गुजरात में साबरमती आश्रम ऐसा स्थान है जहाँ से देश की आजादी के लिए बहुत से लोगो को जागरूक एवं जोड़ने का काम गांधीजी ने किया था। खासकर गाँधी जी की विचारधारा को मानने वाले एवं उनके अनुयायियों के लिए साबरमती आश्रम एक तीर्थ स्थान की जगह रखता है।
इस आश्रम में गांधीजी एवं उनके अनुयायी अंग्रेजी सरकार से आजादी के लिए योजना बनाने का कार्य किया करते थे। इस आश्रम में गांधी ने व्यक्तिगत रूप से साल 1917 से 1930 तक एक समय व्यतीत किया। साबरमती नदी से 4 मील दूर स्थित साबरमती आश्रम में ही गाँधीजी ने देश को नयी दिशा देने का काम किया था।
इस लेख के अंतर्गत गुजरात के साबरमती आश्रम के इतिहास से जुडी बहुत सी जानकारियों को दिया जायेगा।
साबरमती आश्रम का इतिहास
गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका के आंदोलन को करने के बाद देश में वापिस आये। यहाँ आकर उन्होंने अपने पहले आश्रम को अहमदाबाद के कोचरब में जीवनलाल के बँगले में बनाया था। सबसे पहले उन्होंने इस आश्रम को सत्याग्रह आश्रम नाम दिया था। इस आश्रम की स्थापना उन्होंने 25 मई 1915 के दिन की थी।
लेकिन गाँधीजी की योजना इस आश्रम में खेती-बाड़ी और पशुपालन के कार्य को भी करने की थी। ये कार्य इस आश्रम में नहीं हो सकते थे। इसी कारण से उन्होंने दो सालो के बाद ही इस आश्रम को 17 जून 1917 के दिन साबरमती नदी के किनारे स्थापित करने का फैसला कर लिया। इसी कारण से आने वाले समय में इस आश्रम का नाम ‘साबरमती आश्रम’ हो गया।
ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर ऋषि दधीचि का भी आश्रम हुआ करता था। इन ऋषि ने ही देव-असुर संग्राम में अपनी अस्थियों को देवताओं को दे दी थी। ये जगह एक श्मशान एवं जेल के बीच में स्थित है। इसी आश्रम में रहते हुए गांधीजी एवं उनके अनुयायियों ने आजादी के लिए संघर्ष किया। ये बात ही इस स्थान को महत्वपूर्ण है।
इसी प्रकार से अंग्रेजी सरकार ने भारत में ‘नमक कानून’ को पारित किया। इसके विरोध में गांधीजी ने अपने अनुयानियों के साथ दांडी यात्रा को इसी जगह से शुरू किया था। इसके लिए वे दांडी पहुँचे थे और इस नमक के कानून की अवज्ञा की थी। ऐसे ही ये आश्रम गाँधी के कुछ खास अनुयानियों का स्थल भी है।
राष्ट्रीय स्मारक
गांधीजी का देहांत होने के बाद उनकी स्मृतियों को जीवित रखने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय स्मारक को भी यही स्थापित किया गया है। गाँधी स्मारक निधि नाम के संघठन ने भी यह फैसला किया है कि वे आश्रम में गांधीजी से सम्बंधित भवनों को सुरक्षा देगे।
इसी कारण से साल 1951 में साबरमती आश्रम सुरक्षा एवं स्मृति न्यास की शुरुआत हुई। ये न्यास गांधीजी के आवास, ह्रदयकुञ्ज, उपासनाभूमि (प्रार्थना स्थल) एवं मगन आवास के लिए सुरक्षा के काम करता है।
गाँधीजी संग्रहालय
ह्रदयकुञ्ज में गाँधीजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा पूरे 12 सालों तक रहे थे। 10 मई 1963 के दिन हृदयकुञ्ज के पास ही गाँधी स्मृति संग्रहालय की स्थापना की थी। संग्रहालय में गांधीजी के 400 लेख की मूल प्रतियाँ, बाल्यकाल से देहांत तक की फोटो का बड़ा संग्रह, देश एवं विदेश में दिए भाषणों के 100 संग्रह को प्रदर्शित किया गया है।
इस संग्रहालय के एक पुस्तकालय में आश्रम की 4,000 किताबे एवं महादेव देसाई की 3,000 किताबे भी संग्रहित है। संग्रहालय में गांधीजी के द्वारा लिखे और उन्हें प्राप्त हुए 30,000 लेटर्स की अनुक्रमणिका भी है। इनमे से कुछ अपने मूल रूप में है और कुछ को माइक्रोफिल्म में संजोया गया है। गाँधीजी की जीवनी से उनके जीवन से जुड़े काफी तथ्य मिल सकते है।
फोटो गैलरी
- संग्रहालय में एक जगह है जो ‘माय लाइफ इस माय मैसेज गैलरी’ है यही गांधीजी की जिंदगी के सम्बंधित दो बड़ी पेंटिंग है। इनमे गांधीजी के जीवन को नजदीक से देख सकते है। साथ में गांधीजी के जीवन घटनाओं के जुड़े फोटो भी मिलते है।
- गांधीजी ने अपने जिन्दगी के 15 वर्ष अहमदाबाद में व्यतीत किये थे। इस दौरान की यात्राओं एवं घटनाओं को गैलरी में दर्शाया गया है।
- बड़े कलाकारो के द्वारा हस्त निर्मित सुन्दरतम कलाकृतियों से इस स्थान को सजाया गया है।
निवास स्थान
1915 से 1933 तक गाँधीजी इस आश्रम में रहे थे। उस समय वे एक छोटी सी कुटिया में रहा करते थे जिसको अब ‘हृदय-कुञ्ज’ कहते है। ये इतिहास की दृष्टि से भी बहुत महत्व का स्थान है चूँकि यही पर उनकी मेज, पत्र, खादी का कुर्ता इत्यादि मिलते है।
हृदय-कुञ्ज के दाई तरफ ‘नंदिनी’ है। ये अब ‘अतिथि-कक्ष’ भी है जहाँ पर देश-विदेश के आने वाले मेहमान रुकते है। इसी के पास विनोबा भावे की कुटिया ‘विनोबा कुटिया’ भी है जिसमे वे एक समय ठहरे थे।
ह्रदय कुंज
ये कुटिया आश्रम के मध्य स्थान पर स्थित है जिसका नाम ‘काका साहब कालेकर’ ने दिया था। 1919 से 1930 के मध्य का समय गांधीजी ने इसी स्थान पर व्यतीत किया था। इसी जगह से गाँधीजी ने अपनी दांडी यात्रा भी शुरू की थी।
विनोबा-मीरा कुटीर
1918 से 1921 के मध्य इसी स्थान पर आचार्य विनोबा भावे में कुछ माह तक निवास किया था। इसी प्रकार से गाँधीजी की विचारधारा से प्रभावित हुई ब्रिटिश महिला मेडलीन स्लेड भी इसी स्थान पर रही थी। गाँधीजी ने इस महिला का नाम ‘मीरा’ दिया था। ऐसे ही इन दोनों ही लोगो के नाम पर इस कुटिया को इसका नाम दिया गया था।
प्रार्थना भूमि
यहाँ पर आकर हर दिन आश्रम में रहने वाले लोग प्रातः एवं साय काल की प्रार्थना करते है। ये भूमि गाँधीजी के ऐतिहासिक फैसलों की भी गवाह रह चुकी है।
नंदिनी अतिथिगृह
इस आश्रम से ही कुछ दूरी में गेस्ट हाउस नंदिनी है। इस स्थान पर देश के विभिन्न स्वतंत्रता सेनानी जैसे – जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, दिनबंधु एंड्रयूज एवं रविंद्रनाथ इत्यादि अहमदाबाद आने पर रुका करते थे।
उद्योग मन्दिर
गाँधी जी ने देश को स्वतंत्र करने के लिए हाथो से बने खादी को तैयार करने की योजना बनाई थी। ऐसे उन्होंने मानवीय परिश्रम को ही आत्मनिर्भरता एवं आत्मसम्मान का प्रतीक बताया था। इसी स्थान पर रहकर गांधीजी ने अपने वित्तीय सिद्धांतो को व्यवहारिक रूप प्रदान किया था। इसी जगह पर उन्होंने चरखे पर सूत कातने के काम के द्वारा कपडा बनाने को शुरू किया था।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले अनुयायी भी इसी आश्रम में निवास करते थे। ये लोग यहाँ पर चरखा चलाने एवं खादी के कपडे बनाने का प्रशिक्षण लेते थे। 1918 में अहमदाबाद की एक कपडा मिल के श्रमिकों की हड़ताल के समय ही आश्रम में ‘उद्योग मन्दिर’ को स्थापित किया गया।
इसी के साथ ही यहाँ की कस्तूरबा रसोई भी लोगो के आकर्षण का केंद्र रहती है। इस रसोई में उनके द्वारा प्रयोग किये गया चूल्हा, बर्तन एवं अलमारी को देख सकते है।
साबरमती आश्रम से जुड़े प्रश्न
साबरमती आश्रम की स्थापना कब हुई?
1917 में सत्याग्रह आश्रम को साबरमती के तट पर स्थानांतरित करके ‘साबरमती आश्रम’ बनाया गया था।
साबरमती आश्रम की क्या विशेषताएँ है?
यहाँ गाँधीजी ने अपनी पत्नी के साथ 12 वर्ष व्यतीत किया और सत्याग्रह एवं दांढी मार्च जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी किये। अपने आन्दोलनों के कारण ही सरकार ने इसके एक ‘राष्ट्रीय स्मारक’ भी घोषित किया है।
साबरमती आश्रम कहाँ है?
ये भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद जिले के पश्चिमी क्षेत्र में साबरमती नदी के किनारे पर है।