Indian Freedom Fighters in Hindi – 25 महान स्वतंत्रता सेनानी – जानिए भारत की आज़ादी के क्रांतिकारियों के नाम

हमारे देश में स्वतंत्रता के 75वे वर्ष पूर्ण कर लिए है और इसी समय के पड़ाव में देशवासी ब्रिटिश शासन से आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों (Indian Freedom Fighters) को याद कर रहे है। देश को स्वतंत्रता दिलाना कोई आसान काम नहीं था इसके लिए बहुत से बहादुर लोगों ने संघर्ष किया और अपने प्राणों को बलिदान तक दे दिया।

नयी पीढ़ी को आज़ादी के संघर्ष एवं अमर शहीदों की याद दिलाने के लिए संस्थानों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते है। इसके अतिरिक्त विद्यालयी पुस्तकों के माध्यम से बच्चों को महान स्वतंत्रता सेनानी के जीवन एवं संघर्ष गाथा का परिचय होता है। परन्तु देश के लिए संघर्ष करने वाले सेनानियों के नाम बहुत है, जिन्हें इस लेख के अंतर्गत बताने का प्रयास हो रहा है।

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भारतीय स्वतंत्रता सेनानी

Table of Contents

महान स्वतंत्रता सेनानी

रानी लक्ष्मी बाईलाला लाजपत राय
नाना साहबगोपाल कृष्ण गोखले
मंगल पांडेमदन मोहन मालवीय
राजा राम मोहन रायडॉ राजेंद्र प्रसाद
किटटूर रानी चेनम्मालक्ष्मी सहगल
बिरसा मुण्डाभीकाजी कामा
सरदार वल्लभभाई पटेलसरोजनी नायडू
दादा भाई नौरोजीराहुल सांस्कृतायन
बिपिनचन्द्र पालरामप्रसाद बिस्मिल
खुदीराम बोसमहात्मा गाँधी
दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी)चंद्रशेखर आजाद
लाल बहादुर शास्त्रीनेताजी सुभाषचन्द्र बोस
बाल गंगाधर तिलकभगत सिंह

रानी लक्ष्मी बाई

देश के उत्तरी क्षेत्र में झाँसी नाम का प्राचीन शहर है, जहाँ की रियासत की रानी लक्ष्मी बाई थी। रानी एक महाराष्ट्रियन परिवार से सम्बंधित थी। उनके समय में देश के गवर्नर डलहौजी थे। गवर्नर ने एक नियम बनाया कि भारत के जिस रियासत में कोई राजा नहीं होगा वो अंग्रेजी सरकार के अधीन आ जायेगा। इस समय झाँसी का कोई राजा नहीं था चूँकि रानी लक्ष्मी बाई एक विधवा महिला थी।

उनके पास सिर्फ एक गोद लिया हुआ बालक ‘दामोदर’ था जिसको लेकर रानी ने अंग्रेजी सरकार से लड़ाई लड़ी। उन्होंने अंग्रेजों के सामने एलान कर दिया था कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी। मार्च 1858 में निरंतर 2 हफ़्तों के युद्ध के बाद लक्ष्मी बाई पराजित हो गयी। युद्ध के बाद वे ग्वालियर चली आई जहाँ उन्हें दोबारा अंग्रेजों से संघर्ष करना पड़ा। रानी लक्ष्मीबाई को साल 1857 में हुए विद्रोह में उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है।

  • जन्मतिथि – 19 नवम्बर 1835
  • जन्मस्थल – काशी, उत्तर प्रदेश
  • पति – झाँसी के राजा महाराज गंगाधर राव नेवालकर
  • निधन – 18 जून 1858
  • प्रसिद्ध नारा – मैं अपनी झांसी कभी नहीं दूंगी।
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रानी लक्ष्मी बाई

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नाना साहब

नाना साहब एक नाम से प्रसिद्ध बालाजीराव भट का जन्म मई 1824 के दिन बिठूर ज़िला कानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वे देश में मराठा शासन के आठवें पेशवा रहे। शिवाजी महाराज की तरह ही वे एक प्रभावी एवं मजबूत राजा माने गए। वे इतिहास में ज्ञात सबसे अधिक वीर स्वतंत्रता सेनानी में से एक है।

छत्रपति शाहूजी महाराज की मृत्यु के बाद इन्होंने मराठा शासन को पेशवाओं के पास ही छोड़ दिया। इन्होंने पूना के विकास में भी काफी योगदान दिया और इस स्थान को एक गांव से महानगर में बदल दिया। अपने साम्राज्य में इन्होंने नए जिले, पुल एवं मंदिरों को आम जनता की सुविधा के लिए बनवाया।

1857 में अंग्रेजी सरकार के पहले विरोध में नाना साहब ने काफी अहम भूमिका निभाई और जोशीले विद्रोहियों का नेतृत्व भी किया। कानपुर में अंग्रेजों को मात देते हुए बचे लोगो को भी मार दिया। किन्तु इनके व्यक्तियों एवं नाना साहब को मारकर अंग्रेजों ने फिर से कानपुर पर कब्ज़ा कर लिया।

  • जन्मतिथि – 19 मई 1824
  • जन्म स्थान – बिठूर
  • निधन – 1859, नैमिशा वन
  • वास्तविक नाम – बालाजीराव भट
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नाना साहेब पेशवा

मंगल पाण्डे

मंगल पांडे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे है जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरोध में शुरूआती बलिदान दिया था। इनका जन्म 1827 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था। मंगल पांडे अंग्रेजी सरकार की फौज के सिपाही हुआ करते थे, वे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं इन्फेंट्री में सैनिक थे। इतिहास में प्रसिद्ध 1957 के विद्रोह में मंगल पाण्डे ने विशेष भूमिका अदा की थी। मंगल पांडे का अंग्रेजों से विरोध उस बन्दुक के कारतूस की वजह से हुआ था जिसको गाय एवं सुअर की चर्बी से बनाया गया था।

इस कारतूस की गोली को बन्दुक में अपने दांतो से काटकर भरना पड़ता था। ये चर्बी का आवरण कारतूस को बाहरी शीतलन से बचाती थी। मंगल पाण्डे ने कलकत्ता में एक रेजीमेंट अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग़ को घायल कर दिया। मंगल पांडे को 6 अप्रैल 1957 में कोर्टमार्शल करके 2 दिनों बाद ही फाँसी दे दी गयी।

  • जन्म तिथि – 19 जुलाई 1827
  • जन्म स्थल – नागवा
  • निधन – 8 अप्रैल 1857, बैरकपुर
  • कारण – विद्रोह के कारण फाँसी
  • प्रसिद्ध नारा – मारो फिरंगी को
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मंगल पाण्डे

राजा राम मोहन राय

राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 के दिन बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गाँव में हुआ था। ये एक वैष्णव परिवार से सम्बंधित थे जोकि धर्म को लेकर काफी सख़्त था। इसी कारण से इनका विवाह 9 साल की अल्पायु में ही हो गया था। साल 1803 में राय ने हिन्दू धर्म में व्याप्त मतों के अंधविश्वासों के विषय में अपना पक्ष रखा।

इनको अकबर द्वितीय ने ही राजा की उपाधि दी थी। राय को अंग्रेजी साहित्य का अच्छा ज्ञान था और वे अपने लेखन कर से विभिन्न विषयों पर अपने विचार लिखते थे। समाज में व्याप्त सती प्रथा एवं बाल विवाह को समाप्त करने का श्रेय भी राय को मिलता है।

इन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में बंगाल में मूर्ति पूजा के विरोध की पुस्तक भी लिखी थी। अपने समय में समाज को लेकर अखण्ड प्रयास करने के कारण इन्हे बहुत से लोग ‘बंगाल पुनर्जागरण का पितामह’ भी कहते है।

  • जन्म तिथि – 22 मई 1772
  • जन्म स्थल – राधानगर, हुगली जिला, बंगाल
  • कार्य – बंगाल में समाज सुधार लाना
  • निधन – 27 सितंबर 1833
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राजा राम मोहन राय

किटटूर रानी चेनम्मा

रानी चेनम्मा देश के दक्षिणी राज्य कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थी। साल 1824 में इन्होंने हड़प नीति (ड्राक्ट्रिन ऑफ लेंस) के खिलाफ अंग्रेजी सरकार से हिंसक लड़ाई लड़ी। इसी प्रकार से अंग्रेजों से लड़ते हुए इनकी हत्या भी हो गई। इनको देश की स्वतंत्रता के शुरूआती सेनानियों में से एक माना जाता है इनके पति राजा मल्लसर्ज का असमय निधन हो गया और इसके बाद इनके पुत्र का भी निधन हो गया। इस प्रकार से इनके राज्य का सिंहासन खाली हो गया। उन्होंने एक पुत्र गोद लिया किन्तु अंग्रेजी गोद विरोधी कानून के कारण इनके राज्य पर हमला हो गया। रानी ने भी अंग्रेजी का जमकर मुलाबला किया।

रानी के विशिष्ठ पराक्रम के कारण ही इनको देशभर में विशेष कर कर्नाटक में तो काफी सम्मान मिलता है। देश में उस समय की प्रसिद्ध महिला वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई से पूर्व ही रानी चेनम्मा ने अंग्रेजों से लड़कर संघर्ष का विगुल बजा दिया था। किन्तु रानी अपने इस संघर्ष में विजय नहीं पा सकी और अंग्रेजों के इनको बंदी बना लिया। अंग्रेजों की क़ैद में रहते हुए इनकी मृत्यु हो गई।

  • जन्म तिथि 23 अक्टूबर 1778
  • जन्मस्थल – काकती, बेलगाँव तहसील, बेलगाँव जिला, मैसूर, ब्रिटिश भारत
  • कार्य – अंग्रेजों का सशस्त्र विरोध करना
  • निधन – 21 फरवरी 1829
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रानी चेन्नम्मा

बिरसा मुण्डा

बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में राँची (झारखंड) में हुआ था। उन्होंने अपने आदिवासी समुदाय के लिए काफी कार्य एवं संघर्ष किया। वर्तमान समय में भी इतने साल बीत जाने के बाद भी इस क्षेत्र के लोग बिरसा मुंडा को अपना भगवान मानते है। कुछ लोग इनको ‘धरती बाबा’ भी कहते है।

ये अपने समय में एक प्रकार के सामाजिक उद्धारक जैसे थे और जीवन पर्यन्त समाज सुधार के कुछ ना कुछ कार्य करते रहे। अपने क्षेत्र में 1894 में सूखा पड़ने पर मुंडा ने अंग्रेजी सरकार से कर की माफ़ी की बात रखी। किन्तु अंग्रेजों ने उनकी बात को नामंज़ूर कर दिया ऐसे में बिरसा मुंडा ने संघर्ष शुरू कर दिया। वे एक कुशल तीरंदाज थे और जंगल में रहने की कला में पूरी तरह से निपुण थे।

जनवरी 1900 में वे डोम्बारी पर्वत में एक सभा को संबोधित कर रहे थे और एक संघर्ष में बहुत से बच्चे एवं स्त्री मर गए। इसके बड़ा बिरसा एवं उनके अनुयायियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। 9 जून 1900 में सिर्फ 25 वर्ष की आयु में उनको अंग्रेजों ने जहर देकर मार दिया। इनकी समाधि को राँची के पास कोकर के समीप डिस्टिलरी पुल में बनाई गयी है। 15 नवम्बर के दिन को सरकार ने जन – जातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया है।

  • जन्म तिथि 15 नवम्बर 1875
  • जन्मस्थल – बंगाल प्रेसिडेंसी (वर्तमान में झारखंड)
  • कार्य – अपने समुदाय के लिए सामाजिक कार्य एवं अंग्रेजों के कर का विरोध करना
  • निधन – 9 जून 1900
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बिरसा मुण्डा

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सरदार वल्लभभाई पटेल

सरदार के नाम से विख्यात वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 के दिन नादिद गाँव में हुआ था। इनके पिता एक किसान थे और माता एक ग्रहणी थी। वे बाल्यकाल से ही काफी परिश्रमी थे और प्रतिभाशाली छात्र में शामिल थे। वे कानून की पढ़ाई के लिए लंदन भी गए और सफल होकर वापिस आये और अहमदाबाद में वकील से जुड़े कार्य करने लगे।

इसी के बाद गाँधी जी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता के आंदोलनों से जुड़ गए। इनके संघर्ष की शुरुआत गुजरात में खेड़ा संघर्ष से हुई जहाँ सूखे से पीड़ित किसानों को कर न देने के लिए सरदार पटेल, गांधी जी एवं अन्य साथियों ने प्रेरित किया। बाद में अंग्रेजी सरकार ने इनकी माँगे मान ली।

देश की स्वतंत्र में उन्होंने काफी अहम योगदान दिया और देश की रियासतों के एकीकरण का कार्य भी किया इसी कारण से इनको ‘लौह पुरुष’ का उप नाम भी दिया गया। वे गाँधीजी के स्वतंत्रता के आंदोलनों में अहम भागीदारी निभाते थे। देश के स्वतंत्र होने के बाद इनको महत्वपूर्ण पद डिप्टी प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री पर कार्य करने का अवसर मिला जिसे इन्होंने अच्छे से संभालना।

  • जन्म तिथि – 31 अक्टूबर 1875
  • जन्म स्थल – नाडियाद, बम्बई प्रेसीडेन्सी, ब्रिटिश इण्डिया
  • कार्य – कांग्रेस पार्टी में अहम भूमिका
  • निधन – 15 दिसंबर 1950
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सरदार वल्लभभाई पटेल

दादाभाई नौरोजी

इनका जन्म 4 सितम्बर 1825 के दिन मुंबई के एक निर्धन पारसी परिवार में हुआ था और अपनी 4 वर्ष की आयु में ही इन्होंने अपने पिता को खो दिया था। इनकी माँ ने कड़े संघर्ष के साथ इन्हे उच्च शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया। अपनी लगन से अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के बाद दादा भाई लंदन की ही यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य करने लगे।

दादा भाई को ब्रिटेन की संसद यानी हाउस ऑफ कॉमन्स में पहुँचने वाले पहले एशियाई के रूप में पहचान मिली है। विश्व भर में उनको साम्राज्यवाद एवं जातिवाद के विरोध के लिए भी जाना जाता है। उन्होने समाज में महिलाओं की स्थिति को देखकर कन्या विद्यालय भी खोला था।

साल 1885 में भारत में राजनीतिक कार्यो के लिए इन्होंने ए ओ ह्यूम के साथ मिलकर इंडियन नेशनल कॉंग्रेस की स्थापना भी की। ये तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। इस पार्टी के माध्यम से ही ये देश की आज़ादी के लिए कार्य करते रहे। साल 1906 में ही इन्होंने पार्टी के कलकत्ता में 22वें अधिवेशन में ‘स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग किया था।

  • जन्म तिथि – 4 सितम्बर 1825
  • जन्म स्थल – मुंबई, ब्रिटिश भारत
  • निधन – 30 जून 1917
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दादाभाई नैरोजी

बिपिनचन्द्र पाल

देश में अंग्रेजों के विरोध की आधार रखने वाले क्रांतिकारियों में ‘बिपिनचंद्र’ का नाम आता है। इन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों से आज़ादी के संघर्ष को एक नयी दिशा देने का कार्य किया और अंग्रेजों को परेशान किया। देश की प्रसिद्ध तिकड़ी ‘लाल-बाल-पाल’ में से विपिन चंद्र ‘पाल’ थे। इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों से संघर्ष में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। साल 1905 में अंगेर जी सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल के विभाजन का भी विरोध किया था। वे एक आज़ादी के सिपाही होने के साथ ही लोकप्रिय समाज सुधारक, अध्यापक, लेखक एवं पत्रकार थे। इन्होंने ब्रिटेन में तैयार होने वाले कपड़ों का विरोध किया और फैक्टरियों एवं व्यवसायिक संस्थानों में हड़ताल भी करवाई।

वे समाज को विकसित करने के लिए कट्टरवादी विचार एवं जात-पात का विरोध करते रहते थे। इसी बात को स्थापित करने के लिए उन्होंने स्वयं एवं विधवा महिला से परिवार के सख़्त विरोध के बावजूद शादी की।

  • जन्म तिथि – 07 नवम्बर 1858
  • जन्म स्थल – हबीबगंज ज़िला, सिलहट क्षेत्र (अब बांग्लादेश)
  • कार्य – शिक्षक, राष्ट्रवादी नेता, लेखक, वक्ता
  • निधन – 20 मई 1932
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बिपिनचंद्र पाल

खुदीराम बोस

खुदीराम देश के सर्वाधिक नौजवान क्रांतिकारी थे और अंग्रेजी सरकार के विद्रोह की शुरुआत में ही शहीद हो गए थे। इनका जन्म 3 दिसम्बर 1889 के दिन हबीबपुर में हुआ था और कम उम्र में ही देश भक्ति की भावना के कारण इन्होंने स्वतंत्रता को ही अपना लक्ष्य बना लिया।

आज भी इनके बलिदान के कारण इन्हे शहीद लड़का कहकर सम्मान देते है। अपने विद्यालय के दिनों में ही खुदीराम ने अपने शिक्षक से उनकी पिस्तौल मांगी थी ताकि वे इससे अंग्रेजों को मार सके। थोड़े ही समय बाद कक्षा 9 से पढ़ाई छोड़कर स्वदेशी आंदोलन में भागीदारी की। मात्र 16 वर्ष की किशोर उम्र में ही इन्होंने एक पुलिस थाने और सरकार कार्यालय में बम प्लान्ट कर दिया।

इस घटना के तीन वर्षों बाद ही इनको हिरासत में ले लिया गया। कोर्ट की कार्यवाही के बाद इनको फाँसी की सजा हुई और मात्र 18 वर्ष 8 माह एवं 8 दिन की उम्र में ये अपने हाथ में भगवत गीता लेकर देश पर शहीद हो गए।

  • जन्म तिथि – 03 दिसंबर 1889
  • जन्म स्थल – बहुवैनी, ज़िला मुजफ्फरपुर, ब्रिटिश बंगाल (वर्तमान बिहार)
  • निधन – 11 अगस्त 1908
  • मृत्यु का कारण – फाँसी
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खुदीराम बोस

दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी)

अँग्रेजी शासन के समय जब देश की महिलाओं को घर से बाहर आते भी नहीं देखा जाता था तो उस समय दुर्गावती देवी ने अदम्य साहस एवं देश प्रेम का परिचय देते हुए आज़ादी के लिए संघर्ष किया। जब भगत सिंह एवं उनके साथियों ने एक अंग्रेजी अधिकारी को मार दिया तो वे लाहौर से बाहर जाने के लिए दुर्गा देवी के पास ही गए।

दुर्गावती ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए भगत सिंह और उनके साथियों के साथ रेल में सफर करके उन्हें लाहौर से बाहर जाने में मदद की। इनके पति भगवतीचरण बोहरा थे और वे भी भगत सिंह के साथ अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे। इनकी पार्टी के सदस्य दुर्गावती को दुर्गा भाभी कहकर पुकारते थे। वे नौजवान भारत सभा की सदस्य भी थी।

  • जन्म तिथि – 07 अक्टूबर 1907
  • जन्म स्थल – शहजादपुर ग्राम अब कौशाम्बी ज़िला
  • कार्य – स्वतंत्रत संघर्ष करने वाले संघठन के लिए कार्य
  • निधन – 14 अक्टूबर 1999
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दुर्गावती देवी

लाल बहादुर शास्त्री

शास्त्री ही देश के स्वतंत्रता सेनानी के साथ दूसरे प्रधानमंत्री भी थे। ब्रिटिश काल में वे भारत छोड़ो आंदोलन, नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन का भाग रहे थे। आजादी के आंदोलनों में सक्रियता के लिए उनको 9 वर्ष जेल में व्यतीत करने पड़ें। शाश्त्रीजी साल 1930 में गांधीजी के नमक आंदोलन के लिए डांडी यात्रा पर भी गए। इसी प्रकार से वे विभिन्न आंदोलनों का हिस्सा रहे और इस संघर्ष ने उनको काफी परिपक्व भी बनाया।

देश के स्वतंत्र होने के बाद शास्त्री जी गृह मंत्री के महत्वपूर्ण पद पर भी रहे। इसके बाद 1964 में प्रधानमन्त्री बनने के बाद अगले ही वर्ष पाकिस्तान से युद्ध में विजयी पीएम बनकर प्रसिद्ध हुए। देश को मजबूत करने के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भू बुलंद किया। 1966 में वे ताशकंद (सोवियत रूस) में गए हुए थे कि यहाँ पर उनकी हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गयी।

  • जन्म तिथि – 2 अक्टूबर 1904  
  • जन्म स्थल – मुगलसराय, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  • निधन – 11 जनवरी 1966
  • प्रसिद्ध नारा – जय जवान जय किसान
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लाल बहादुर शास्त्री

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

भारतीय लोगों में शिक्षा एवं भाईचारे की रौशनी बिखेरने वाले बाल गंगाधर का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। तिलक शुरू से ही पढ़ाई विशेष कर गणित में काफी अच्छे रहे थे। बाद में विद्यालय में एक शिक्षक के रूप में कार्य करने के बाद इन्होंने अंग्रेजों की नौकरी से त्यागपत्र दिया। परन्तु ये अपने स्वयं के विद्यालय में बच्चों को शिक्षित करने लगे।

तिलक के संघर्ष एवं लेखों के कारण अंग्रेजो ने इन्हे “भारतीय अशांति का पिता” की उपाधि दी थी। बच्चों में देश की संस्कृति का प्रचार करने के लिए इन्होंने ‘डेकन एजुकेशन सोसायटी’ को स्थापित किया। ये लोगो को साथ में गणेश उत्सव एवं अन्य त्यौहार मनाने के लिए प्रयास करते थे। ये देशभर में भ्रमण करके लोगों को आज़ादी के लिए जगाने का कार्य करते रहे। अगस्त 1920 में बीमारी से इनका निधन हो गया।

  • जन्म – 23 जुलाई 1856, चिखलीक
  • निधन – 1 अगस्त 1920, मुंबई
  • प्रसिद्ध नाम – लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
  • प्रसिद्ध नारा – स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा
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लोकमान्य बालगंगाधर तिलक

लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी के उपनाम से प्रसिद्ध लाला लाजपत का जन्म 28 जनवरी 1865 के दिन दुधिके गाँव में हुआ था। लालजी एक गरम दल के स्वतंत्रता सेनानी एवं इंडियन नेशनल कांग्रेस एक लोकप्रिय नेता हुआ करते थे। ये देश में प्रसिद्ध तीन कॉंग्रेसी नेता ‘लाल बाल पाल’ की तिकड़ी का एक हिस्सा थे। साल 1914 में वे ब्रिटैन में भारत की हालात को भी बताने के लिए गए थे। इसी समय विश्व युद्ध होने के कारण वे देश वापसी ना आ सके। युद्ध समाप्ति के बाद 1919 में भारत आपने पर ‘जलियांवाला हत्याकाण्ड’ हो गया। अंग्रेजी अधिकारियों की क्रूरता के विरुद्ध इन्होने पंजाब में आंदोलन शुरू कर दिए। इन्होने ही प्रसिद्ध बैंक ‘पंजाब नेशनल बैंक’ और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की थी।

अपने सामाजिक कार्यो के कारण ही लोग इन्हे ‘पंजाब केसरी’ के नाम से जानते थे। 1928 में इन्होने साइमन कमीशन के विरोध में होने वाले प्रदर्शन में भाग लिया।इसी समय पर आंदोलन का दमन करके के लिए लाठी चार्ज में लाल जी बहुत घायल हो गए और बाद में इनका निधन भी हो गया।

  • जन्मतिथि – 28 जनवरी 1865
  • जन्मस्थल – दुधिके, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान)
  • निधन – – 17 नवम्बर 1928
  • प्रसिद्ध वाक्य – मेरे ऊपर पड़ी एक-एक चोट अंग्रेजी हुक़ूमत के ताबूत की कील बनेगी
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लाला लाजपत रॉय

गोपाल कृष्ण गोखले

देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले सेनानियों में गोपाल कृष्ण गोखले का नाम हमेशा याद किया जायेगा। वे एक अध्यापक भी थे और कालांतर में कॉलेज के प्रधानाध्यापक भी बने। वे अपनी तेज बुद्धि के कारण से काफी प्रसिद्ध थे। देश की स्वतंत्रता में गोखले में अहम योगदान दिया है जिस कारण से उनको भी स्वतंत्रता सेनानी कहते है। देश में आजादी के लिए आंदोलन करने वाले गांधी जी ने भी इनको अपना राजनितिक गुरु बनाया था।

वे गोखले का काफी सम्मान एवं प्रेम करते थे। अफ्रीका से लौटने पर गोखले ने गांधी जी को ‘सर्वेंट्स ऑफ इण्डिया सोसायटी’ की स्थापना में सहायता की। अपनी देश भक्ति एवं कर्तव्य परायणता के कारण ये लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुए थे किन्तु ये अधिक समय तक देश भक्ति नहीं कर सके और कम उम्र में ही चल बसे।

  • जन्मतिथि – 9 मई 1866
  • जन्मस्थल – कोटलुक, रत्नागिरि जिला, बाम्बे प्रेसिडेन्सी
  • निधन – 19 फरवरी 1915
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गोपाल कृष्ण गोखले

महात्मा गाँधी

गाँधीजी देश में आज़ादी के लिए आंदोलनों के साथ ही अपने अहिंसा एवं शांति के सन्देश के लिए भी काफी प्रसिद्ध हुए। गांधीजी अपने संघर्ष में आम नागरिकों को सबसे बड़ा हथियार मानते थे। उन्होंने देश में घूम-घूमकर सभी लोगो को एकजुट होने के लिए कहा और साथ ही विभिन्न आंदोलन भी किये जोकि सत्याग्रह, शांति, एकता एवं अहिंसा के सिद्धांतो पर आधारित थे।

वे अंग्रेजी सरकार द्वारा देश के किसान एवं श्रमिक वर्ग के दमन का विरोध करते रहते थे। इसलिए उन्होंने आंदोलन करके किसानों पर लगे अधिक कर (टैक्स) को वापिस करवाया। इसके साथ ही वे जातिगत भेदभाव एवं अछूत प्रथा का भी विरोध करते रहे। देश में काफी लोकप्रिय रहे गांधी जी ने अपनी अहिंसा के संघर्ष को आज़ादी मिलने तक जारी रखा। 30 जनवरी 1948 के दिन अपनी संध्या प्रार्थना के समय एक व्यक्ति ने गोली से गाँधीजी की हत्या कर दी।

  • जन्मतिथि – 2 अक्टूबर 1869
  • जन्मस्थल – पोरबंदर, गुजरात
  • वास्तविक नाम – मोहनदास करम चंद गाँधी
  • निधन – 30 जनवरी 1948
  • प्रसिद्ध नारा – करो या मरो
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महात्मा गांधीजी

मदन मोहन मालवीय

मालवीय जी का नाम अक्सर ही लोगो के संज्ञान में आता रहता है। वे देश के प्रथम एवं अंतिम व्यक्ति थे जिनको महामना की सम्मानजनक उपाधि दी गयी थी। वे एक विद्वान व्यक्ति थे और कार्य से एक पत्रकार एवं अधिवक्ता भी थे। इन्होने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीए उत्तीर्ण की थी साथ ही ये नियमित रूप से व्यायाम भी करते थे। इनके भीतर राष्ट्र प्रेम एवं अंग्रेजो से आजादी की भावना काफी अधिक थी।

मालवीय जी चार बार इंडियन नेशनल कॉंग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। शिक्षा के प्रचार के लिए इन्होंने बनारस में बनारस हिन्दू विश्विद्यालय की भी स्थापना की थी। उस समय से आज तक ये संस्थान देश में शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। इसी प्रकार से राजनीति एवं आंदोलनो की मदद से इन्होंने देश की आज़ादी में भी अहम योगदान दिया।

  • जन्मतिथि – 25 दिसम्बर 1861 
  • जन्मस्थल – प्रयाग, ब्रिटिश भारत
  • निधन – 12 नवंबर 1946

डॉ राजेंद्र प्रसाद

डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में काफी लोकप्रियता मिली हुई है। किन्तु वे गुलाम भारत में भी काफी संघर्ष कर चुके थे और हमेशा से ही देश के लोगो की भलाई के लिए आगे आये। इन्होंने देश की आजादी में सक्रिय भूमिका निभाई और आज़ादी एक बाद संविधान के वास्तुकार भी रहे। इनका विवाह मात्र 13 साल की उम्र में राजवंशी देवी से हो गया था। अच्छी पढ़ाई का प्रदर्शन करते हुए इन्होंने 1915 में गोल्ड मेडल के साथ कानून की पढ़ाई की।

वे गाँधीजी को अपना आदर्श मानते हुए कांग्रेस से जुड़े और बिहार राज्य के प्रमुख नेता भी बन गए। देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विभिन्न आंदोलन जैसे नमक सत्याग्रह एवं भारत छोड़ो आंदोलन में वे मुख्य भूमिका में रहे। इन्ही के कारण इनको कई बार जेल भी जाना पड़ा और काफी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। देश के आज़ाद होने के बाद भी ये उच्च पद पर रहते हुए देश सेवा में लगे रहे।

  • जन्मतिथि –  3 दिसम्बर 1884
  • जन्मस्थल – जीरादेई गाँव, सारण जिला (बिहार)
  • निधन – 28 फरवरी 1963
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डॉ राजेंद्र प्रसाद

लक्ष्मी सहगल

लक्ष्मी सहगल आज़ादी के लिए तैयार की गयी आज़ाद हिन्द फौज में अधिकारी एवं आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थी। वे एक चिकित्सक भी थी और दूसरे विश्व युद्ध के समय इनका नाम सामने आया। वे फौज की रानी लक्ष्मी रेजीमेंट की कमांडर भी थी। दूसरे विश्व युद्ध के समय जब जापानी सेना का अंग्रेजों पर सिंगापूर में हमला हुआ तो लक्ष्मी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज का हिस्सा बन गयी।

वे अपने बचपन से आज़ादी के विचारों से काफी प्रभावित थी और गाँधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में विदेशी चीजों के बहिष्कार में शामिल थी। वे 1943 में आज़ाद हिन्द सेना की अस्थाई सरकार में मंत्रिमंडल की प्रथम महिला सदस्य भी रही। आज़ाद फौज में काफी सक्रिय रहने के कारण इनको ‘कर्नल’ का पद भी मिल गया। ईजाद हिन्द सेना के हारने के बाद अंग्रेजों ने इन्हे 4 मार्च 1946 में पकड़ लिया।

  • जन्मतिथि – 24 अक्टूबर 1914
  • जन्मस्थल – चेन्नई
  • कार्य – आजाद हिन्द फौज की कमाण्डर एवं डॉक्टर
  • निधन – 23 जुलाई 2012
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लक्ष्मी सहगल

भीकाजी कामा

भीकाजी कामा का पूरा नाम श्रीमती भीकाजी रुस्तम कामा था वे एक भारतीय मूल की पारसी नागरिक थी। इन्होंने देश की आजादी के लिए विदेशों में घूम कर प्रयास किये। ये लंदन, जर्मनी एवं अमेरिका की विभिन्न जगहों पर जाकर भारत की आज़ादी की बात करने लगी। ये जर्मनी के स्टटगार्ट सिटी में 1907 में होने वाली सातवीं अंतरराष्ट्रीय कॉंग्रेस सम्मेलन में देश के लिए पहला तिरंगा फहराने के लिए भी लोकप्रिय है।

किन्तु इस समय ये झण्डा आज के जैसा नहीं था। उनका पेरिस से प्रकाशित होने वाला ‘वन्देमातरम’ पत्र भारतीय लोगो में काफी प्रसिद्ध था। उन्होंने 1907 के सम्मेलन में भारत में ब्रिटिश शासन को मानवता पर कलंक बताया था। वे लोगों से भारत की आज़ादी के लिए मदद की अपील करती थी। वे देश के लोगो को आगे बढ़ने का सन्देश देती थी।

  • जन्मतिथि – 24 सितंबर 1861
  • जन्मस्थल – मुंबई, ब्रिटिश भारत
  • निधन – 13 अगस्त 1936
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भीकाजी कामा

सरोजनी नायडू

ये एक प्रसिद्ध लेखिका एवं कवयित्री भी थी और इनका जन्म 1979 में हुआ था। इनके पिता अघोरनाथ चटोपाध्याय एक प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री एवं वैज्ञानिक थे। 1895 में हैदराबाद के निजाम ने उनको वजीफा प्रदान करके इंग्लैंड भेजा था। लेखन कार्य के साथ ही इनमें देश प्रेम की भावना काफी प्रवीण थी।

ये अंग्रेजी भाषा में भी अच्छी कविता लिख लेती थी। जल्दी ही इन्होंने आज़ादी के संघर्ष में सक्रियता दिखाते हुए 1906 में गोखले के कलकत्ता अधिवेशन में भाषण भी दिया। वे एक लम्बे समय तक कॉंग्रेस पार्टी की प्रवक्ता भी रही थी। इसी कार्य के लिए इन्होंने देशव्यापी आंदोलन ‘सविनय अवज्ञा’ में अच्छी भूमिका निभाई।

अंग्रेजों ने इन्हे और गाँधी जी को साथ ही जेल में भी डाल दिया। इसे बाद बाहर आपने पर 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर भागीदारी की। देश के आज़ाद होने के बाद ये उत्तर प्रदेश राज्य की पहली महिला गवर्नर भी रही। अपने कार्यालय में कार्य करने के दौरान ही इन्होंने प्राण त्याग दिए।

  • जन्मतिथि – 13 फरवरी 1879
  • जन्मस्थल – हैदराबाद
  • निधन – 2 मार्च 1949
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सरोजिनी नायडू

राहुल सांस्कृतायन

राहुल सांस्कृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक ब्राह्मण परिवार में 9 अप्रैल 1893 में हुआ था। इनको साहित्य पाठन एवं सृजन का बहुत शौक था इसके अतिरिक्त इनको विभिन्न स्थानों पर झूमने का भी शौक रहा था। राहुल को भारत में यात्रा वृतांत का पितामह भी मानते है। देश में झूमने के दौरान ही इनका ध्यान यहाँ के लोगों की गरीबी एवं भुखमरी की ओर गया। इसी वजह से ये अंग्रेजी सरकार के विरोध में लिखना एवं वक्तव्य करने लगे।

इनके काम से बौखला कर अंग्रेजों ने इनको 3 वर्षों तक जेल में डाल दिया। परन्तु जेल से बाहर आने के बाद भी इन्होंने अपनी कलम से अंग्रेजों के विरुद्ध लेखन कार्य किया। देश की स्वतंत्रता के बाद इनको खासतौर पर श्रीलंका के विश्विद्यालय में अध्यापन के लिए भेजा गया। जीवन के अंतिम दिनों में इन्हे कुछ याद नहीं रहता था और 1963 में पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग में इनका देहांत हुआ।

  • जन्मतिथि – 9 अप्रैल 1893
  • जन्मस्थल – पन्दहा,आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश
  • कार्य – शिक्षक, लेखक, क्रांतिकारी साहित्य निर्माण
  • निधन – 14 अप्रैल 1963
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राहुल सांस्कृत्यायन

रामप्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद एक उग्र क्रांतिकारी थे और मैनपुरी एवं काकोरी जैसे कार्यों के लिए काफी प्रसिद्ध थे। ये देश में अंग्रेजी शासन के धुर विरोधी थे। इनकी रूचि अध्ययन एवं लेखन में भी थी और अपनी बात को कविताओं के माध्यम से कहने में काफी कुशल थे। इनको एक उच्च कोटि का कवि भी माना गया। ये अक्सर हिंदी-उर्दू मिश्रित कविताओं में लिखते थे और सरफ़रोशी की तमन्ना जैसे यादगार गीत इन्होंने ही लिखे है।

उन्होंने कुल 11 पुस्तकें लिखी थी जिनको वे स्वयं स्टाल लगाकर बेचा करते थे। इनकी पुस्तकों में लोगों को आज़ादी का अंश ज़रूर मिलता था और लोगो को यह काफी पसंद आता था। बिस्मिल ने क्रांतिकारी बनने के बाद अपनी पहली रिवाल्वर भी किताबों से मिले पैसे से खरीदी थी।

बिस्मिल को 6 अप्रैल 1927 में काकोरी काण्ड का आरोपी मानकर सजा सुनाई गयी। इसके बाद वे लखनऊ की जेल में रहे और इसके बाद गोरखपुर की जेल में कोठरी संख्या 7 में रहे। यहाँ पर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें फाँसी की सजा दे दी।

  • जन्मतिथि – 11 जून 1897
  • जन्मस्थल – शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
  • संघठन – हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन
  • निधन – 19 दिसंबर 1927
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रामप्रसाद बिस्मिल

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चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर एक गर्म विचारधारा के क्रांतिकारी हुआ करते थे। बचपन से ही इन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध काम शुरू कर दिए थे। एक बार पुलिस से पकड़े जाने के बाद न्यायाधीश के सामने अपना नाम ‘आज़ाद’ बताया था। इसके बाद इन्होने प्रतिज्ञा ली कि ये कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएँगे।

वे अक्सर देश के युवाओं को संघर्ष के लिए आगे आने को कहते थे। इन्होने देश के कुछ नौजवानो को लेकर अपनी फौज भी बना दी। वे देश की आजादी के लिए हिंसा को जरुरी मानते थे और गाँधी के आन्दोलनों एवं तरीकों से असहमत थे। आजाद ने अग्रेजो से संघर्ष के लिए काकोरी रेल लूट की योजना बनाई और इसे पूर्ण भी किया।

अंग्रेजी सरकार में आज़ाद का डर बढ़ता ही जा रहा था। पुलिस की गिरफ्तारी से बचने के लिए आज़ाद ने 27 फरवरी 1931 में खुद को गोली मार ली थी।

  • जन्मतिथि – 23 जुलाई 1906
  • जन्मस्थल – भाबरा गाँव, जिला अलीराजपुर
  • निधन – 27 फरवरी 1931
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चंद्रशेखर आजाद

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

उड़ीसा की धरती पर 23 जनवरी 1897 में जन्मे सुभाष चंद्र बोस को लोग सम्मान पूर्वक नेताजी बुलाते थे। वे 1919 में विदेश में शिक्षा ग्रहण करने चले गए थे किन्तु जलियावाला हत्या की घटना से परेशान होकर स्वदेश लौट आये।

स्वदेश आते ही इन्होंने कांग्रेस पार्टी को चुना और इससे जुड़कर नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भागीदारी की। नेताजी ने दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी। इसके पिता जानकीनाथ बोस भी कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ही जापानी सेना की मदद से नेताजी ने ‘आज़ाद हिन्द फौज’ को बनाया।

सिंगापुर में अपनी फौज के ‘सुप्रीम कमांडर’ बनकर दिल्ली चलो का नारा दिया। 18 अगस्त 1945 के दिन टोक्यों (जापान) जाने के दौरान ताइवान के आसपास उनका विमान क्रैश हो गया, किन्तु उनका शव नहीं मिला।

  • जन्म तिथि – 23 जनवरी 1897
  • जन्म स्थल – कटक, उड़ीसा (ब्रिटिश कालीन बंगाल प्रान्त)
  • कार्य – आज़ाद हिन्द फौज बनाकर सशस्त्र संघर्ष करना
  • निधन – 18 अगस्त 1945 से दुर्घटना के बाद लापता
  • प्रसिद्ध नारा – तुम मुझे खून दो मैं तुन्हे आजादी दूंगा
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नेताजी सुभाषचंद्र बोस

भगत सिंह

भगत सिंह अविभाजित पंजाब में एक प्रसिद्ध किसान एवं आंदोलनकारी परिवार के सदस्य थे। इनका जन्म 1907 में लायलपुर जिले के बग्गा गाँव में हुआ था। भगत सिंह को बचपन से ही किताबें पढ़ने का काफी शौक था और वे अपने अंतिम समय तक किताब पढ़ रहे थे।

अपने शुरूआती जीवन में वे गांधी जी के आंदोलनों में काफी सक्रियता से भागीदारी करते थे किन्तु जलियावाला बाग एवं निहंग सिखो की हत्या जैसी घटना ने इनको हिंसात्मक संघर्ष की ओर मोड़ दिया। साथ ही ये समाजवादी एवं मार्क्सवादी विचारो को भी काफी महत्व देते थे।

लाला लाजपत राय की नृशंस हत्या ने इनको काफी आहत किया और इन्होंने अपने दल के साथ मिलकर अंग्रेजी अधिकारी जॉन सांडर्स को गोली से मार दिया। इसके साथ ही इन्होंने लाहौर असेम्बली में बम फेंककर अपनी गिरफ्तारी दी। अंग्रेजी सरकार ने इन पर मुकदमा चलाकर 23 मार्च 1931 के दिन फाँसी दे दी।

  • जन्मतिथि – 28 सितम्बर 1907
  • जन्मस्थल – बंगा गाँव, लायलपुर जिला, पंजाब (अब पाकिस्तान) 
  • निधन – 23 मार्च 1931
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भगत सिंह

महान स्वतंत्रता सेनानी से जुड़े प्रश्न

भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी कौन थे?

अंग्रेजी शासन के विरुद्ध हुए 1857 के विद्रोह की शुरुआत में सैनिक एवं महान स्वतन्त्रता सेनानी ‘मंगल पांडे’ को देश का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है।

देश की पहली स्वतंत्रता सेनानी कौन है?

एक पारसी महिला भीकाजी कामा देश की प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी थी। उन्होंने विदेशों (इंग्लैंड सहित) में जाकर अपने व्याख्यानों में भारत की आज़ादी की बात रखी।

भारत में कुल कितने स्वतंत्रता सेनानी है?

गृह मंत्रालय के साल 2018 के रिकॉर्ड के अनुसार 10,483 सेनानियों को स्वतंत्रता सैनिक पेंशन का लाभ मिल रहा है।

सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी कौन है?

बाजि राउत (13 वर्ष)

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