आधुनिक समय के लगभग सभी प्रगतिशील देशों ने अपने समाज में न्याय की व्यवस्था में उम्रकैद को जरूर रखा है। यह सजा व्यक्ति के अपराध, न्याय से जुड़े तर्क एवं न्याय की उचितता इत्यादि बातों को ध्यान में रखते हुए सृजित की जाती है। इस प्रकार के न्याय सिद्धांतो में ऐसे दंड को इसलिए सम्मिलित किया जाता है जिससे कि समाज में लोगो के मन में सजा का डर रहे। किसी भी समाज की शांति एवं उन्नति के लिए इस प्रकार के कठोर दण्ड अत्यंत जरुरी हो जाते है। इस लेख में अंतर्गत आपको भारत की न्याय प्रणाली में उम्रकैद की सजा के विषय में विस्तृत जानकारी मिलेगी।

उम्रकैद की सजा
उम्रकैद मतलब आजीवन कारावास
भारतीय न्याय व्यवस्था में उम्रकैद ऐसी सजा है जिसमें वांछित व्यक्ति को अपना पूर्ण जीवन कारागार में रहकर बिताना होता है। देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी उम्रकैद की सजा का अर्थ जीवनपर्यन्त कैद की तय की है। भारतीय दंड संहिता की धारा 53 के अंतर्गत सजा के प्रकारो को बताया गया है। इन्ही सजा के प्रकारो में से उम्रकैद की सजा का भी वर्णन मिलता है। उम्रकैद यानी आजीवन कारावास की सजा को किसी गंभीर अपराध में संलिप्त होने पर दिया जाता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 के अंतर्गत अपराधों के दण्ड के बारे में जानकारी है। इनमे मृत्युदण्ड, उम्रकैद, जेल, जुर्माना एवं संपत्ति समपहरण सम्मिलित है।
उम्रक़ैद से जुडी भ्रान्ति
बहुत सी हिंदी फिल्मो में दिखाया जाता है कि किसी मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाला अपराधी 14 साल के बाद रिहा हो जाता है। हमारे दर्शक भी यही सोचते है कि उम्रकैद में अपराधी 14 साल में कैसे मुक्त हो गया। समाज के लोगो में उम्रकैद को लेकर काफी गलत धारणाएँ भी कही एवं समझी जाती है। इनमे से प्रमुख यह है कि उम्रकैद की सजा 14 या 20 साल की रहती है। कुछ लोग मानते है कि इस सजा में रात और दिन की गणना अलग होती है।
लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जब किसी अपराधी को न्यायलय उम्रकैद की सजा देता है तो विधि के सामने उसकी सजा की समयसीमा का मतलब सजा पाने जा रहे अपराधी की आखिरी साँस तक होता है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि वो अपराधी अपना बचा हुआ सारा जीवन कारगार में सजा के रूप में बिताएँगे। संविधान के जानकार साफतौर पर बनाते है कि संविधान में कही पर भी यह नहीं कहा गया है कि उम्रकैद की सजा 14 वर्ष होगी। हालाँकि ये न्यायालय निश्चित करेगा कि उम्रकैद मिले अथवा नहीं।
भ्रान्ति के कारण
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 57 उम्रकैद की सजा से सम्बंधित है और इसके मुताबिक जेल के वर्षों की गणना को इसे 20 वर्षों की जेल के समान गिना जाना है। किन्तु इस बात से यह अर्थ नहीं लगा सकते है कि अपराधी की उम्रकैद 20 वर्षों की रहने वाली है। यदि कोई गिनती करनी होगी तो उम्रकैद की सजा को 20 वर्षों के समान माना जाता है। इस गणना की आवश्यकता उस समय होती है जब अपराधी को दोहरी सजा मिली हो अथवा जुर्माना नहीं देने की दशा में अधिक समय तक जेल में रखना होता है।
अगर किसी अपराधी के दंड की समयसीमा में वृद्धि करनी हो तो कानून के मुताबिक इस स्थिति में व्यक्ति को दी गई सजा का एक चौथाई भाग (1/4) बढ़ा सकते है। एक मानव की औसत उम्र 80 वर्ष मानी जाती है। इसके अनुसार एक चौथाई भाग 20 साल आता है। इस वजह से उम्र कैद को 20 वर्ष मानते है जोकि सही नहीं है।
2012 में देश का सर्वोच्च न्यायालय निर्णय दे चुका है – “आजीवन कारावास का अर्थ जीवन भर के लिए जेल है और इससे अधिक कुछ नहीं।”

उम्रकैद पर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिपादन
समय-समय पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने उम्र कैद के मामलों में सुनवाई करते हुए अपनी प्रतिक्रिया देते हुए स्थिति को साफ़ किया है। इन्हीं में से कुछ प्रमुख मामले निम्न प्रकार से है –
मेरु राम बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया केस (1978)
इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि आजीवन कारावास का अर्थ बची हुई पूरी जिंदगी जेल में गुजारना किन्तु समुचित सरकार यदि चाहे तो अपराधी को मुक्त कर सकती है।
मोहम्मद मुन्ना बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया (AIR 2005 SC 3440)
इस केस में सुप्रीम कोर्ट का प्रतिपादन था कि आजीवन कारावास से अभिप्राय कठोर आजीवन कारावास से है। ये 14 अथवा 20 वर्षों के कारावास के समान नहीं है। आजीवन कारावास से दंडित अपराधी ओके कारागृह में रखा जा सकता है।
खोका उर्फ़ प्रशांत सेन बनाम बी के श्रीवास्तव
एक अन्य केस खोका उर्फ़ प्रशांत सेन बनाम बी के श्रीवास्तव का है जिसमे सर्वोच्च न्यायलय ने यह साफ किया है कि आजीवन कारावास का अभिप्राय 20 साल की समयसीमा के कारावास से ना होकर अपराधसिद्ध व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन के कारावास से है।
इस प्रकार से आसान भाषा में कहे तो उम्रकैद का अर्थ सिर्फ जीवनभर की कैद है। ना ही 20 वर्ष, ना ही 14 वर्ष और ना ही दिन-रात को अलग जोड़कर 7 वर्ष। कैदी का कारागृह में एक दिन 24 घण्टे का ही रहता है।

सरकार के उम्रकैद को कम करने के नियम
उम्रकैद का सीधा अर्थ अपराधी के जीवित रहने तक कारावास में रहने से है। किन्तु सरकार अपराधी की सजा को कम कर सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CRPC) के सेक्शन 433 के अनुसार सरकार के पास अपराधी की सजा को कम करने का अधिकार होगा। सीआरपीसी की धारा 433 के अनुसार सरकार के पास निम्न चार प्रकार की सजा को करने के अधिकार है –
- भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अंतर्गत मृत्यु की सजा को किसी दूसरी सजा की तरह से कम कर सकेगी।
- उम्रकैद के दंड को 14 वर्ष पुरे होने पर जुर्माने की तरह से कम कर सकेंगे।
- कठोर कारावास के दंड को भी एक अवधि के पश्चात जुर्माने अथवा कारावास की तरह कम कर सकेंगे।
- साधारण कारावास के दंड को भी जुर्माने की तरह से कम कर सकेंगे।
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इन शर्तो पर रिहाई मिलेगी
सरकार अपराधी का अच्छा व्यवहार होने की दशा में भी कैद से मुक्त कर सकते है। इसके अंतर्गत जेल का प्रशासन उस अपराधी के केस को ‘सेंटेंस रिव्यू कमेटी’ के पास पहुंचता है। कमेटी को अगर यह लगेगा कि इस अपराधी को दंड से माफ़ी मिलनी चाहिए तो वे अपनी अनुशंसा को राज्यपाल के पास भेज देते है। इसके उपरांत ही अपराधी की मुक्ति पर विचार होता है। किन्तु यहाँ पर 14 साल सजा का नियम लागू रहता है।
Criminal Procedure Code में संसोधन
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 432 एवं 433 के अधिकारों का दुरूपयोग अपराधियों को छोड़ने में हो रहा था। ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखकर Criminal Procedure Code में बदलाव करके धारा 433(a) को जोड़ दिया गया। इसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति को निर्विकल्पीय मामले में सजा-ए-मौत मिलनी थी किन्तु उसे उम्रकैद दी गयी है। इसमें सरकार दंड की माफ़ी तो कर सकती है किन्तु किसी भी स्थिति में व्यक्ति को 14 साल की सजा के बिना मुक्ति नहीं मिलेगी।
उम्रक़ैद की सजा के उद्देश्य
अपराधी के व्यक्तित्व में परिवर्तन
किसी भी व्यक्ति के अपराध करने पर उसको न्यायलय से सजा मिलती है और जेल में डाल दिया जाता है। इस प्रकार से अपराधी की आजादी को छीन लिया जाता है और वह अपने घर एवं समाज से दूर हो जाता है। ये सजा उस व्यक्ति को एक अच्छा इंसान बनने में बाध्य करती है। किन्तु कारावास के दौरान अच्छा व्यवहार होने पर न्यायालय अपराधी के मौलिक अधिकार फिर से बहाल कर सकता है।
अपराध की रोकथाम
किसी व्यक्ति को सजा मिलने से समाज के लोगो में डर पैदा होता है कि वे गैर क़ानूनी काम करने पर सजा पा सकते है। समाज में आपराधिक कामो के लिए शमन पैदा होता है और शांति बनती है। परिवार एवं समाज से दूर रहकर अपराधी में यह भावना आती है कि वो इस प्रकार के काम का फिर दोहराव न करें।
समाज में सुरक्षा
किसी भी गम्भीर अपराध को किये व्यक्ति का समाज में रहना काफी घातक होता है। ऐसे व्यक्ति की पुलिस एवं कानून में शिकायत जरूर होनी चाहिए। मर्डर एवं बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए व्यक्ति को जज से उम्रकैद की सजा का सामना करना होता है। सामाजिक दृष्टि से एक यही तरीका रह जाता है जिससे समाज के लोग एवं परिवार में सुरक्षा का माहौल तैयार हो सकता है।
संविधान में उम्रकैद के लिए नियम
- उम्रकैद का अर्थ अपराधी को जीवन के अंत तक कारावास में होना है।
- ये सजा जीवनपर्यन्त रहेगी।
- उम्रकैद की सजा 14, 20 अथवा 25 साल है।
- कैदी के सम्बंधित जेल के भीतर एवं बाहर उसकी आजादी की माँग नहीं कर सकते है।
- उम्रकैद को माफ़ नहीं कर सकते है।
उम्रकैद की सजा से जुड़े प्रश्न
भारत में उम्रकैद की सजा क्या है?
भारत के कानून में किसी अपराधी का बचा प्राकृतिक जीवन कारागृह में होना।
जेल में एक दिन कितने घण्टे का रहता है?
देश के संविधान के अनुसार जेल का एक दिन 24 घंटे, एक सप्ताह 7 दिन, एक महीना 30 दिनों का रहता है।
उम्रकैद में 14 वर्ष की सजा का प्रावधान क्या है?
दण्ड की संहिता की धारा 433a को जोड़ते हुए यह प्रावधान है कि किसी अपराधी की उम्रकैद में परिवर्तन की स्थिति में उसे 14 वर्ष का कारावास जरूर गुजरना होगा।