दिल्ली में बहुत सी प्राचीन इमारते प्रसिद्ध है इन्ही में से एक है – दिल्ली की कुतुबमीनार। राजधानी दिल्ली के महरौली में ईंटों से बनी ये दुनिया की सबसे ऊँची इमारत है। इस कारण से यूनेस्को ने कुतुबमीनार को विश्व धरोहर घोषित किया है। ये देश-विदेश के पर्यटकों के लिए एक खास केंद्र है।
क़ुतुबमीनार दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है। भारत में मुग़ल राज के इतिहास में कुतुबमीनार का विशेष स्थान है। यह दुनिया की सबसे बड़ी ईंटों की दीवार के रूप में प्रसिद्ध है। मीनार की लम्बाई 72.5 मीटर और व्यास 14.3 मीटर है। इसका व्यास ऊपर की ओर जाने पर छोटा होकर 2.75 मीटर रह जाता है।
इस लेख के अंतर्गत आपको कुतुबमीनार के इतिहास, निर्माण के साथ अन्य जानकारियों को देने का प्रयास होगा।
कुतुबमीनार से सम्बंधित जानकारियाँ
प्रसिद्ध नाम | कुतुबमीनार |
स्थान | मेहरौली, दिल्ली |
निर्माण शुरू हुआ | 12वीं सदी में (कुतबुद्दीन ऐबक द्वारा) |
निर्माण पूर्ण हुआ | 13वीं सदी में (फ़िरोज़शाह तुगलक के काल में) |
यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर बनी | साल 1993 में |
अन्य प्रसिद्ध नाम | विष्णु ध्वज, विष्णु स्तम्भ एवं ध्रुव स्तम्भ |
कुतुबमीनार का इतिहास
इस मीनार को पहले मुग़ल राजा कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनाना शुरू किया था। कुछ हिन्दू जानकार यह दावा करते है कि पुराने समय में कुतुबमीनार वराहमिहिर की वैधशाला थी जहाँ पर खगोलीय घटनाओं के अध्ययन का काम होता था। वे लोग इस मीनार को ध्रुव स्तम्भ एवं विष्णु स्तम्भ होने की बात कहते है। मीनार के चारो ओर फैले अहाते में भारतीय कला के दर्शन होते है। इनमें से कुछ नमूने इसी काल यानी 1192 के है।
क़ुतुब मीनार के निर्माण का इतिहास
कुतुबमीनार के निर्माण के विषय में अनुमान है कि ये 12वीं और 13वीं सदी में अलग-अलग मुलग राजाओं द्वारा बनाई गयी थी। 1193 में दिल्ली के पहले मुस्लिम राजा एवं गुलाम वंश से सम्बंधित शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुबमीनार का निर्माण कार्य शुरू किया था। ऐबक की इच्छा अफगानिस्तान के जाम की मीनार से भी अच्छी मीनार बनाने की थी।
उनके द्वारा कुतुबमीनार की नीव रखने के साथ इसके बेसमेंट एवं पहली मंजिल का निर्माण हुआ था। उनके काल में इस इमारत से नमाज के लिए आवाज लगाने का काम होता था। जानकारों के मुताबिक कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गोरी का गुलाम हुआ करता था और अपने मालिक के लिए इस मीनार का निर्माण शुरू किया। किन्तु उनके शासन में इस मीनार का कार्य पूर्ण ना हो सका।
उनके बाद दिल्ली के राजा एवं रिश्ते में ऐबक के पोते इल्तुमिश ने कुतुबमीनार का निर्माण किया। उनके द्वारा इस भव्य इमारत की तीन अन्य मंजिले बनवाई गयी थी। किन्तु वे भी इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं कर सकें। 1368 में मीनार पर बिजली गिरने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हों जाने पर फ़िरोज़शाह तुगलक के शासन में समूचे एशिया की भव्य इमारत का निर्माण कार्य पूर्ण हो सका।
उनके द्वारा इस मीनार में पांचवी एवं अंतिम मंजिल का निर्माण करवाया गया। इसके बाद के समय में यह मंजिल मीनार की दूसरी मंजिलो से अलग दिखती है चूँकि इसको सफ़ेद संगमरमर से बनवाया गया है। कुछ जानकारों के मुताबिक मुग़ल बादशाह शेरशाह सूरी ने क़ुतुब मीनार में आखिर बार एक मंजिल जोड़कर इसको आज वाला रूप दिया था।
साल 1508 में एक भयंकर भूकंप के आने से कुतुबमीनार को काफी नुकसान पहुँचा और लोदी वंश के दूसरे राजा सिकंदर लोदी ने इस मीनार की मरम्मत का काम करवाया। इस्लाम की शुरुआत करने वाले स्थान मक्का मदीना का इतिहास भी जानने योग्य है।
क़ुतुबमीनार से जुडी जानकारियाँ
कुतुबमीनार ने साथ में ही अन्य महत्वपूर्ण स्मारक भी देखने को मिलते है। इनमें प्रमुख है 1310 में बना एक द्वार, अलाई द्वार, कुवत उल इस्लाम मस्जिद, अल्तमिश, अल्लाऊद्दीन खिलजी एवं इमाम जामिन की कब्रे, अलाइ मीनार सात मीटर ऊँचाई का लोह-स्तम्भ इत्यादि।
मीनार के प्रांगण में स्थित लौह स्तम्भ का निर्माण गुप्त साम्राज्य के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने लगभग 2 हजार वर्ष पहले किया था। इस स्तम्भ की यह विशेषता है कि इतने वर्षों बाद भी इसमें किसी प्रकार का जंग नहीं लगा है।
इस मीनार में लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ है और कई जगह पर कुरान की आयते और फूल बेल की बारीक नक्काशी मौजूद है। मीनार के चारो तरफ आगे की दिशा में निकले हुए छज्जे मीनार को घेरते है। इन सभी छज्जो को पत्थरों के ब्रेकेट से सहारा मिलता है, इन पर मधुमक्खी के छत्ते के जैसी सजावट की गयी है। यह देश की लाल एवं बफ सेन्ड पत्थरों से बनी सर्वाधिक ऊँची इमारत है।
मीनार की सुंदरता को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। हजारों की संख्या में हर साल पर्यटक यहाँ पहुँचकर इस मीनार की सुंदरता एवं विशालता की प्रसंशा करते हुए आश्चर्यचकित रहते है। भारतीय एवं इस्लामी वास्तुकला के बेहतरीन नमूना से भारतीय पर्यटन इंडस्ट्री को अच्छा लाभ मिलता है।
क़ुतुबमीनार के नाम से जुड़े विभिन्न पक्ष
मीनार के नाम को लेकर भी विद्वानों में काफी मतभेद एवं अपने-अपने पक्ष है। कुछ जानकार कहते है बादशाह कुतुबुद्दीन ने अपने नाम के ऊपर ही इसका नाम ‘कुतुबमीनार’ रखवाकर निर्माण शुरू किया। कुछ का पक्ष है कि उस समय के एक संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम से ही इस मीनार का नाम ‘कुतुबमीनार’ रखा गया।
कुछ विद्वान यह भी बताते है कि अरबी भाषा में क़ुतुब का मतलब धुरी, अक्ष, केंद्र बिंदु अथवा स्तम्भ-खम्बा होता है। इसके निर्माण के पीछे खगोलीय, आकाशीय एवं लौकिक घटनाओं का अध्ययन करना था। इस कारण से इस मीनार का नाम कुतुबमीनार यानी खगोलीय स्तम्भ है।
कुतुबमीनार की वास्तुकला का विवरण
- कुतुबमीनार को लाल बलुआ पत्थरों से बनाया गया है जिसमें कुरान की आयते भी उकेरी गयी है। इन पत्थरों पर फूल-बेलों की बारीक़ नक्काशी भी की गयी है। यह अपने निर्माण के समय से ही दिल्ली की प्रसिद्ध इमारत है जिसकी ऊंचाई 72.5 मीटर (239.5 फ़ीट) है। इमारत के आधार का व्यास 14.32 मीटर है जोकि ऊपर जाकर 2.75 मीटर हो जाता है।
- मीनार में कुल 379 सीढ़ियां बनाई गई है। इसके साथ में एक अन्य ईमारत भी है जिसको ‘अलाई मीनार’ कहते है। कुतुबमीनार के ऊपर से खड़े होकर देखने पर दिल्ली शहर का एक बहुत शानदार नजारा देखने को मिलता है।
- इसकी वास्तुकला को देखते हुए यूनेस्कों ने 1993 में विश्व धरोहर की मान्यता दी है। मीनार की पहली तीन मंजिलो को लाल बलुआ पत्थरों से बनाया गया है। इसके बाद चौथी एवं पाँचवी मंजिल को संगमरमर एवं बलुआ पत्थर से बनाया गया है। मीनार के नीचे वाली मंजिल में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण हुआ है।
- यह देश की पहली मस्जिद है जिसके पूर्वी दरवाजे पर लिखा है कि यह मस्जिद 27 हिन्दू मंदिरों को तोड़कर मिली सामग्री से बनाई गयी है।
कुतुबमीनार के पास में दर्शनीय स्थल
- महरौली पुरातत्व पार्क – यह कुतुबमीनार के परिसर में ही फैला हुआ करीबन 200 एकड़ का पुरातत्व पार्क है। यहाँ पर 1060 में तोमर राजपूतों के द्वारा बनाये गए लाल कोट के खंडार है।
- इल्तुमिश का मकबरा – ये दिल्ली के बादशाह रह चुके है जिनका मकबरा आज भी छत के बिना ही मौजूद है।
- कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद – क़ुतुब मीनार के बगल में स्थित एक मस्जिद है। यह भारत में बनी पहली मस्जिद में से एक है। इसके नाम का मतलब है ‘इस्लाम की शक्ति’। इस मस्जिद को किसी हिन्दू मंदिर की नीव के ऊपर बनाया गया है।
- इमाम जामिन मकबरा – ये उस समय के एक प्रसिद्ध सूफी संत थे जो तुर्केमिस्तान से भारत आये थे।
कुतुबमीनार के लिए हिन्दू पक्ष
- मीनार को दो सीटों वाले जहाज से देखने पर यह मीनार 24 पंखुड़ियों वाले कमल पुष्प जैसी दिखती है। इसकी एक-एक पंखुड़ी एक होरा यानी 24 घण्टों वाले डायल जैसी दिखती है। कमल का फूल एक हिन्दू प्रतीक को प्रकट करती है।
- मीनार में दिखाई देने वाली कुरान की आयतों को जबरदस्ती जगह दी गयी है। इनको हिन्दू चित्रकला की धारियों के ऊपर उकेरा गया है।
- इस मीनार के पास में स्थित बस्ती को महरौली कहते है। ये हिंदी शब्द एक संस्कृत भाषा का शब्द ‘मिहिर-अवेली’ से बना है। जानकारों के अनुसार यह पर विक्रमादित्य के काल में महान खगोलशास्त्री मिहिर रहकर क़ुतुब स्तम्भ से खगोलीय गणना एवं शोध कार्य करते थे।
कुतुबमीनार से जुड़े रोचक तथ्य
- कुतुबमीनार का निर्माण कार्य साल 1199 में शुरू होकर 1398 में पूर्ण हुआ।
- मीनार के निर्माण में लाल पत्थर एवं मार्बल का इस्तेमाल हुआ है।
- यह मीनार एकदम सीधी खड़ी ना होकर थोड़ी सी तिरछी है। इसके झुक जाने की वजह बहुत बार होने वाला मरम्मत का काम बताया जाता है।
- मीनार के पास के क्षेत्र को क़ुतुब काम्प्लेक्स कहते है जोकि विश्व धरोहर घोषित हो चुका है।
- 1369 में मीनार के सबसे ऊपर भाग में बिजली गिरने से काफी क्षति हुई थी।
- यहाँ पर इसके इतिहास की जानकारी देने वाले शिलालेख अरबी एवं नागरी भाषा में लिखे गए है।
- इसके परिसर में मौजूद एक 2000 साल पुराने स्तम्भ में कभी भी जंग नहीं लगा है।
- यह खम्भा पहले हिन्दू एवं जैन मंदिरों का भाग था किन्तु 13वीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला करके मीनार बनवाई।
- 1981 से पहले मीनार के अंदर वाले भाग में जाने की अनुमति थी परन्तु एक भगदड़ के हादसे में करीब 50 लोगों की जान चले जाने के बाद से यहाँ जाना वर्जित कर दिया गया।
- मुग़ल बादशाह अलाउद्दीन खिलजी भी क़ुतुब मीनार से ऊँची मस्जिद का निर्माण करवाने की तैयारी में थे। किन्तु इस मस्जिद के पहले मंजिल के निर्माण के समय इनकी मृत्यु हो गयी।
- कुतुबमीनार के उत्तर में अलाई मीनार को अल्लाउदीन खिलजी ने इसके दुगना आकार से बनवाना था किन्तु इसकी पहली मंजिल का ही निर्माण हो पाया जोकि 25 मीटर ऊँचाई की है।
- 1505 में एक प्रभावी भूकंप के कारण मीनार में टूटफूट हुई थी जिसे सिकन्दर लोदी ने ठीक करवाया था।
- मीनार की अंतिम मंजिल तक जाना सम्भव नहीं है चूँकि मीनार की छठीं मंजिल से ऊपर जाने की अनुमति नही है।
- मीनार के अंदर आने वाले लोगों को पानी पीने की तो अनुमति है परन्तु खाना खाने की अनुमति नहीं है।
कुतुबमीनार का इतिहास से सम्बंधित प्रश्न
कुतुबमीनार का निर्माण कब शुरू हुआ था?
दिल्ली के प्रथम मुग़ल राजा कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1200 में कुतुबमीनार का निर्माण शुरू करवाया।
कुतुबमीनार क्यों प्रसिद्ध है?
यह दक्षिण दिल्ली में ईंटों से बनी हुई सबसे ऊँची मीनार है। यह एक गोल खम्बे की भांति दिखता है जिसमे 379 सीढ़ियाँ है। इसकी ऊंचाई 73 मीटर (239.5 फ़ीट) और व्यास 14.3 मीटर है जो ऊपर जाकर 2.75 मीटर (9.02 फ़ीट) हो जाता है।
कुतुबमीनार को किसकी स्मृति में बनवाया गया था?
इस मीनार को कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में बनवाया गया था। वे चिस्ती संप्रदाय के संत थे। इस मीनार का निर्माण कार्य इल्तुमिश ने पूर्ण किया था।
कुतुबमीनार का प्राचीन नाम क्या है?
क़ुतुबमीनार के नाम के लिए लोगों के अलग-अलग मत है। कुछ जानकारो ने इसे विष्णु ध्वज अथवा विष्णु स्तम्भ बताया है तो कुछ जानकार इसको वराहमीर की एक खगोलीय वैधशाला बताते है।