मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास | Mehandipur Balaji Temple History in Hindi

हमारे देश में भक्तो पर कृपा करने और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले बहुत से तीर्थ स्थल एवं मंदिर प्रसिद्ध है। इसी प्रकार से मेहंदीपुर बालाजी मंदिर को भी काफी मान्यता मिली हुई है। यहाँ पर देश और विदेश से भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। खास तौर पर जिस किसी व्यक्ति के ऊपर भूत-प्रेत की बाधा हो रखी है उसे एक बार इस मंदिर (Mehandipur Balaji Temple) में दर्शन जरूर कर लेना चाहिए। दूर-दूर से भक्त यहाँ आकर दर्शन करके प्रसाद ग्रहण करते है और भगवान से अपने जीवन के लिए चमत्कार एवं आशीर्वाद की कामना रखते है। यह मंदिर 2 पहाड़ियों के बीच में मौजूद है और एक भक्त को बालाजी की कृपा के लिए दर्शन के बाद 41 दिनों तक कुछ विशेष नियमो का पालन करना होता है।

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास | Mehandipur Balaji Temple History in Hindi
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर का इतिहास

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर

इस मंदिर में आने वाले लोगों को बहुत सी विचित्र चीजों को देखने का अवसर मिलता है। बालाजी के मंदिर (mehandipur balaji temple) में प्रेतराज सरकार एवं भैरव बाबा के भी मंदिर बने है। सभी भक्त बालाजी के दर्शन के बाद इन मंदिरों में भी दर्शन लेकर आरती एवं प्रसाद ग्रहण करते है। यहाँ पर किसी साये से पीड़ित व्यक्ति के लिए पेशी अर्थात साये को दूर करने वाले कीर्तन को भी किया जाता है। इस लेख में आपको विचित्र कृपा शक्ति रखने वाले इस प्राचीन चमत्कारिक मंदिर के इतिहास के विषय में जानकारी मिलेगी।

मंदिर के हनुमानजी की महिमा

पुराने शास्त्रों में भगवान हनुमानजी के लिए 7 करोड़ मन्त्रों में पूजन का वर्णन मिलता है। हनुमानजी पुरे भारत में पूजे जाने वाले देवता में से एक है चूँकि ये अपने भक्तों के कष्ट हरने एवं उन्नति का कार्य करते है। हुनुमानजी को बहुत से महान आत्माओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है इस प्रकार से उनमे 5 देवताओं का तेज़ विधमान है। अपने शौर्य एवं पराक्रमी बल के कारण उनके ‘बालाजी’ की उपाधि मिली हुई है। इस नाम से प्रसिद्ध मंदिरों में पुरे भारत देश में भक्तो का जनसैलाब देखने को मिलता है। इसी प्रकार का एक प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के दौसा जिले के मेहंदीपुर में भी मौजूद है। ये मंदिर एक हजार वर्ष प्राचीन बताया जाता है और इसमें स्थित हनुमान जी की प्रतिमा को स्वतः निर्मित कहते है।

ये मंदिर उत्तर भारत में काफी मान्यता रखता है और इसके प्रथम महंत श्री गणेशपुरी महाराज थे। यहाँ के पुजारी हमेशा सात्विकता एवं शाकाहार का पालन करते हुए धार्मिक शास्त्र पढ़कर बालाजी की सेवा में संलग्न रहते है। यहाँ की पहाड़ी के पिछले भाग में मौजूद हनुमानजी की प्रतिमा दीवार की तरह से स्थित है। इसी प्रतिमा को प्रधानता देते हुए समूचे मंदिर का निर्माण कार्य भी हुआ है। बालाजी की प्रतिमा की छाती के बाई ओर एक बहुत ही सूक्ष्म छेद भी है जिससे निरंतर जल की धार प्रवाहित होती रहती है। इस प्रकार से ये जल की धार उनके पैरों से होकर एक कुंड में इकट्ठा हो रही है। शुरू ही बालाजी के भक्त इस जल को उनका प्रसाद मानकर अपने साथ लेकर जाते रहे है। इस जन को बालाजी का ‘चरणामृत’ भी कहते है।

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बालाजी की पूजा

बालाजी मंदिर का इतिहास

जिस स्थान पर वर्तमान में मेहंदीपुर बालाजी मंदिर है शुरू में इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था। सभी ओर घनी झाड़ियाँ और इनके वन्य जीव ही मौजूद हुआ करते थे। यहाँ के निवासी श्री महंत जी महाराज के पूर्वजो को एक सपने के बाद उठकर चलने की प्रेरणा मिली। वे स्वयं भी नहीं जानते थे कि वे किस दिशा में और क्यों जा रहे है। इसके बाद उनको कुछ विचित्र घटना देखने को मिली। उन्हें हजारो दिए जले हुए दिखाई दिए और साथ में बहुत सारे हाथी-घोड़ो की भी आवाजे सुनने को मिली। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े राजा की सेना का दल चढ़ाई कर रहा हो। इस सेना दाल ने बालाजी महाराज की प्रतिमा की 3 प्रदक्षिणाएं करी और ये देखकर सेना के प्रधान ने आकर बालाजी को दंडवत नमस्कार किया। इसके बाद ये जिस मार्ग से आये थे उसी से वापिस भी हो गए।

महंत गोसाई ये सभी घटना देखते रहे और कुछ ना समझते हुए बस आश्चर्य में ही रहे। वे काफी डर भी गए थे और तुरंत अपने गाँव आ गए। अभी भी वे डर के कारण सो नहीं पा रहे थे। बहुत समय तक इसी घटना के बारे में सोचने के बाद उनको नींद आ गयी और फिर से उन्होंने सपने में 3 प्रतिमाओं को देखा। साथ ही उन्हें ये आदेश भी मिला – ‘उठो और मेरी सेवा का कार्यभार ग्रहण करो, मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूँगा।’ वे ये बाते सुन तो सके पर कौन कह रहा है उनको नहीं पता चल पाया। इस घटना के बाद गोसाई जी ने अपना अधिक ध्यान ना दिया और कुछ ही समय बितने पर स्वयं बालाजी हनुमानजी ने उनको दर्शन देकर अपने पूजन का आग्रह किया।

इसके अगले ही दिन गोसाई जी इस प्रतिमा के पास चले गए और उन्हें वहां पर घण्टे-गाड़ियालो-नगाड़ो की आवाजे सुनाई दी। अभी वे कुछ देखने में असर्थ थे। अब गोसाई जी ने गाँव के लोगो को इकट्ठा किया और उन सभी को शुरू से लेकर अभी तक की कहानी का वर्णन कर दिया। अब लोगो के साथ मिलकर गौसाई जी ने बालाजी महाराज की एक छोटी सी तिवारी भी बनवा दी और विधि अनुसार भगवान जी की पूजा अर्चना भी शुरू कर दी।

मुस्लिम राजाओं का मंदिर पर आक्रमण

जब देश में मुस्लिम राजाओं का काफी दमन काल चल रहा था तो उन्होंने भी इस प्रतिमा और मंदिर को काफी नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया। किन्तु वे अपने सभी कुचेष्टाओं में पूरी तरह से विफल ही रहे। वे लोग इस प्रतिमा को जितनी मात्रा में खुदवाते थे प्रतिमा की जड़ें उतनी ही गहरी होने लगती थी। इसे सभी असफल कोशिशे कर लेने के बाद उन्होंने हार मान ली।

बालाजी के चोले का चमत्कार

साल 1910 में अंग्रेजी युग में बालाजी ने अपना सैकड़ो सालो पुराना चौला भी अपनी इच्छा से त्याग दिया। यह देखकर बालाजी के भक्तो ने चोले को ले जाकर पास के मंडावर रेल स्टेशन में ही गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उस समय स्टेशन में मौजूद अंग्रेजी मास्टर ने चोले को ले जाने के लिए शुल्क की माँग की। वो इसको एक लगेज की तरह करने की बात कहने लगा। जब मास्टर ने चोले को लगेज करना शुरू किया तो वह कभी बड़ा होता और कभी छोटा होता। इस प्रकार से विभुचन में पड़े मास्टर ने अंत में चोले को बिना लगेज किये ले जाने की अनुमति प्रदान कर दी। इसके बाद बालाजी की प्रतिमा पर नया चोला चढ़ा दिया गया।

बालाजी मंदिर की बनावट

यदि बालाजी के मंदिर को देखे तो यह इस क्षेत्र के राजपुताना शैली से पूरी तरह से प्रभावित दिखता है। मंदिर के 4 प्रांगण है और पहले दो में भैरव बाबा की प्रतिमा एवं बालाजी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के तीसरे और चौथे प्रांगण में प्रेतराज की प्रतिमा मिलती है। शुरू से ही जिन लोगों पर बुरे सायों का प्रभाव है वो यहाँ पूजा-अर्चना करने आते रहे है। वास्तु कला की दृष्टि से ये मंदिर काफी शोभामान दिखता है। प्रतिदिन हजारो भक्त एवं दर्शनार्थी मंदिर के दर्शन करते देखे जाते है।

बालाजी मदिर के सामने भगवान श्रीराम एवं सीता का सुंदरतम मंदिर भी है। मंदिर में इन दोनों की मूर्ति काफी मनमोहक है। मंदिर में पीड़ितों की समस्या का समाधान होता रहता है। खासकर मंगल एवं शनि के दिन तो यहाँ पर भक्तों का जमावड़ा देखने को मिलता है। भक्त दर्शन के बाद बूंदी एवं लड्डु का भोग बालाजी को अर्पित करते रहते है।

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बालाजी मंदिर

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बालाजी मंदिर से जुड़े नियम

  • मंदिर में दर्शन करने से पहले 11 दिनों तक ब्रह्चर्य एवं सात्विकता के नियमो का धारण करना है। इस दौरान प्याज एवं लहसुन और मॉस-मदिरा का सेवन पूरी तरह से बंद करना है।
  • मंदिर में आते समय अपने साथ किसी प्रकार से खाने अथवा पीने के समान को नहीं लाना चाहिए।
  • इस क्षेत्र में पहुंचकर किसी भी व्यक्ति के साथ बातचीत नहीं करनी चाहिए और नहीं किसी को छूना अथवा छूने देना चाहिए।
  • मंदिर की अरदास का प्रसाद नाही खाना है और नाही किसी अन्य को खिलाना है। ये प्रसाद अपने घर भी नहीं लेकर जाना है इस प्रकार से बुरी शक्ति आपके घर में वापिस आ जाएगी।
  • मंदिर में दर्शन कर लेने के बाद यहाँ से किसी भी प्रकार के सामान को घर नही ले जाना है और खाने के समान को रास्ते में ही फेक कर खाली हाथ घर पहुँचना चाहिए।
  • मंदिर में आरती करते समय कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखना है अन्यथा आपके साथ बुरी शक्ति जुड़ जाएगी।
  • बालाजी के दर्शन लेने के बाद पुरे 41 दिनों तक सात्विकता बनाये रखनी है जैसे अण्डा-मॉस, लहसुन-प्याज एवं शराब से दूर रहना है।
  • इस प्रकार से 41 दिन का समय पूर्ण होने के बाद किसी ब्राह्मण से हवन करवाने के बाद ही पूजा संपन्न होती है।
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बालाजी में विचित्र माहौल

बालाजी मंदिर पर हुई रिसर्च

बालाजी का नाम अपनी चमत्कारिक शक्तियों के लिए देश से लेकर विदेशों में प्रसिद्ध है। इसी बात को देखकर साल 2013 में जर्मनी, नीदरलैंड, एम्स (नई दिल्ली), दिल्ली विश्विद्यालय के वैज्ञानिक एवं मनोचिकित्सकों की अंतराष्ट्रीय पैनल ने भी यहाँ के कार्यों की काफी रिसर्च की है।

मंदिर में होने वाले विचित्र अनुभव

  • यह मंदिर किसी भी व्यक्ति को डर का अनुभव दे सकता है। लम्बी दूरी से यात्रा करके आने वाले लोगों को यहाँ के तेज़ गर्म वातावरण के बावजूद मंदिर प्रांगण में अपनी पीठ पर ठण्ड का अनुभव होता है। हालाँकि राजस्थान राज्य अपने यहाँ की भीषण गर्मी के लिए जाना जाता है।
  • मंदिर में प्रवेश के बाद ही भक्तो को घंटो की आवाजे सुनने को मिलती है और साथ ही महिला एवं पुरुषो के चीखने की भी आवाजे सुनने को मिलती है। इन पीड़ित लोगो के चीखने की आवाजे किसी भी व्यक्ति को भयभीत कर सकती है।
  • यहाँ पर एक काले रंग की गेंद को दिया जाता है और इसे लेने से मना करना अशुभ माना जाता है। ये काली गेंद आपने पास रखने के लिए नहीं बल्कि आग में डाल देने के लिए होती है। मंदिर परिसर के दुकानदारों इस मिलने वाली गेंद को अपने शरीर के चारो ओर घुमाकर आग में फैंकना है।
  • यदि आप मंदिर में कोई मन्नत मानते है तो इसके पूरी होने के बाद आपको ‘सवामणी’ का भोग देना होता है। इस सवामणी के भोग की रस्म को हर मंगलवार एवं शनिवार को करवाया जाता है।

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर से जुड़े प्रश्न

मेहंदीपुर बालाजी मंदिर कहाँ स्थित है?

यह मंदिर राजस्थान राज्य के दौसा जिले की सिकराय तहसील के मेहंदीपुर गाँव में पिछले 1 हजार सालों के स्थित है।

बालाजी मंदिर मेहंदीपुर के पहले महंत कौन थे?

बालाजी के पहले महंत महंत श्री गणेशपुरी महाराज जी थे।

बालाजी मंदिर मेहंदीपुर किस कारण से प्रसिद्ध है?

मेहंदीपुर बालाजी महाराज के मंदिर में आने वाले भक्त को साए एवं नकारात्मक शक्ति से मुक्ति मिलती है। इसके लिए यहाँ प्रतिदिन दोपहर 2 बजे कीर्तन होता है।

अन्य मंदिरो की तरह बालाजी का प्रसाद घर क्यों नहीं लाते है?

मंदिर एवं इसके पास एक क्षेत्र से किसी भी प्रकार की खाने-पीने की वस्तु और प्रसाद घर लेकर आने से साये एवं भूत साथ आ जाते है।

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