुस्तकों का अच्छा संग्रह देखा जाता है।
- बालमणि का मनपसंद रंग लाल एवं सफ़ेद है और इनको साड़ी पहनना काफी पसंद है।
नालापत बालमणि अम्मा से सम्बंधित प्रश्न
नालापत बालमणि अम्मा कौन थी?
बालमणि एक लोकप्रिय मलयाली भाषा की कवयित्री है जिन्हे अपने उत्कृष्ट साहित्यक योगदान के लिए काफी सम्मान एवं पुरस्कार मिल चुके है। इन्हे सामान्य जन मातृत्ववादी कवयित्री के रूप में पहचानते है।
बालमणि की पहली प्रकाशित कविता कौन सी थी?
बालमणि ने काफी कम आयु में कविता लेखन शुरू किया था। इनकी पहली कविता ‘कुप्पुकाई’ के नाम से साल 1930 में प्रकाशित हो गयी थी, तब इनकी उम्र मात्र 21 वर्ष थी।
बालमणि की बेटी कौन है?
इनकी बेटी का नाम कमला सुरय्या है, जोकि नामी साहित्यकार है। इनको अपनी साहित्यिक रचना ‘माई स्टोरी’ से बहुत लोकप्रियता मिली थी और इनका नाम साहित्य के नोबल पुरस्कार के लिए नामित हुआ था।
बालमणि अम्मा का देहांत कब हुआ?
इनका देहांत 5 वर्षों तक अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित रहने के बाद 29 सितम्बर 2004 के दिन कोच्चि, केरल में हुआ।