मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय Munshi Prem Chand biography in Hindi

मुंशी प्रेमचंद को हिंदी एवं उर्दू साहित्य महान रचनाकारों में स्थान मिलता है। इनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था और इनके उर्दू लेखन में इन्हे नवाब रॉय एवं हिंदी कार्य में मुंशी प्रेमचंद नाम मिला। इनको भारत का उपन्यास सम्राट भी कहते है और ये उपाधि इनको बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरदचंद्र चटोपाद्धयाय ने दी है। इनके नाम तीन सौ से ज्यादा कहानियाँ है जिनमे से ज्यादातर हिंदी एवं उर्दू भाषा में रचित है। वे अपने समय की प्रसिद्ध पत्रिकाओं जैसी सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा इत्यादि में लेखन कार्य किया है। इसके बाद मुंशीजी ने हिंदी समाचार पत्र जागरण एवं साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन एवं प्रकाशन कार्य भी किया। अपने प्रकाशन कार्य के लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस को भी ख़रीदा किन्तु किसी कारण से ये हानि में ही रहा और इसको बंद करना पड़ा।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय Munshi Prem Chand biography in Hindi
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

प्रचलित नाममुंशी प्रेमचंद
वास्तविक नामधनपत राय श्रीवास्तव
जन्म-तिथि31 जुलाई 1880
जन्मस्थललमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
माता-पिताआनंदी देवी/ अजायब रॉय
बहनसुग्गी रॉय
पत्नी/ बच्चेशिवरानी देवी/ अमृत राय, कमला देवी, श्रीपत राय
व्यवसायलेखन, अध्यापक, पत्रकार
मृत्यु8 अक्टूबर 1936

मुंशी प्रेमचंद का शुरूआती जीवन

हिंदी के आधुनिक साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था। इनका परिवार एक निम्नवर्गीय कायस्थ ग्रामीण किसान था और इनके पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाक मुंशी का काम करते थे। इनको अपने बाल्यकाल में धनपतराय श्रीवास्तव नाम दिया ज्ञात था। इनकी माता का नाम आनंदी देवी था। मुंशी जी का जीवन शुरू से ही संघर्षपूर्ण रहा है और मात्र 7 वर्ष की अल्पायु में ही इनकी माता का निधन हो गया। प्रेमचंद बाल्यकाल से ही कुछ चंचल स्वभाव के बच्चे थे किन्तु विमाता के रूखे स्वभाव के कारण इनको थोड़ा मिर्ममता भी सहन करनी पड़ी। इसके बाद 16 वर्ष का होने पर इनके पिता भी इनका साथ छोड़ स्वर्गवासी हो गए। इनको अपनी शुरूआती शिक्षा फ़ारसी भाषा में मिली थी।

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मुंशीजी का घर

विवाह एवं परिवार

इनका विवाह उस समय की रीति के अनुसार 15 वर्ष ही आयु में ही कर दिया गया था जोकि कालांतर में चल ना सका। इसके बाद साल 1906 में इनका विवाह बाल विधवा शिवरानी देवी से हो गया। उस समय में आर्यसमाज के धार्मिक आन्दोलानो से प्रभावित होने के बाद इन्होने प्रगतिशील परंपरा के अनुसार एक बालविधवा से विवाह किया। अपनी दूसरी शादी से इनको तीन संताने हुई – श्रीपत राय, अमृतराय एवं कमला देवी श्रीवास्तव। इनको अध्ययन में काफी रूचि थी और इन्होने शिक्षण कार्य के साथ अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा।

शिक्षा एवं नौकरी

मुंशीजी को अपनी शुरूआती शिक्षा कायस्थ कुल के अनुसार उर्दू में मिली थी। इन्होने अपने बचपन में ही छिपकर अलिफ़ लैला, तिलिस्मे होशरुबा इत्यादि किताबे पढ़ डाली। मुंशीजी को रतननाथ सरशार, मिर्जा रुसवा एवं मौलाना शारर इत्यादि की रचनाओं को पढ़ना पसंद था। साल 1898 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होने के विद्यालय में शिक्षक की नौकरी शुरू कर दी। साल 1910 में मुंशीजी ने अंग्रेजी, दर्शनशास्त्र, फ़ारसी एवं इतिहास के विषयों से इंटरमीडिएट की परीक्षा को उत्तीर्ण किया। इस प्रकार से साल 1919 में बीए की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर भी नियुक्त हुए। अपने लेखन कार्य के लिए प्रेरणा दया नारायण निगम से प्राप्त हुई। निगमजी एक आर्यसमाजी व्यक्ति थे और समाचार पत्रों में लेखन का कार्य करते थे। इनके कारण से ही मुंशीजी पर आर्यसमाजी विचारों का काफी प्रभाव हुआ।

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संपादन कार्य

साल 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन के शुरू होने पर इन्होने अपनी स्कूल इंस्पेक्टर की सरकारी नौकरी को छोड़ते हुए 23 जून के दिन त्यागपत्र सौप दिया। अब मुंशी जी ने मर्यादा, माधुरी इत्यादि पत्रिकाओं के संपादन का काम शुरू कर दिया। मुंशीजी ने समाचार-पत्र जागरण एवं साहित्यिक पत्रिका हँस का भी सम्पादन एवं प्रकाशन कार्य किया। इसके बाद इनको मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोम कंपनी में कथा लेखन का कार्य भी मिल गया। साल 1934 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘मजदुर’ की कथा को मुंशीजी ने ही रचा था। मुंशी जी जीवन भर साहित्य की सेवा में समर्पित रहे और इन्होने अपना एक पोस्ट ऑफिस भी खोला था।

मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक कार्य

उपन्यास सम्राट की उपाधि प्राप्त मुंशी प्रेमचंद को हिंदी साहित्य में पितामह कहा जाता है। इसकी मुख्य वजह उनके नाम पर तीन सौ से ज्यादा साहित्यिक कहानियों एवं एक दर्जन उपन्यास है। उन्होंने अपने साहित्यिक सृजन का कार्य साल 1901 में ही शुरू कर दिया था। शुरू में वे ‘नवाबराय’ के छद्म नाम से उर्दू भाषा में साहित्य लिखना शुरू कर दिया किन्तु इनकी शुरू की रचनाएँ प्रकाशित ना हो सकी। इस बात का उल्लेख इनकी पहली ‘रचना नाम’ से छपे लेख में मिलता है। इनका प्रथम उपलब्ध एवं उपन्यास असरारे मआबिद है और इसको देवस्थान रहस्य के नाम से हिन्दी में रूपांतरित किया।

1910 में इनकी रचना ‘सोजे-वतन’ (राष्ट्र का विलाप) की रचना के लिए मुंशीजी को जिला कलेक्टर ने तलब करते हुए आम जनमानस को उग्र करने का आरोप लगाया। इसके बाद उनकी इस रचना को जब्त करते हुए सोजेवतन की प्रतियों को भी जलाकर नष्ट कर दिया। इनको कलेक्टर की ओर से सख्त हिदायत भी हुई कि भविष्य में इस प्रकार की रचना करने पर इनको जेल में भी जाना पड सकता है। अभी तक मुंशीजी ‘धनपतराय’ के नाम से ही सृजन कार्य कर रहे थे। साल 1915 में मुंशीजी ने महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रेरणा लेकर अपना नाम ‘प्रेमचंद’ रख लिया। साल 1910 में “प्रेमचंद” नाम से मुंशीजी की प्रथम रचना ‘बड़े घर की बेटी’ जमाना नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। दिसंबर 1915 में इनकी पहली हिन्दी कहानी ‘सौत’ सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई।

मुंशी प्रेमचंद का मानना था कि साहित्यकार देशभक्ति एवं राजनीति के पीछे रहने वाले सच के बजाय इनके आगे मशाल की रौशनी दिखने वाले सच को सामने लाता है। नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद से ही पूर्ण रूपेण साहित्यिक रचना के काम में संलग्न रहने लगे। कुछ माह तक ‘मर्यादा’ नामक पत्रिका में संपादन का काम भी करने लगे। छः वर्षों तक ‘माधुरी’ पत्रिका में संपादन कार्य करने के बाद इन्होने 1930 में बनारस में अपनी पत्रिका ‘हंस’ का सम्पादन शुरू कर दिया। अपने उपन्यास रंगभूमि के लिए उनको ‘मंगलप्रसाद पारितोषक’ सम्मान भी मिला। साल 1932 में मुंशीजी ने ‘जागरण’ नाम की साप्ताहिक पत्र भी शुरू किया। मुंशीजी को साल 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के असम्मेलन में अध्यक्षता भी मिली।

मुंशीजी की रचनाओं में उस समय के ज्वलंत सामाजिक विषय जैसी समाज सुधार, स्वतंत्रता एवं स्वराज की भावना एवं प्रगतिशीलता के स्पष्ट पुट देखने को मिल जाता है। उन्होंने साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से दहेजप्रथा, अनमोल विवाह, पराधीनता, लगान, अस्पर्शता, जातिपाति, विधवा विवाह इत्यादि विषयों को पाठको के समक्ष रखने का भरपूर प्रयास किया। इसी कारण से हिन्दी साहित्य में साल 1918 से 1936 के समयकाल को “प्रेमचंद युग” का नाम दिया जाता है। मुंशीजी के निधन के बाद इनकी कुछ कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से 8 खण्डों में प्रकाशित हुई।

इन सभी रचनाओं के अतिरिक्त भी मुंशीजी ने बहुत से निबंध भी लिखे है जोकि ‘प्रेमचंद के श्रेष्ठ निबंध’ नाम की पुस्तक में निबंध संग्रह के रूप में प्रकाशित हो चुके है। इनके द्वारा कुछ पुस्तकों का अनुवाद कार्य भी हुआ है, इनमे प्रमुख है – सृष्टि का प्रारम्भ, आजाद, अहंकार, हड़ताल एवं चाँदी की डिबिया। प्रेमचंद ने अपनी सोच का दायरा आसपास से लेकर वैश्विक रखा और संविधानिक सुधार और सोवियत रूस एवं टर्की की क्रांति को भी अपनी रचनाओं में स्थान दिया। इस प्रकार से उनकी रचनाओं का अंग्रेजी, रुसी, जर्मनी जैसी विदेशी भाषाओँ में भी अनुवाद हो चुका है।

वे अपने साहित्य से देश के वंचित एवं दलित वर्ग से जुडी पीड़ा को उठाने का काम करते रहे। वे अपनी रचनाओं से समाज की बुराइयों के दुष्परिणाम का वर्णन करते थे साथ ही इनके समाधान का उपाय भी बताते थे। इसी विषय को ‘कर्मभूमि’ नाम के उपन्यास में अस्पर्शता की धारणा एवं इनसे पीड़ित लोगों के उद्धार का उपाय दिया है।

मुंशीजी की मृत्यु

साल 1936 के बाद से ही इनका स्वास्थ्य कुछ ख़राब रहने लगा। और धन की समस्या के कारण उपचार ना करवाने से 8 अक्टूबर 1936 में इन्होने संसार को छोड़ दिया।

मुंशीजी की रचनाएँ

मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य में युग परिवर्तन के प्रस्तोता बनकर आये है। वे आम जनमासन एवं वंचित समुदाय की बात को कहकर भारतीय साहित्य के उपन्यास सम्राट बनकर प्रसिद्ध हुए। उनकी लेखनी से रचित निम्न रचनाएँ कालजयी बनी हुई है –

उपन्यास

सेवासदननिर्मलामंगलसूत्र
प्रेमाश्रमकायाकल्पकर्मभूमि
रंगभूमिगबनगोदान

कहानी-संग्रह

आखरी तोहफाइज्जत का खूनदो बैलों की कथा
निर्वाचनईदगाहआत्माराम
पंच परमेश्वरइस्तीफाआखिरी मंजिल
दिल की रानीक्रिकेट मैचनाग पूजा
कर्मों का फलदूसरी शादी

नाटक

संग्राम, प्रेम की वेदी, कर्बला एवं रूठी रानी।

निबंध

कुछ विचार एवं साहित्य का उद्देश्य

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मुंशी जी को मिले सम्म्मान

  • मुंशी जी के सम्मान में भारतीय डाक तार विभाग में 30 पैसे का डाक टिकट भी जारी किया।
  • मुंशीजी ने जी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की थी वहाँ पर ‘साहित्य संस्थान’ की स्थापना हुई है।
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मुंशी प्रेमचंद से जुड़े प्रश्न

मुंशीजी ने अपना नाम ‘प्रेमचंद’ क्यों रखा?

ब्रिटिश सरकार द्वारा इनकी रचना ‘सोज-ए-वतन’ पर प्रतिबन्ध के बाद इन्होने अपना नाम ‘प्रेमचंद’ रख लिया।

मुंशीजी की जयंती कब होती है?

31 जुलाई।

प्रेमचंद जी ने कितनी रचनाएँ लिखी?

इन्होने 300 से अधिक कहानियाँ रची है।

मुंशी प्रेमचंद की अंतिम रचना कौनसी थी?

क्रिकेट मैच (1938 – मृत्युपरांत प्रकाशित)

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