ग्रीष्म संक्रांति के पश्चात आषाढ़ शुक्ल महीने की पहली पूर्णिमा को ‘गुरु पूर्णिमा’ कहते है। गुरु पूर्णिमा देश में मनाने वाला एक खास एवं प्राचीन त्यौहार है। पुराने समय में आध्यात्मिक और इसके बाद शिक्षा के क्षेत्र के गुरुओं के लिए इस पर्व को मनाया जाने लगा था।
इस दिन का महत्व इसी से चल जाता है कि हिन्दू धर्म के आदियोगी यानी भगवान शिव ने अपने प्रथम सात शिष्यों को सर्वप्रथम योग का विज्ञान दिया था। इस घटना के बाद से ही शिव जी आध्यात्मिक रूप से पहले गुरु के रूप में प्रसिद्ध हुए।
ये सभी सप्तऋषि इन ज्ञान को लेकर दुनिया में रहे और इस प्रकार से सभी आध्यात्मिक प्रक्रिया के आधार में भगवान शिव द्वारा प्रदान किया ज्ञान ही है। इसी दिन एक और गुरु वेदव्यास का भी जन्म हुआ था और इस दिन को गुरु पूर्णिमा के साथ व्यास पूर्णिमा भी कहते है। सनातन धर्म में गुरु को किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष स्थान दिया गया है। आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा को 13 जुलाई के दिन मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2023
गुरु पूर्णिमा का इतिहास एवं कथा
देश में गुरु पूर्णिमा के पर्व को मनाने का इतिहास काफी पुराना है और पुरानी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में गुरु को भगवान का रूप समझा जाता था। गुरु पूर्णिमा के दिन को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएँ प्रचलित रही है। किन्तु इन सभी में से दो कहानियाँ सर्वाधिक प्रसिद्ध हुई है जो इस प्रकार से है –
गुरु वेदव्यास की जयंती
एक प्रसिद्ध कथा यह है कि इस दिन गुरु वेदव्यास का जन्म हुआ था जिन्होंने कालांतर में हिन्दू वेदों एवं उनके मूल ज्ञान को चार भागों में विभाजित किया था। इसके साथ ही वेदव्यास ने महाभारत एवं 18 पुराणों को भी रचा था। इस प्रकार से इनको आध्यात्मिक रूप से मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि करने वाले गुरु का स्थान मिला हुआ है। वेदव्यास के अभूतपूर्व कार्य को लेकर ही इनके जन्म दिवस को ‘गुरु पूर्णिमा’ के रूप में मनाया जाता है।
भगवान शिव से दीक्षा की कथा
गुरु पूर्णिमा पर्व को लेकर एक अन्य कथा भी प्राचीन समय से प्रचलित रही है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन ही आध्यात्म के पहले गुरु यानी भगवान शिव ने अपने पहले साथ शिष्यों को गुरु दीक्षा देते हुए आध्यात्मिक ज्ञान दिया था। कहानी है कि बहुत सालों पहले हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में एक आदि योगी का उदय प्रादुर्भाव हुआ था। इनके बारे में किसी व्यक्ति को भी कुछ जानकारी नहीं थी।
ये योगी स्वयं भगवान शिव जी थे। उनका दर्शन एवं सामान्य से दिखाई देने वाले तेज़ एवं असाधारण योगी का था। वहां के निवासियों को इस बात का कोई कारण तो ज्ञात नहीं हो रहा था और वे वहां से जाना शुरू हो गए। परन्तु इन्ही में से 7 मजबूत संकल्पवान व्यक्ति वही रुके रहे।
शिव जी के आँखें खोलने पर इन सातों लोगों ने उनकी स्थिति एवं ज्ञान को जानने की इच्छा व्यक्त की। वे लोग भी इस परमानन्द को जानने की बात करने लगे किन्तु भगवान शिव ने उन सभी की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। शिव जी का मत था कि वे लोग अभी तक इन अनुभव के लिए परिपक्व नहीं है।
इसके बाद शिव जी ने उन लोगों को साधना की तैयारी के कुछ तरीके बताये और ध्यान में चले गए। ऐसे ही बहुत दिन व्यतीत हुए और शिव जी ने उन लोगो पर कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ साल बीत जाने के बाद शिव जी ने गहन साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति में दक्षिणायन के समय योगरूप में इन लोगों को देखा तो जाना कि ये असभ्य ज्ञान प्राप्त करने को तैयार है।
इसके अगले ही दिन शिव जी ने पूर्णिमा के दिन इन लोगों का गुरु बनने की स्वीकृति दे दी। शिव जी ने दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके आसान लगा लिया और सातों को योग विज्ञान की दिशा दे दी। ये सातों शिष्य ही भविष्य के सप्त ऋषि हुए। इस घटना के कारण ही शिव जी को आदियोगी से आदिगुरु की ख्याति मिल गयी। और आध्यात्मिक रूचि रखने वाले सभी लोग इस दिन को ‘गुरु पूर्णिमा’ के रूप में मनाते है।
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गुरु पूर्णिमा का धर्मों में महत्व
हिन्दू धर्म
हिन्दू धर्म में यह पर्व विशेष रूप से गुरु वेदव्यास को याद करने का पर्व है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। और उनके द्वारा ही वेद, उपनिषद एवं पुराणों को रचा है तो उनके जन्म दिन को विशेष महत्व देते हुए ‘गुरु पूर्णिमा’ के रूप में मनाने की शुरुआत हो गयी। हिन्दू धर्म में गुरु को विशेष स्थान दिया गया है और कई अवतारों ने भी गुरु के महत्व एवं स्थान को लेकर प्रवचन कहे है।
मनुष्य को माता-पिता से शरीर प्राप्त होता है और गुरु के माध्यम से जीवन का उद्धारक ज्ञान एवं मार्ग प्राप्त होता है। हिन्दू शास्त्रों में ‘ब्रह्मा’ को भी गुरु का स्थान दिया गया है। चूँकि वे एक गुरु के रूप में ही सभी जीवों की रचना करते है। और हिन्दू धर्म के आराध्य शिव जी के कारण भी ये दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म में भी गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व एवं स्थान है। चूँकि इसी दिन में ही भगवान बुद्ध ने वाराणसी के सारनाथ में पहले 5 भिक्षुओं को प्रथम उपदेश दिया था। इनको आगे के समय में “पंच भद्रवर्गीय भिक्षु” नाम से पुकारा गया। इस घटना के बाद से ही बुद्ध के प्रथम उपदेश को धर्म चक्र प्रवर्तन भी कहा गया। इसी दिन में बुद्ध ने अपने उपदेश से समस्त संसार को प्रकाशित कर दिया था। इसी कारण से बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग भी गुरु पूर्णिमा के दिन को बड़े उल्लास से मनाते है।
जैन धर्म
जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा को खास महत्व मिला हुआ है। इस दिवस को लेकर जैनियों में यह कहानी प्रचलित है कि इस दिन में ही भगवान महावीर ने गांधार प्रदेश के गौतमी स्वामी को अपने पहले शिष्य के रूप में दीक्षित किया था। इसके बाद से ही महावीर स्वामी को ‘त्रिनोक गुहा’ नाम से जाना गया जिसका अर्थ ‘पहला गुरु’ है। जैन धर्म में इस दिन को ‘त्रिनेत्र गुहा पूर्णिमा’ भी पुकारा जाता है। जैनी समुदाय के लोग इन दिन को बहुत ही धूमधाम से मनाते है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
शास्त्रों के अनुसार गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है – पहला गु और दूसरा रु। इसमें पहले यानी गु का अर्थ ‘अंधेरा’ और दूसरे ‘रु’ का अर्थ दूर करने वाला। इस प्रकार से गुरु वह व्यक्ति है जो शिष्य के जीवन में अंधेरे को दूर करके ज्ञान प्रदान करता है। इस प्रकार से व्यक्ति के जीवन को अर्थ एवं ज्ञान देने का काम गुरु के माध्यम से ही संभव है। हिन्दू धर्म में तो गुरु के बिना मुक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
गुरु पूर्णिमा से जुड़े प्रश्न
गुरु पूजन में किसकी आराधना होती है?
गुरु पूजन में महर्षि वेदव्यास का पूजन होता है। साथ ही कुछ लोग भगवान शिव की भी पूजा करते है।
गुरु पूर्णिमा के अन्य प्रचलित नाम क्या है?
काफी प्रचलित इस पर्व को व्यास पूर्णिमा, त्रिनोक गुहा पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जानते है।
मनुष्य जाति के गुरु कौन है?
महर्षि वेदव्यास को मानव जाति का गुरु माना जाता है।
हिंदुओं में गुरु पूर्णिमा को किस दिन मनाते है?
आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मानते है।