हमारे देश के महिला इतिहास में सरोजनी नायडू को एक उच्च कोटि की कवियित्री एवं साहसी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद की जाती है। Sarojini Naidu भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की पहली महिला अध्यक्षा होने का सम्मान भी सरोजिनी को ही है साथ ही वे पहली महिला राजयपाल भी थी। सरोजिनी को खास तौर पर बच्चो के लिए कविता लिखते देखा गया था। उनकी चुलबुल भाव से परिपूर्ण कविता उनके मन में छिपे किसी बच्चे का परिचय देता है। अपनी साहित्यिक साधना के कारण ही उनको ‘भारत की कोकिला’ की उपाधि भी दी गयी। देश की महानतम महिलाओं की सूची में सरोजिनी नायडू का नाम शीर्ष पर होना स्वाभाविक है।

सरोजिनी नायडू जीवन परिचय
वास्तविक नाम | सरोजिनी चट्टोपाध्याय |
उपाधि | भारत की कोकिला,भारत की बुलबुल |
कार्य | कवयित्री एवं स्वतंत्रता सेनानी |
जन्म-तिथि | 13 फरवरी 1879 |
जन्मस्थल | हैदराबाद (तेलंगाना) |
माता-पिता | वारद सुंदरी देवी, डॉ. अघोरनाथ चट्टोपाध्याय |
निधन | 2 मार्च 1949 |
प्रस्तावना
भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू को एक वीर क्रांतिकारी महिला के रूप में ख्याति मिली हुई है चूँकि देश की स्वतंत्रता में उनका अहम योगदान रहा है। अच्छी समझ एवं राजनैतिक कौशल के कारण ही उन्हें कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। वे अपनी कविताएँ बच्चो, प्रकृति, देशप्रेम, प्रेम एवं मृत्यु इत्यादि विषयो पर होती थी। इनकी कविताएँ बचपन के दिनों को स्मरण करवाती है तो इनको देश की बुलबुल की उपाधि भी दी गयी है।
जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 के दिन ब्रिटिश भारत के हैदराबाद शहर में हुआ था। इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक बंगाली ब्राह्मण, वैज्ञानिक एवं चिकित्सक थे, साथ ही एक महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य करते थे। किन्तु इन्होने अपने पद से इस्तीफा देकर स्वतंत्रता के लिए भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस को चुन लिया। इनकी माँ वरदा सुंदरी देवी भी बँगाली भाषा में कविताएँ लिखती थी। सरोजिनी अपने आठ भाई-बहनो में सबसे बड़ी थी। इनके दो छोटे भाई विरेन्द्रनाथ क्रांतिकारी थे जिन्होंने बर्लिन कमिटी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। एक अन्य भाई हरिंद्रनाथ एक कवि और अभिनेता के रूप में जाने जाते थे। इनका परिवार हैदराबाद का प्रतिष्ठित परिवार था। इनके पिता हैदराबाद के निजाम कॉलेज के प्रधानध्यापक के रूप में काफी प्रसिद्ध थे।
शिक्षा
सरोजिनी नायडू को बचपन से ही अध्ययन में रूचि थी और इन्होने उर्दू, तेलुगु, बंगाली, अंग्रेजी भाषाओ का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। अपनी प्रतिभा से ही सरोजिनी ने मद्रास विश्वविद्यालय से हाई स्कूल की परीक्षा को साल 1891 में 12 साल की आयु में उत्तीर्ण कर लिया था। इस परीक्षा में टोपर रहने के कारण इनकी शहर भर में काफी प्रसंशा हुई थी।
इनके पिता चाहते थे कि सरोजिनी गणित का अध्ययन करके बड़ी वैज्ञानिक बने किन्तु सरोजिनी की रूचि कविताओं में थी। इस बार इन्होने अपनी गणित की पुस्तक में 1300 पंक्तियो की कविता लिख दी। इनके पिता इस पुस्तक की कॉपी को अक्सर दूसरो को दिखाते रहते थे। इसी प्रकार से इनकी ये पुस्तक हैदराबाद के नवाब ने भी देखी और काफी प्रसन्न भी हुए।
नवाब ने इनकी प्रतिभा के कारण ही इनको उनको इंग्लैण्ड में शिक्षा अर्जन के लिए छात्रवृति दी गयी थी। साल 1895 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया। वहां पर सरोजिनी नायडू का प्रवेश पहले किंग्स कॉलेज एवं उसके बाद गिर्टन कॉलेज में हुआ। वे यहाँ पर 3 वर्षो तक शिक्षा लेने के बाद साल 1898 में स्वदेश लौट आई।
विवाह और परिवार
साल 1898 में सरोजिनी नायडू अपने शहर हैदराबाद वापिस आ गयी और इसी वर्ष इनका विवाह गोविंदाराजुलू नायडू से हो गया। इनके पति एक भौतिक विद थे और नायडू जाति से सम्बंधित थे हालाँकि सरोजिनी स्वयं चट्टोपाध्याय परिवार से सम्बंधित थी। तत्कालीन समाज में अंतर्जातीय विवाह प्रचलित नहीं था। किन्तु इनका विवाह भी अभूतपूर्व सफल हुआ। सरोजिनी नायडू के परिवार में चार बच्चे थे जिनमें से पुत्री पद्मजा ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी योगदान दिया था।
राजनैतिक जीवन
सरोजिनी नायडू ने 1904 से देश की आजादी के आंदोलनों में सक्रियता से भागीदारी शुरू कर दी। वे समाज में लोगो को महिला शिक्षा और अधिकारों के लिए जागरूक करती थी। साल 1914 में उनकी मुलाकात गांधीजी से हुई और उन्होंने गांधीजी को देश की आजादी में आंदोलन में सशक्तिकरण का श्रेय भी दिया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षता भी बनी। इसके बाद 1917 में उन्होंने मुथुलक्ष्मी रेड्डी के सहयोग से ‘भारतीय महिला संघठन’ को स्थापित किया। उनके द्वारा लखनऊ पैक्ट का समर्थन भी किया गया। साल 1917 में सरोजिनी नायडू ने गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में भी भागीदारी की। साल 1919 में वे आल इण्डिया होम रूल लीग की सदस्य की तरह देश को अंग्रेजी शासन से आजादी दिलाने के लिए लंदन भी गई।
वहां से वापिस आकर वे असहयोग आंदोलन से जुडी। साल 1930 में गाँधीजी ने नामक आंदोलन करने के लिए ‘दांडी यात्रा’ निकाली। इस यात्रा की शुरुआत में गांधीजी चाहते थे कि महिलाएँ आंदोलन का भाग न हो चूँकि इनके गिरफ्तार होने की आशंका थी। किन्तु सरोजिनी एवं उनके साथी महिलाओं ने गाँधीजी से महिलाओं को यात्रा में सम्मिलित होने की अनुमति माँगी। इसी वर्ष 6 अप्रैल के दिन गाँधीजी की गिरफ्तारी हुई और उनकी उपस्थिति में संघठन की जिम्मेदारी सरोजिनी ने अच्छे से सम्हाली।
साल 1932 में अंग्रेजी सरकार ने सरोजिनी को भी जेल में डाला किन्तु वहां से बाहर आने के बाद सरोजिनी को फिर से 1942 में ‘भारत छोड़ो यात्रा’ में भागीदारी करने के कारण जेल में डाला गया।

पहली महिला राज्यपाल
देश की आजादी के बाद भी सरोजिनी का लेखन एवं सामाजिक हित का कार्य निरंतर जारी रहा। देश के निर्माण की जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेते हुए सक्रियता से सामाजिक भूमिका अदा की। अन्यो की तरह ही नायडू को भी सरकारी तंत्र में मुख्य भूमिका दी गई और उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य का राज्यपाल बनाया गया। यह राज्य क्षेत्रफल एवं आबादी की दृष्टि से देश का बड़ा राज्य भी था। इस पद को ग्रहण करते समय उन्होंने कहा था कि मैं स्वयं को ‘कैद किये जंगल के पक्षी’ की भांति अनुभव कर रही हूँ। वे अपने कार्य के कारण लखनऊ बस गयी और पूरी निष्ठा से पदभार को निभाती रही।

लेखन कार्य
सरोजिनी नायडू में साहित्य सृजन की कला जन्म प्रदत्त या कहे अपनी माँ से प्राप्त हुई थी। इन्होने मात्र 12 वर्ष की आयु में ही रचना लिख दी थी। इतना ही नहीं मात्र 13 वर्ष की उम्र में इन्होने लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता भी लिखी थी। इनकी पहली पुस्तक ‘द गोल्डन थ्रेशोल्ड’ का प्रकाशन लंदन में हुआ। इनकी अन्य कविताएँ ‘द बर्ड ऑफ टाइम’ का प्रकाशन 1912 में हुआ। इसेक बाद साल 1917 में इनकी तीसरी पुस्तक ‘द ब्रोकन विंग’ भी प्रकाशित हुई जोकि मो अली जिन्ना को समर्पित थी। देश की महिलाओं में जागरूकता लाने के उद्देश्य से इन्होने साल 1915 में ‘अवैक’ नमक कविता भी लिखी। 1928 में सरोजिनी नायडू की कविता संग्रह को न्यूयॉर्क (अमेरिका) में प्रकशित किया गया।
मृत्यु
देश की पहली महिला राज्यपाल बनने के बाद अपने कार्यालय में काम करते समय 2 मार्च 1949 के दिन हृदय गति रुकने से सरोजिनी नायडू का देहांत हो गया।
उपसंहार
सरोजिनी नायडू उच्च कोटि की कवयित्री एवं जुझारू महिला थी। उनके गुणों के कारण ही इनका नाम भी बदल दिया गया। वे हमेशा अपनी कविता एवं जीवन के कारण भारतीयों की आदर्श रहेगी। भारतीय आकाश पर चमकने वाली कोकिला के कालजयी स्वर हमेशा जनता के दिलो को छूते रहेंगे।
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सरोजिनी नायडू को मिले सम्मान एवं पुरस्कार
- सरोजिनी प्रथम महिला कांग्रेस अध्यक्षा एवं प्रथम महिला राजयपाल भी रही है।
- साल 1928 में इन्हे ‘हिन्द केसरी पदक’ सम्मान दिया गया।
- सरोजिनी नायडू को मिले पुरस्कार – द गोल्डन थ्रेसहोल्ड, द बर्ड ऑफ टाइम, द ब्रोकेन विंग्स, द स्पेक्ट्रड फ्लूट : सांग्स ऑफ इण्डिया इत्यादि।
- सरोजिनी नायडू ने मो. अली जिन्ना की जीवनी को ‘हिन्दू-मुश्लिम एकता के राजदूत’ शीर्षक दिया था।
सरोजिनी नायडू जन्मतिथि राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में
हमारे देश में सरोजिनी नायडू की जयंती को ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ की तरह भी मनाया जाता है। वे आज भी हमारे देश की स्त्रियों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत है। वे एक उच्च कोटि की साहित्यिक सृजका तो थी साथ ही दमनकारी सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने वाली वीरांगना भी थी। अपने विशिष्ठ कविता पाठ के कारण ही इनको ‘भारत की कोकिला’ की उपाधि दी गयी है। वे महिला होने के कारण महिलाओं की आजादी को गहनता से जानती थी साथ ही वे इसको लेकर विद्रोह एवं जागरूकता भी बढ़ाती थी।
उनके प्रयास से साल 1917 में महिला भारतीय संघ (WIA) को स्थापित किया गया, जिसको महिलाओं के लिए मतदान भी मिले और विधायी ऑफिस रखने का अधिकार भी मिला। ये देश की महिलाओं के लिए सरोजिनी का अभूतपूर्व उपलब्धि थी। उस समय ये अधिकार पाने के बाद हमारे देश में महिलाओं की स्थिति में विकास हुआ है। किन्तु अभी भी उनके प्रयासों को और आगे ले जाने की जरुरत है।
सरोजिनी नायडू जयन्ती
सरोजिनी नायडू ने अपने जीवन काल में बच्चों एवं स्त्रियो के लिए विशेष काम किये। इसी वजह से उनका नाम लोगो में काफी प्रसिद्ध था। उनके जीवन को देखते हुए देश में उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ के रूप मनाया जाता है। ये दिन देश की महिलाओं को समर्पित है।

सरोजिनी नायडू कविता – 1
भारत देश है हमारा बहुत प्यारा,
सारे विश्व में है यह सबसे न्यारा,
अलग-अलग हैं यहां सभी के रूप रंग,
पर सुर सब एक ही गाते,
झंडा ऊंचा रहे हमारा,
हर परदेश की है यहाँ अलग एक जुबान,
पर मिठास कि है सभी में शान,
अनेकता में एकता को पिरोकर,
सबने हाथ से हाथ मिलाकर देश संवारा,
लगा रहा है अब भारत सारा,
“हम सब एक हैं” का नारा,
भारत देश है हमारा बहुत प्यारा,
सारे विश्व में है यह सबसे न्यारा|
सरोजिनी नायडू कविता – 2
क्या यह जरूरी है कि मेरे हाथों में
अनाज या सोने या परिधानों के महंगे उपहार हों?
ओ ! मैंने पूर्व और पश्चिम की दिशाएं छानी हैं
मेरे शरीर पर अमूल्य आभूषण रहे हैं
और इनसे मेरे टूटे गर्भ से अनेक बच्चों ने जन्म लिया है
कर्तव्य के मार्ग पर और सर्वनाश की छाया में
ये कब्रों में लगे मोतियों जैसे जमा हो गए।
वे पर्शियन तरंगों पर सोए हुए मौन हैं,
वे मिश्र की रेत पर फैले शंखों जैसे हैं,
वे पीले धनुष और बहादुर टूटे हाथों के साथ हैं
वे अचानक पैदा हो गए फूलों जैसे खिले हैं
वे फ्रांस के रक्त रंजित दलदलों में फंसे हैं
क्या मेरे आंसुओं के दर्द को तुम माप सकते हो
या मेरी घड़ी की दिशा को समझ करते हो
या मेरे हृदय की टूटन में शामिल गर्व को देख सकते हो
और उस आशा को, जो प्रार्थना की वेदना में शामिल है?
और मुझे दिखाई देने वाले दूरदराज के उदास भव्य दृश्य को
जो विजय के क्षति ग्रस्त लाल पर्दों पर लिखे हैं?
जब घृणा का आतंक और नाद समाप्त होगा
और जीवन शांति की धुरी पर एक नए रूप में चल पड़ेगा,
और तुम्हारा प्यार यादगार भरे धन्यवाद देगा,
उन कॉमरेड को जो बहादुरी से संघर्ष करते रहे,
मेरे शहीद बेटों के खून को याद रखना!
सरोजिनी नायडू से जुड़े प्रश्न
भारत की पहली महिला गवर्नर कौन है?
सरोजिनी नायडू।
सरोजिनी नायडू को भारत रत्न कब मिला?
1971 में।
सरोजिनी नायडू के उपनाम क्या है?
भारत की कोकिला।