स्वामी विवेकानंद पर निबंध : – स्वामी विवेकानंद को एक महान भारतीय हिन्दू संत एवं वक्ता के रूप में भारत एवं विदेशों में पहचान मिली है। उन्होंने (Swami Vivekananda) अपने सन्देश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए रामकृष्ण मिशन की भी स्थापना की थी।
वे अपने विचारों से भारत के नौजवान को जगाने की इच्छा रखते थे किन्तु कम आयु में निधन हो जाने के कारण वे थोड़ा ही प्रयास कर सके। परन्तु उनके जीवन काल में स्थापित किये गए मठ आज भी साहित्य के माध्यम से उनके विचारों को आज की पीढ़ी के पास पहुँचाने का कार्य कर रहे है। इस लेख में आपको स्वामी विवेकानंद के जीवन का वर्णन करने वाले निबन्ध मिल रहे है।
स्वामी विवेकानंद पर निबंध – 1
प्रस्तावना
स्वामी विवेकानंद का नाम उन महान व्यक्तियों में आता है, जिन्होंने देश का सम्मान विदेशी धरती पर बढ़ाने का काम किया है। 11 सितम्बर के दिन शिकागो में दिए आध्यात्मिक भाषण की वजह से तो वे काफी लोकप्रिय हो गए थे। वे विदेशों में भारत के प्राचीन सनातन धर्म एवं इसकी हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर गए। इनका जीवन भारतीयों के लिए भी बहुत शिक्षा एवं लाभप्रद है।
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद का जन्म बंगाल राज्य के कोलकाता शहर के शिमला पल्लै में 12 जनवरी 1863 में हुआ था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट में वकील हुआ करते थे। इनकी माँ का नाम भुवनेश्वरी देवी था। विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था।
ये किशोर आयु से ही आध्यात्मिक की जिज्ञासा के लिए बहुत से स्थानों पर गुरु की तलाश करने लगे थे। कुछ ही समय बाद ये दक्षिणेश्वर काली के मंदिर में पुजारी का कार्य करने वाले रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आकर उनके शिष्य बन गए।
वे ऐसे भारतीय थे जिन्होंने अमेरिका एवं यूरोप को हिन्दू दर्शन एवं योग के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने ग़ुलाम भारत को पुन जीवित करने का भी प्रयास किया। अपने समय में दिए भाषणों को पढ़कर आज के नौजवान भी काफी प्रेरित होकर अच्छा करने का प्रयास करते है। साल 1893 में उन्होंने शिकागो शहर में विश्व धर्म महासभा के मंच से विश्व को हिन्दू धर्म का परिचय दिया था।
विवेकानंद पर अपने वकील पिता के तर्क एवं माँ के आध्यात्मिक स्वभाव का प्रभाव एकसाथ हआ। वे अपनी माता के आत्मसंयम से प्रभावित हुए और आगे चलकर एक अच्छे ध्यानी भी बन गए। अपने गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने समाधि के तरीके भी जाने। अपनी युवावस्था में उनमें अद्भुत नेतृत्व एवं भाषण क्षमता थी।
जवानी के दिनों में ही वे ब्रह्मा समाज से जुड़कर ‘रामकृष्ण परमहंस’ के संपर्क में आ गए थे। वे अपने गुरु भाइयों के साथ ही ‘बोरानगर’ मठ में रहकर साधना करते थे। यहाँ से निकलकर वे भारत भ्रमण करने लगे और दक्षिण भारत के तिरुवंतपुरम में पहुँचकर शिकागो धर्म सम्मेलन में चले गए।
वे अपने विचारों के लिए बहुत सी जगहों एवं समूचे विश्व में प्रसिद्ध हुए। 4 जुलाई 1902 के दिन वे अपने कक्ष में ध्यान करने के लिए कहकर गए और इसी समय उनकी मृत्यु भी गयी।
उपसंहार
स्वामी विवेकानन्द ने अपने वेदांती ज्ञान एवं आध्यात्मिक अनुभव से समूचे विश्व को प्रभावित करने का प्रयास किया। वे विदेश ही नहीं भारत के लिए भी बहुत बड़ा मिशन रखते थे हालाँकि कम आयु में ही वे दुनिया छोड़ गए। किन्तु आज भी उनके विचार पुस्तकों के माध्यम से भारतीय नौजवान को मार्ग दिखा रहे है।
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स्वामी विवेकानंद पर निबंध – 2
प्रस्तावना
बचपन में सामान्य सा दिखने वाले नरेंद्रनाथ दत्त ने अपने ज्ञान एवं दर्शन से विश्व भर में स्वयं को स्वामी विवेकानंद के रूप में प्रतिष्ठित किया। देश के दर्शन एवं योग से दुनिया को परिचित करके विश्व में भारत के नाम को और अधिक स्वर्णिम करने का कार्य किया है। अपने व्यक्तित्व एवं विचारों के कारण ही अपनी मृत्यु के बाद भी वे भारतीय युवाओं के प्रेरणा स्रोत बने हुए है।
देश के महापुरुष – विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 में ब्रिटिश बंगाल के कोलकाता शहर में मकर संक्रांति पवित्र त्यौहार के दिन हुआ था। इनके माता-पिता ने इनका नाम ‘नरेंद्र दत्त’ रखा था और घर में इनको नरेंद्र या नरेन कहकर पुकारा जाता था। इनके पिता कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत का काम करते थे और इनकी माता भुवनेश्वरी देवी एक आध्यात्मिक प्रवृति की महिला थी। विवेकानंद बचपन में 9 भाई-बहन थे। इस प्रकार से बालक नरेंद्र पर पिता के तार्किक एवं माता के धार्मिक दृष्टिकोण का गहरा प्रभाव हुआ।
विवेकानंद बाल्यकाल से ही काफी धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे वे अक्सर हिन्दू मंदिरों में भगवान की प्रतिमाओं के सम्मुख ध्यान करते देखे जाते थे। साथ ही वे विभिन्न जगहों पर जाकर साधु एवं सन्यासियों से प्रश्न एवं चर्चा के माध्यम से अपनी धार्मिक जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास करते थे।
बालक नरेंद्र अपनी शरारती स्वभाव के लिए भी काफी प्रसिद्ध थे और वे अपने माता-पिता के भी नियंत्रण में नहीं आ पाते थे। उनकी माता कहती थी – ‘मैंने तो भगवान शिव से एक पुत्र की प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक दे दिया।’
विवेकानन्द को अपने घर में अच्छी शिक्षा पाने का अवसर भी मिला वे 8 वर्ष (1971 में) की आयु में चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था एवं 1879 में प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ने गए। वे अपने विद्यार्थी जीवन में सामाजिक विज्ञान, इतिहास, दर्शन, धर्म-कला एवं साहित्य जैसे विषयों में काफी अच्छे थे। इसके साथ ही उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपियन इतिहास, पाश्चात्य दर्शन, संस्कृत शास्त्रों एवं बांग्ला साहित्य को भी अच्छे से पढ़ा था।
विवेकानंद का दर्शन
विवेकानंद बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के महापुरुष थे उन्होंने प्राचीन हिन्दू शास्त्रों जैसे – वेद, उपनिषद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, पुराण इत्यादि का अच्छा अध्ययन किया था। इसके अतिरिक्त उनकी रूचि भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेलकूद, व्यायाम एवं दूसरी क्रियाओं में भी थी।
उनकी प्रतिभा को देखते हुए महासभा संस्था के प्राचार्य विलियम हैस्टे ने कहा था – ‘नरेंद्र वास्तव में प्रतिभाशाली है’। उनमें हिन्दू धर्म के लिए काफी उत्साह था और इसी कारण से वे देश के भीतर एवं बाहर हिन्दू दर्शन को लेकर लोगो की सोच को प्रभावित करने में सफल हुए।
विवेकानंद विदेशी लोगो के बीच में ध्यान, योग एवं व्यक्तित्व विकास के लिए भारतीय दर्शनशास्त्र में बताये मार्ग को लेकर गए। वे अपने समय में देश के लोगो के लिए राष्ट्रवादी आदर्श भी रहे। उनके राष्ट्रवादी विचारों से विभिन्न भारतीय नेता भी प्रभावित हुए।
देश के आध्यात्मिक नेता एवं उच्च शिक्षित श्री अरविंद ने भी विवेकानंद की प्रशंसा की थी। देश की प्रमुख नेता गांधी जी ने भी विवेकानंद की तारीफ की थी। इनके विचार जनता को हिन्दू धर्म के ठीक मतलब को बताने का कार्य करते है, साथ ही भारतीय दर्शन जैसे वेद, उपनिषद एवं वेदांत को लेकर पश्चिम के दृष्टिकोण को भी बहुत बदला था।
उनके भारतीय दर्शन को लेकर किये प्रयासों के कारण ही चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (देश की आज़ादी के बाद पहले गवर्नर जनरल) ने भी उनके विषय में कहा था – ‘स्वामी विवेकानन्द ही वे व्यक्ति है जिन्होंने हिन्दू धर्म एवं भारत को बचाया है।’
लोकप्रिय नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भी विवेकानन्द को ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ की संज्ञा दी थी। स्वामीजी के विचारों से ही कुछ प्रसिद्ध हस्तियां जैसी बाल गंगाधर तिलक, श्रीअरबिंद घोष, बाघा जतिन इत्यादि भी काफी प्रेरित हुए।
ऐसी मान्यता है कि अपने बेल्लूर मठ में 3 घण्टो तक ध्यान करने के दौरान ही स्वामी विवेकानन्द ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
उपसंहार
स्वामी विवेकानंद का जीवन हर सामान्य संघर्षशील मनुष्य के लिए काफी प्रेरणादायक है। स्वामी जी के जीवन बहुत सी आर्थिक एवं सामाजिक बाधाएँ थी किन्तु उन्होंने कभी भी धर्म एवं सत्य के पथ को नहीं छोड़ा। साथ ही वे अन्य लोगो के लिए भी ज्ञान, धर्म एवं सहायता देने वाले महामानव बने रहे। आज भी भारतीय लोग विवेकानन्द को विदेशों में भारतीय दर्शन का बोध करवाने वाले महात्मा के रूप में याद करते है।
स्वामी विवेकानंद से जुड़े प्रश्न
स्वामी विवेकानंद के बचपन का क्या नाम था?
नरेंद्रनाथ दत्त।
स्वामी विवेकानन्द का सन्देश क्या है?
वे कहते थे – मानव जाति की सेवा निःस्वार्थ हो चूँकि नर सेवा ही नारायण सेवा है। वे राष्ट्र एवं इनसे लोगो पर अपना सबकुछ अर्पित करने और निर्धन एवं जरुरतमन्द लोगो की सेवा को सबसे अच्छा मानते थे।
स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध भाषण क्या है?
मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूँ जो विश्व को सहिष्णु एवं सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाती है। हम केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता के ऊपर भरोसा नहीं करते वरना हम सभी धर्मों को सचमुच में स्वीकारते है। मुझे गर्व है कि हमारे देश ने सभी धर्मों से पीड़ित हुए लोगो को अपने यहाँ जगह दी।