आज के समय में बहुत से देशों की तरह ही भारत में बेरोजगारी की समस्या काफी विकराल रूप ले चुकी है। अच्छी शिक्षा के संसाधनों की कमी, काम के मौके का कम सृजन होना और लोगो का प्रदर्शन इत्यादि ऐसे मुख्य बिंदु है जिन्हे बेरोज़गार का कारण मान सकते है। समय के साथ ये समस्या अच्छे शिक्षित वर्ग के युवको में भी देखने को मिल रही है। समय के साथ बेरोज़गार की समस्या शिक्षित वर्ग को भी अपने दायरे में लेने लगी है। बेरोज़गार किसी भी राष्ट्र की आर्थिक उन्नति में बड़ी बाधा तो है ही वरन नागरिक के व्यक्तिगत पारिवारिक जीवन के साथ समाज के लिए भी बाधक है।

भारत में बेरोजगारी की समस्या
दुनिया के विकासशील देशों में बेरोज़गारी एक अभिशाप है। पिछले कुछ वर्षों में कोविड-19 वायरस के वैश्विक प्रभाव के बाद से ही दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएँ में गिरावट देखने को मिली है। लेकिन हमारे देश ने अपनी अर्थव्यवस्था फिर से अच्छी स्थिति में लाने में सफलता पा ली है। किन्तु इस सुधरी हुई अर्थव्यवस्था के बाद भी भारत में बेरोजगारी की दर में कोई खास असर नहीं देखा गया है।
भारत में बेरोजगारी की समस्या – निबंध 1
बेरोज़गारी किसी भी समाज के लिए एक अभिशाप है यह ना केवल नागरिको पर बुरा असर डालती है अपितु समूचे समाज को भी दूषित करने का काम करती है। बहुत सी बातें बेरोज़गारी के कारक होते है जिनकी इस निबंध में विस्तृत चर्चा होगी।
देश की बेरोज़गारी में वृद्धि करने वाले कारक
- बढ़ती हुई आबादी – पिछले कुछ दशकों से देश की आबादी में काफी विस्तार देखा गया है। साल 2000 तक देश की आबादी 80 करोड़ के आसपास थी किन्तु थोड़े की सालों में ये आंकड़ा 140 करोड़ के पार पहुँच चुका है। बढ़ती आबादी का सीधा सम्बन्ध बेरोज़गारी से है।
- धीमी आर्थिक उन्नति – हमारे देश की मंद आर्थिक उन्नति की दर के कारण से ही नागरिको को रोज़गार के कम ही मौके मिल पाते है और बेरोज़गारो की संख्या में वृद्धि होती जाती है।
- मौसम प्रकृति के उद्योग-व्यापार – हमारे देश की एक बड़ी आबादी खेती के कार्य से अपना जीवन यापन करती है। खेती का काम प्रकृति के मौसम की तरह ही साल के किसी विशेष समय पर ही लोगो को काम के मौके दे पाता है।
- औद्योगिकीकरण की मंद गति – हमारे देश के औद्योगिकीकरण के विकास की गति कम है। इसी वजह से इस सेक्टर में कम ही रोज़गार के अवसर पैदा हो पा रहे है।
- कुटीर उद्योग में कमी – एक समय में कुटीर उद्योग काफी अच्छी स्थिति में था लेकिन समय के साथ उपेक्षित होकर इसमें गिरावट देखने को मिली और अब इससे जुड़े बहुत से लोग बेकारी के शिकार हो गए।
देश की बेरोज़गारी में कमी करने के उपाय
- बढ़ती आबादी की रोकथाम – अब समय आ गया है कि इस नयी सदी में भारत अपनी आबादी को ठोस नीति के तहत नियंत्रण में कर लें। इसके लिए अन्य देशों की नीतियों एवं कार्यप्रणालियों पर भी ध्यान देने की जरुरत है।
- शिक्षण प्रणाली – हमारे देश की शिक्षा का पाठ्यक्रम बच्चों में कौशल का विकास करने के बजाए सैद्धांतिक तथ्यों पर ही जोर देती है। कुशल क्षमता रखने वाले नौजवानों तैयार करने वाली शिक्षण प्रणाली ही बेरोज़गारी को कम करेगी।
- तेज़ी से औद्योगिकीकरण – लोगो के लिए अधिक मात्रा में नौकरी के अवसर पैदा करने के लिए सरकार को अच्छे से औद्योगिकीकरण करने पर जोर देने के जरुरत है। इस प्रकार से ही उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले युवक नौकरी प्राप्त कर सकेंगे।
- बाहरी कम्पनियाँ – हमारे देश में अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना काम करने की छूट देने की जरुरत है। विदेश की कंपनियों की इकाइयों के देश में खुलने के बाद स्थानीय नागरिको को भी नौकरी के अवसर मिल सकेंगे।
- काम के मौके – किस खास मौके पर काम करने वाले और बचे समय में बेकार रहने वाले नागरिको को गाँव के इलाकों में रोज़गार के मौके देने की जरुरत है।
उपसंहार
भारत में बेरोजगारी की परेशानी काफी लम्बी अवधि से बनी हुई है और इसके समानांतर बेरोज़गारी भी बढ़ ही रही है। विभिन्न कार्यक्रम शुरू करने के बाद भी सही परिणाम प्राप्त नहीं हो पा रहे है। अभी भी सरकार को रोजगार के अवसर पैदा करने की कारगर नीतियों को बनाने की जरुरत है।

भारत में बेरोजगारी की समस्या – निबंध 2
प्रस्तावना
बेरोज़गारी की समस्या वह परिस्थिति है जिसमे देश में पैदा होने वाली नौकरियों की कुल संख्या वहाँ पर नौकरी की इच्छा रखने वालो से बहुत कम होती है। विस्तृत रूप से कहे तो क्षमतावान लोगो के अस्तित्व की विशेषता वाली स्थिति जोकि कार्य करने की इच्छा रखते है किन्तु एक अच्छी अथवा फायदेमंद नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते है। इसके परिणामस्वरूप अंत में बहुत से मानव संसाधन की व्यर्थ बर्बादी होती है।
जाने माने साम्यवादी विद्वान कार्ल मार्क्स के मुताबिक, “विभिन्न उपयोगी वस्तुओं के निर्माण से काफी संख्या में लोग बेरोज़गार होते है।” इसी तरह से बेरोज़गारी शुरू होती है। इस प्रकार से ही लॉर्ड कीन्स ने विकसित अर्थव्यवस्था में बेरोज़गारी को प्रभावी माँग की कमी का परिणाम बताया है। इसका यह मतलब है कि मेहनत की माँग में गिरावट आती है चूँकि इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट की माँग भी गिरती है। किन्तु हमारे देश में बेरोज़गारी की परेशानी प्रभावी माँग में कमी के परिणामस्वरूप नहीं है।
कोविड-19 के भारत में बेरोजगारी पर प्रभाव
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की ओर से दिए नए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के मुताबिक –
- देश में शहर की बेरोज़गारी दर में साल 2021 के अप्रैल-जून महीने में वृद्धि होकर 12.6% हो गयी जोकि जनवरी-मार्च तक 9.3 ही थी।
- अभी की स्थिति में कोरोना महामारी की पहली लहर के समय दिखे 20.8% के स्तर से कम हो चुका है।
- कोरोना महामारी से सर्वाधिक बड़ा नुकसान बेरोज़गारी की वृद्धि ही है। CMIE के मुताबिक भारत में बेरोज़गारी की दर अप्रैल में ज्यादातर समय बढ़ी ही है और 7.4% तक पहुँच चुकी है। इसके अतिरिक्त ऐसा पता चला है कि देश में महामारी के बाद 40 करोड़ से ज्यादा असंगठित कामगारों की गरीबी बढ़ी है। मई 2022 तक, देश में बेरोज़गारी की दर करीबन 7% ही देखी गयी है जोकि पिछले माह से कम ही थी।
- अप्रैल 2020 के समय बेरोज़गारी अपने शिखर में होने के बाद 2021 के समय में बेरोज़गारी की दर में बहुत कमी हुई थी। साल 2021 में 18 से 29 उम्र वर्ग के करीबन 36 मिलियन भारत के नागरिक बेरोज़गार थे। किन्तु बहुत से दूसरे नागरिको को कम सैलरी की नौकरी करनी पड़ रही है। CMIE के मुताबिक 20 से 29 साल की उम्र के करीबन 30 मिलियन बेरोज़गार थे और दाल 2021 में 85% बेरोज़गार नौकरी की खोज कर रहे थे।
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भारत में बेरोज़गारी की वजह
भारत में बेरोजगारी दर के बढ़ने में निम्न कारक मुख्य रूप से जिम्मेदार है –
कम औद्योगिक उन्नति
हमारे देश में अच्छी मात्रा में मानव संसाधन उपलब्ध है किन्तु देश में सही तकनीक की कमी, कच्चे माल का अभाव, अपर्याप्त बिजली, परिवहन में दिक्क़ते एवं औद्योगिक उतार-चढ़ाव इत्यादि की वजह से औद्योगिक क्षेत्र को पूर्ण क्षमता के साथ काम करने का मौका नहीं मिलता है। इसी कारण से सही मात्रा में रोज़गार के मौके निर्मित करके प्रचुर श्रम का अवशोषण नहीं हो पाता है।
आबादी का बढ़ना
हमारे देश को साल 1951-61 से ही जनसंख्या विस्फोट की समस्या से पीड़ित है। विकास की काफी उच्च दर होने पर योजना समयसीमा में श्रम बल भी काफी जोरो से उन्नति कर रहा है। इस भारी श्रम बल का अवशोषण करने में बहुत से रोज़गार के मौके तैयार करना असंभव है। परिणामस्वरूप देश में बेकारी एवं अल्प बेरोज़गारी की समस्या बढ़ती है।
कामगारों का प्रवास
शहर की इंडस्ट्रीज में कार्य करने के बाद पैसा लेकर कामगार वर्ग अपने गाँव में आते है। पैसे की समाप्ति के बाद ये फिर से शहर आ जाते है किन्तु वहाँ के मैनेजर उनको काम देने में आनाकानी करते है चूँकि वे स्थाई तौर पर कार्य नहीं करते है। इस कारण से वे दुबारा बेरोज़गार हो जाते है।
निजी उद्यमों को लेकर सरकारी नीतियाँ
प्राइवेट सेक्टर के उद्योगों को लेकर भी सरकारी नीतियाँ उनकी उन्नति के समाकुल नहीं है। प्राइवेट उद्योगों के ऊपर कड़े सरकारी नियंत्रण एवं विनिमय के इस्तेमाल होते है।
शिक्षा तंत्र के दोष
इस समय की शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजी सरकार की देन है और भारत के विद्यालय एवं विश्वविद्यालयों में व्यवहारिक पाठ्यक्रम के बिना ही सामान्य एवं साहित्यिक शिक्षा दी जा रही है। देश की अर्थव्यवस्था में जरुरी जनशक्ति के साथ संयोजन करने में शिक्षा तंत्र को उन्नत करने का कोई भी प्रयास नहीं हुआ है। सेकंडरी एवं यूनिवर्सिटी लेवल में ‘ओपन डोर पॉलिसी’ के आने के बाद से शिक्षित बेरोज़गारो की संख्या बढ़ी है। इस समय देश में 150 से अधिक यूनिवर्सिटी है और यहाँ से आने वाला हर दूसरा शिक्षित नौजवान बेरोज़गारी में हिस्सेदारी दे रहा है।
देश ने बहुत से ऐसे प्रतिभावान शिक्षित लोग दिए है जिन्होंने शुरूआती शिक्षा देश में लेने के बाद विदेश में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की है। ये लोग विदेश में बहुत से उच्च पदों पर भी रहे है जैसे कंपनी के CEO या निदेशक इत्यादि। विदेशों की बहुत सी नामी कंपनियों में आधे से अधिक कर्मचारी भारतीय है।
उपसंहार
हम यह देख सकते है कि तेज़ी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में बेरोज़गारी शीर्ष पर है। कुछ आशा की खबर है कि इसके लिए सुधार की भी सम्भावना है।
भारत में बेरोजगारी की समस्या से जुड़े प्रश्न
दुनिया में सर्वाधिक बेरोज़गारी किस देश में है?
बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक भारत देश में पाई जाती है।
भारत का कौन सा प्रदेश सबसे अधिक बेरोज़गारी दर रखता है?
देश के पूर्वोत्तर का राज्य त्रिपुरा सर्वाधिक बेरोज़गारी दर रखने वाला राज्य है।
बेरोज़गारी क्या है?
यह वो स्थिति है जब एक सक्षम व्यक्ति सक्रियता से काम की खोज करता है किन्तु उसको काम नहीं मिल पाता है।
बेरोज़गारी की मुख्य वजह क्या है?
रोज़गार की उत्पत्ति बहुत अधिक मात्रा में उन्नति के स्तर पर निर्भर होती है। आयोजन काल के समय देश के विभिन्न सेक्टर्स ने काफी विकास किया है लेकिन वृद्धि दर हमेशा लक्ष्य दर से कम ही रही है।