देश के लोगों एवं उनकी आजादी के लिए बहुत से नौजवानों ने सामान्य जीवन छोड़कर पीड़ा एवं बलिदान के मार्ग को चुना था। इसी प्रकार के नौजवान थे भगत सिंह। वे आज भी बहुत से नवयुवको के आदर्श बने हुए है। भगत सिंह अपने देश के लिए बहुत कुछ करने के लिए नेतृत्व करके की इच्छा से भरे थे किन्तु कम उम्र में शहीद होने से वो ऐसा ना कर सके। भगत सिंह देश के पंजाब राज्य के सिख किसान परिवार से सम्बंधित नौजवान थे। इसने परिवार के अधिकतर लोग आजादी के आंदोलन से जुड़े हुए थे। घर के ऐसे ही वातावरण से भगत सिंह पढ़ाई एवं बलिदान की भावना से भरे थे। इसी कारण से वे सिर्फ 23 वर्ष की आयु में ही देश की स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए।

भगत सिंह का जीवन परिचय
पूरा नाम | भगत सिंह |
प्रचलित नाम | शहीद भगत सिंह, शहीद-ए-आजम |
जन्मतिथि | 28 सितम्बर 1907 |
जन्म स्थल | बंगा गाँव, जिला लायलपुर, पंजाब (पाकिस्तान) |
माता-पिता | श्रीमती विद्यावती, सरदार किशन सिंह सिंधु |
रूचि | किताबे पढ़ना, नाटक अभिनय |
संघठन | नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक ऐसोसियेशन |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 |
जन्म एवं शुरूआती जीवन
क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 के दिन ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिले में बंगा गाँव में हुआ था। यह गाँव देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान में चला गया। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माताजी का नाम विद्यावती था। जब इनका जन्म हुआ था तो इनके पिता एवं चाचा अजीत, स्वर्ण सिंह अंग्रेजी सरकार के औपनिवेशीकरण विधेयक – 1906 दे विरोध में प्रदर्शन करने पर जेल में थे। इनके चाचा अजीत सिंह एक आंदोनल कारी व्यक्ति थे और उन्होंने भारतीय देशभक्त संघ को भी स्थापित किया था। इस प्रकार से उनके ऊपर करीबन 22 केस दर्ज़ थे और इनका परिवार गदर पार्टी का भी बड़ा समर्थन करते थे। इस प्रकार से बचपन से ही भगत सिंह को क्रन्तिकारी एवं विद्रोही संस्कार मिलने लगे थे।

शिक्षा और बचपन
भगत सिंह को अपने शुरूआती शिक्षण के लिए गाँव के ही विद्यालय में कक्षा पांच तक की शिक्षा मिली। इसके बाद इनके पिताजी ने इन्हे दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल, लाहौर में प्रवेश दिलवाया। उस समय कम आयु होने पर भी देश में चल रहे गांधीजी के असहयोग आंदोलन में बालक भगत सिंह ने काफी सक्रियता दिखाई थी। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को ललकारते हुए उनकी सरकारी किताबो को भी जला दिया था। अपने बचपन में वे खेतों में घर की बन्दुक को बोते देखे गए जब उनके पिता ने उनसे इसका कारण पूछा तो वे कहने लगे जिस प्रकार से आम बोने से खूब सारे आम मिल जाते है वैसे ही बहुत सारी बंदूके मिलेगी।उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश के लिए विद्यालय भी छोड़ा था। इस प्रकार से शुरुआती जीवन से ही वे अंग्रेजी सरकार से टकराने की शुरुआत कर चुके थे।
भगत सिंह का पुस्तक प्रेम
अपने बचपन के दिनों से ही भगत सिंह को पुस्तकों को पढ़ने में बहुत रूचि देखी जाती थी। वे पढ़ाई में तो काफी मेधावी थे साथ ही वे पाठ्यक्रम से हटकर किताबे पड़ते रहते थे। यह कहा जा सकता है कि उनके जीवन की शुरुआत से अंत समय तक क्रांति एवं पुस्तके साथ ही रही। वे राम प्रसाद बिस्मिल की पुस्तके और मार्क्सवादी विचार पढ़ते रहते थे। अंग्रेजो द्वारा जेल में रखने के दौरान ही उन्होंने 300 पुस्तके पढ़ ली थी साथ ही इसी दौरान 3000 से ज्यादा महत्वपूर्ण लेख भी लिखे थे। वे अक्सर देश में समाजवाद लाने और श्रमिक वर्ग के उत्थान को लेकर लेख लिखते थे। अध्ययन से उनको हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू का अच्छा ज्ञान हो गया था।

आंदोलनों में सक्रियता
थोड़े समय बाद उनके मन में दो सामाजिक घटनाओ ने काफी गहरा प्रभाव डालते हुए रोष एवं प्रतिशोध की भावना को बढ़ा दिया। पहली 13 अप्रैल 1919 में जलियावाला बाग़ में सविनय अवज्ञा के राष्ट्रीय आंदोलन को लेकर हो रही गोष्ठी में अधिकारीयों के द्वारा गोलीबारी की घटना। और इसके बाद साल 1921 में ननकाना साहिब के निहत्थे अकाली प्रदर्शनकारियों की जान लेने की घटना। जलियांवाला बाग़ की घटना की खबर मिलते ही वे 12 मील की पैदल यात्रा करके वहाँ पहुँच गए थे। वे अपने चाचाओं की क्रांतिकारी विचारो की किताबे पढ़कर हमेशा ही उनके रास्ते के सही या गलत होने पर सोचा करते थे। उनका परिवार गांधीजी के अहिंसात्मक क्रांति पर पूर्ण आस्था रखते थे। किन्तु देश में चल रहे असहयोग आंदोलन को चौरा चोरी की घटना से वापिस लेने के गांधीजी के निर्णय से भगत सिंह काफी निराश भी हुए थे। उनका अहिंसक आन्दोलनों से पूरी तरह से भरोसा भी ख़त्म हो गया था।
जेल और जमानत
भगत सिंह ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध अपने विचारो को विभिन्न पत्रिकाओं में लेख के माध्यम से लिखनस शुरू कर दिया। वे इन लेखों में कभी अपना नाम लिखते तो कभी बेनाम लेख प्रकाशित करते थे। इसके अलावा भी दशहरा मैदान में जाकर अपने पर्चों में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध विचार लोगो तक पहुंचाने का काम करते थे। एक दिन उन्हें एक पुलिस वाले में पकड़ लिया तो वह विस्फोट करके वहां से भाग निकले। कुछ समय बाद पुलिस की पकड़ में आपने पर कोर्ट की ओर से उन पर भारी जमानत राशि रखी गयी चूँकि उनके इरादे कोर्ट को भविष्य के लिए खतरनाक लग रहे थे। जमानत के लिए उनको 60 हजार रुपए की राशि देनी थी जोकि उस समय में एक बड़ी राशि थी। इस राशि को इकट्ठा करने के लिए उनके परिवार को अपने खेत बेचने पड़े और लोगो से मदद लेनी पड़ी। इस प्रकार से उन्हें जमानत मिली।
क्रांति में भागीदारी
भगत सिंह मानने लगे थे कि उग्र क्रांति ही आजादी का समाधान हो सकती है। वे सरकार के विरोध करने वाले जुलूसों एवं क्रांति करने वाले दलों के भागिदार होने लगे। थोड़े समय के बाद ही भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर देश की आजादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ को गठित कर दिया। इसके बाद काकोरी मामले में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ समेत अन्य चार क्रांतिकारियों को फाँसी एवं अन्य 16 सदस्यों को आजीवन जेल से वे काफी आक्रोशित भी हुए। इसके बाद भगत सिंह ने तत्कालीन उग्र क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के सहयोग से ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ से जुड़ गए। इस संघठन में सेवा, एकता, त्याग एवं बलिदान की भावना रखने वाले युवको को भर्ती किया जाता था।
लालजी की हत्या का बदला
साल 1928 में साइमन कमिशन के विरोध में काफी ज्यादा प्रदर्शन हुआ। इससे डरकर सरकार ने लाठीचार्ज करके विरोध के दमन का प्रयास शुरू किया। लाला लाजपत राय भी इसी पुलिसिया लाठी का शिकार होने के बाद मर गए। उनकी मृत्यु से काफी क्रांतिकारी नौजवान बहुत दुःखी एवं क्रोधित हो गए। भगत सिंह के दल ने इस घटना का बदला लेने के लिए एक गुप्त योजना के तहत सुप्रीडेन्डेन्ट स्कॉट को मारना तय कर लिया।
संघठन से जुड़ने के बाद भगत सिंह ने अपने साथी राजगुरु के सहयोग से 17 दिसंबर 1928 के दिन भगत एवं राजगुरु कोतवाली, लाहौर के पास निगरानी करने लगे और इनके अन्य साथी जयगोपाल साईकिल खराब होने का प्रदर्शन करके बैठ गए। गोपाल के संकेत पर करीब सवा चार बजे राजगुरु ने अंग्रेजी सहायक पुलिस अधीक्षक ए एस पी सांडर्स के सर में गोली मार दी, इसके बाद भगत सिंह ने भी तीन-चार गोली दागकर सांडर्स की हत्या कर दी। इस काम में उनको क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने पास के डीएवी विद्यालय की दीवार में रक्षक की तरह सहायता दी। एक पुलिसकर्मी चनन सिंह ने भगत एवं राजगुरु का पीछा किया तो चंद्रशेखर ने उसे चेतावनी देने के बाद न रुकने पर गोली दागकर मार दिया।
लाहौर से फरार होना
पुलिस के अधिकारी लाहौर से बाहर जाने वाले हर नौजवान पर पैनी निगाह रखने लगे। इसी समय भगत और राजगुरु ने भगवतीशरण के पास जाकर यहाँ से बाहर जाने में सहायता की माँग की। इस काम में उनकी भाभी ने पत्नी का नाटक करके काफी मदद कर दी। भगत सिंह ने अपने बालों को कटवा लिया और दाढ़ी भी हटा दी। इस प्रकार से वे एक जेंटलमैन भारतीय के भेष में लाहौर से फरार होने में सफल रहे।
असेम्बली में बम विस्फोट करना
भगत ने उस समय का साहित्य भी पढ़ा हुआ था और वे खून-खराबे के बजाय बदलाव में आस्था रखते थे। वे वामपंथी विचारों को समाज के लिए हितकारी मानते थे और वामपंथी विचारधारा के जनक कार्ल मार्क्स से भी प्रभावित थे। वे अंगेजो के मजदूर वर्ग के शोषण के भी सख्त खिलाफ थे। संसद में तत्कालीन सरकार के द्वारा पारित बिलो का विरोध करने के लिए भगत एवं उनके दल ने देश को जगाना जरुरी समझा। और नीतियों के विरोध में संसद में बम विस्फोट की नीति को तैयार कर लिया। इस मामले में भगत बिना इंसानी खून बहाये क्रांति को सामने लाना चाहते थे। 8 अप्रैल 1929 के दिन अपने संघठन के साथी बटुकेश्वर दत्त के सहयोग से दिल्ली में अंग्रेजी सरकार की सेन्ट्रल असेम्बली के सभागार में बम विस्फोट करके अपनी पार्टी के विचारो के पर्चे भी फेंके। उन्होंने ना ही किसी को नुकसान पहुँचाया और ना ही वहां से भागे। वे अपनी गिरफ्तारी देकर समाज के सामने अपने विचार रखना चाहते थे।

जेल में भगत सिंह
भगत सिंह ने गिरफ्तारी के बाद लगभग 2 साल जेल में व्यतीत किये। अपने कारावास के दिनों में वे पढ़ते और लेख लिखा करते थे। इनके ही माध्यम से वे अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त कर रहे थे। उनके द्वारा उस समय लिखे लेख एवं सम्बन्धियों को लिखे पत्र आज भी इनके विचारों के स्पष्ट दर्पण है। वे अपने लेख में विभिन्न पूंजीवाद को अपना दुश्मन बताते थे। वे मानते थे कि श्रमिक वर्ग का शोषक पूँजीपति चाहे वह भारतीय ही हो, उनका दुश्मन है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपनी जेल के खराब माहौल को लेकर 64 दिनों तक भूख हड़ताल भी की और इसमें उनको साथियों का भी पूर्ण सहयोग मिला। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ ने तो इस हड़ताल में जान भी दे दी। अपने कारावास के दिनों में ही उन्होने एक लेख शीर्षक ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ के अंतर्गत लिखा।
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भगत सिंह पर कोर्ट ट्रायल
26 अगस्त 1930 के दिन अदालत में भगत सिंह को विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दोषी करार दिया गया। उन पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 129, 302 एवं विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 एवं 6F के अंतर्गत अपराध सिद्ध हुए। 7 अक्टूबर में अदातल की ओर से 68 पेज में फैसला दिया गया। इस निर्णय में भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव-राजगुरु को फाँसी की सजा दी गयी। इसके साथ ही इस मामले को देखते हुए लाहौर में धारा 144 भी लागू कर दी गयी। इनकी फाँसी की सजा के विरुद्ध प्रिवी काउंसिल में भी अपील की गयी जिसको 10 जनवरी 1931 में अस्वीकृत कर दिया गया। इसके एक महीने बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी वायसराय के समक्ष अपील दी कि वे विशेषाधिकार के इस्तेमाल से मानवता के आधार पर फाँसी की सजा को रुकवा दे। कुछ आम नागरिको ने भी वायसराय के सामने इस प्रकार की अपील दायर की।
भगत सिंह को फाँसी
भगत सिंह इस प्रकार से माफ़ी नहीं चाहते थे वे नहीं चाहते थे कि उनको किसी प्रकार की माफ़ी मिले। इसी खबर को पाकर उनके परिवार के लोग भी जेल में मिलने पहुंचे तो उनको भगत सिंह के चेहरे पर कोई डर और चिंता नहीं दिखी। एक माह बाद 23 मार्च 1931 के दिन साय 7:33 बजे भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को एक साथ फाँसी दे दी गयी। फाँसी के दिन भगत सिंह रुसी नेता लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। पुलिस कर्मियों के चलने के लिए कहने पर भगत बोले पहले एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल लेने दो। इसके बाद वे हँसने लगे और जीवनी की किताब को ऊपर की ओर उछालकर उनके साथ चलने को तैयार हो गए।
फाँसी हो जाने के बाद अंग्रेज डरे हुए थे कि कोई आंदोलन ना भड़क उठे इस कारण से इनका अंतिम संस्कार करने के बजाय सतलुज नदी के किनारे शरीर के टुकड़े करके मिट्टी तेल से ही जलाने लगे। कुछ गाँव वालो के देखने पर उन्होंने इन टोकडो को नदी में फेकना शुरू कर दिया। इसके बाद गाँव वालों ने उनका अंतिम संस्कार विधिवत तरीके से किया।

शहीद दिवस
भगत सिंह के देश को लेकर किये कार्यों एवं बलिदान को देखते हुए प्रत्येक वर्ष उनकी पुण्य तिथि यानी 23 मार्च को ‘शहीद दिवस’ के रूप ने मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमो में उनकी श्रद्धांजलि देना और स्मरण के कार्य होते है।
भगत सिंह को मिले सम्मान
भगत सिंह को फांसी होने की खबर को दैनिक ट्रिब्यून और न्यूयॉर्क के डेली वर्कर पत्र में भी छापा गया। दुनिया के विभिन्न मार्क्सवादी पत्रों में भी उनके बारे में काफी लेख प्रकाशित हुए किन्तु भारत में इन मार्क्सवादी पत्रों पर प्रतिबन्ध होने कारण यहाँ पर इनका प्रचार ना हो पाया। भगत सिंह को भारत एवं पाकिस्तान दोनों जगह शहीद के रूप में स्वीकृति मिली हुई है।
भगत सिंह के कुछ विचार
- बुराई इस लिए नहीं बढ़ रही कि लोग बुरे है बल्कि इसलिए बढ़ रही है सहन कर रहे है।
- उन्नति पर चलने वाले व्यक्ति को परंपरागत चलन का विरोध एवं आलोचन करनी होगी।
- मैं के इंसान हूँ और जो भी चीजे इंसानियत को प्रभावित करती है मुझे उनसे फर्क पड़ता है।
- कोई भी व्यक्ति साधारण व्यक्तियों को कुचलकर विचारो को नहीं मार सकता है।
- क्रांति और आजादी मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है।
- दुनिया में गरीबी एक अभिशाप है और गरीबी एवं अभिशाप और सजा है।
- कठोरता एवं आजाद सोच दोनों ही क्रांतिकारी के सबसे बड़े गुण है।
- सभी मानव का फर्ज है कि वे कर्म एवं प्रयास पूर्ण करें।
भगत सिंह से जुड़े प्रश्न
भगत सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उनका जन्म 28 सितम्बर 1907 के दिन बंगा गाँव, जिला लायलपुर, पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ था।
भगत सिंह कौन है?
वे ब्रिटिश भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी थे।
भगत सिंह को फाँसी की सजा किस जज ने दी थी?
जी सी हिल्टन ने।
भगत सिंह को फाँसी किस दिन हुई?
23 मार्च 1931 के दिन भगत सिंह को फांसी हुयी थी।