अतीक अहमद के जीवन की कहानी पर गौर करें तो यह किसी हिंदी फिल्म की कहानी जैसी ही लगती है। यूपी में ही प्रयागराज के उमेश पाल शूट आउट के बाद से ही Atik Ahmed का नाम ज्यादा खबरों में आया है। इस समय अतीक पर अन्य अपराधियों की तरह से पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने का खतरा है। ऐसे में बहुत से लोगो को अतीक के बारे में जानने की उत्सुकता काफी बढ़ने लगी है जैसे वह कौन है और कैसे एक बाहुबली बना।

अतीक अहमद बाहुबली Atik Ahmed
Atik Ahmed साल 1979 में यूपी के चकिया मोहल्ले में फिरोज अहमद नाम का व्यक्ति तांगा चलाकर अपने परिवार का खर्च उठता था। इस व्यक्ति के परिवार का एक बेटा पढ़ाई में कम और शरारत के कामो में ज्यादा रहता था। इसी तरह से यह बच्चा कक्षा 10 तक पहुँच गया और हाई स्कूल की परीक्षा होने बाद सभी को परिणाम का इंतजार था। परिणाम आने पर वही हुआ जिसका सभी को डर था और फिरोज का बेटा हाई स्कूल की परीक्षा में पास नहीं हो सका। किन्तु इन बातों ने उसके मन में कोई ख़ास असर नहीं किया और वो अभी भी ज्यादा अमीर और ताकतवर आदमी बनने की प्लानिंग में लगा रहा।
अतीक की कहानी
Atik Ahmed का अपराध एवं राजनीति का जोड़ इतना कारगर रहा की उसने कम समय में करोडो का साम्राज्य बना लिया। अतीक के काले काम में उसके परिवार के सदस्यों का भी भरपूर योगदान मिलने लगा।
साल 1990 के समय मे स्थानीय राजनीतिक पार्टियों का बोलबाला होने लगा था और इनमे से कुछ ने तो आपराधिक तत्वों को भी अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए भागिदार बना लिया। इस समय घातक अपराधियों को किसी नेता की जान लेने के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा था। ये अपराधी भी क़ानूनी पचड़ो से बचने के लिए नेताओं के चक्कर काटते थे। ऐसे ही अपराधी नेता में से एक अतीक अहमद भी है।
अतीक का पहली एफआईआर साल 1983 में हुई थी और तब अतीक सिर्फ 18 साल का ही था। किन्तु इससे अतीक के हौसले और अधिक बढ़ गए और वो अपने क्षेत्र की कानून व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन गया। पुलिस और अतीक के बीच आंख-मिचोली का खेल सामान्य सी घटना हो गयी थी और एक दौर तो ऐसा भी आया कि अतीक के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने की भी अटकले लगने लगी।
अतीक का राजनैतिक सफर
Atik Ahmed के बढ़ते अपराध का भय लोगो के साथ खुद अतीक को भी था। अपने इसी डर को कम करने के लिए अतीक ने राजनीति में कदम रखने की शुरुआत की। अतीक अच्छे से जनता था कि उसे राजनीति में साम्प्रदायिक कार्ड के भरोसे अच्छी स्थिति मिल जाएगी और हुआ भी ठीक ऐसा ही। साल 1989 में अतीक ने इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार की तरह से हाथ आजमाए। उस समय की स्थितियों में अतीक को चुनाव में अच्छी सफलता भी मिल गयी और वह विधायक भी बना। इसी साल अतीक जैसी ही पृष्ठभूमि का ही उम्मीदवार और पार्षद चाँद बाबा भी चुनाव लड़ रहा था।
अतीक के सामने वह एक रोड़े जैसा दिख रहा था जिसको Atik Ahmed ने अपने गुंडों से मरवा दिया। अतीक ने चाँद बाबा को रोशन बाग़ क्षेत्र के कबाब पराठे शॉप में गोलियों और बमो से मार डाला। इसके बाद तो अतीक का राजनैतिक सफर इलाहबाद वेस्ट में काफी जोरो से परवान चढ़ा और उसने 1991, 1993, 1996 एवं 2002 में अपनी अपनी जीत का सिलसिला कायम रखा। पहले दो चुनाव में वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा और तीसरे में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में किन्तु इस बार उसके सामने सपा-बसपा ने अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया। साल
1996 में अतीक को समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रत्याशी के रूप में सफलता मिली। इसके बाद साल 2002 में डॉ सोनेलाल पटेल के ‘अपना दल’ से प्रदेश अध्यक्ष के रूप में प्रदेश के बहुत से इलाको में प्रचार भी किया। इसके बाद 2004 के चुनाव में फिर से समाजवादी पार्टी के लिए फूलपुर से सांसद भी बना जोकि एक समय पर पीएम नेहरू की सीट होती थी। 2004 की चुनावी जीत के बाद तो अतीक को हर चुनाव में सफलता मिली।
अतीक का पतन
यूपी के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहबाद) में 25 जनवरी 2005 के दिन एक आपराधिक घटना हुई। इस दिन धूमनगंज क्षेत्र में बीएसपी विधायक राजू पाल को मार दिया गया और इस काम को करने का पूरा शक अतीक एवं उसके भाई अशरफ पर ही था। इसके बाद दोनों भाइयों को जेल में भी डाला गया। इस वारदात ने अतीक के राजनैतिक करियर पर गहरा प्रभाव डाला और अतीक को हर लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में पराजय मिली।
बात यह हुई, अतीक सांसद बन चुका था तो उसको अपनी विधानसभा सीट को छोड़ना पड़ा और वो सीट पर उसके छोटे भाई खालिद अजीम (अशरफ) को चाहता था। उस समय अशरफ के सामने बीएसपी के अपराधी राजू पाल लड़ रहा था। दोनों के मुकाबले में से राजू की जीत हो गई और इसके बाद उस पर बहुत से जानलेवा हमले किए गए।
इस हत्याकांड के बाद शहर में फिर से उपचुनाव भी हुए जिसे सपा पार्टी ने अपनी प्रतिष्ठा एक विषय बना लिया और अपनी राजनैतिक पहुँच से अशरफ को चुनाव जीता भी लिया। किन्तु इसी सीट से साल 2007 के चुनाव में अशरफ और साल 2012 में अतीक की हार भी हुई। इस साल अतीक को चुनाव में दिवंगत राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने ही हार का स्वाद दिया।
राजू मर्डर केस अतीक के लिए अभी तक सिरदर्द बना हुआ है जिससे वो बच नहीं पा रहा है। साल 2019 में अतीक ने एक लम्बे हार के सिलसिले के बाद पीएम मोदी के विरुद्ध भी चुनाव लड़ा किन्तु जीत ना सका। पिछले लड़े तीन चुनाव में अतीक की जमानत तक नहीं बच पाई है।

यह भी पढ़ें :- क्या उम्रकैद की सजा 14 साल होती है?
अतीक की जमानत
साल 2012 में जेल में होने पर अतीक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी जमानत का आवेदन किया। किन्तु अतीक की क्राइम स्टोरी को देखते हुए कोर्ट के 10 जजों ने अतीक को जमानत देने से साफ़ मना कर दिया। इन सभी जजों ने अतीक के केसो की सुनवाई तक से किनारा कर लिया। उसके बाद 11वें जज ने निर्णय को अतीक के पक्ष में रखते हुए जमानत की स्वीकृति दे दी।
अतीक पर हाई कोर्ट की टिप्पणी
बहुचर्चित उमेश पाल शूट आउट मामले के बाद हाई कोर्ट ने एक निर्णय पर टिप्पणी देते हुए कहा था कि ऐसा मालूम होता है कि प्रयागराज के कुछ स्थानों पर अभी भी कानून के बजाए अतीक का राज चलता है। यहाँ पर खाकी के बजाए अतीक का ही इंकलाब बोल रहा है। 4 वर्षों पहले सर्चोच्च न्यायालय ने तीखी टिप्पणी देते हुए अतीक को प्रदेश की बाहर की जेल में कैदी बनाने के आदेश दिए थे।
अतीक अहमद से जुड़े प्रश्न
अतीक अहमद ने कितनी शिक्षा ली है?
अतीक ने हाई स्कूल तक की शिक्षा ली है किन्तु वह परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाया था।
अतीक ने पहली बाद किस क्षेत्र से चुवाव लड़ा?
अतीक अहमद ने पहली बार 1989 में इलाहाबाद वेस्ट से चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी।
अतीक पर किस व्यक्ति के मर्डर का केस है?
अतीक पर साल 2005 में बीएसपी के राजू पाल को मारने का केस चल रहा है।
अतीक अहमद पर पहली FIR कब हुई थी?
अतीक पर पहली FIR साल 1983 में हुई थी उस समय अतीक की उम्र मात्र 18 साल थी।